क्या सच में मुस्लिम केवल अनुदान लेते हैं और देश में कोई योगदान नहीं देते??
- TheoVerseMinds

- Apr 11, 2020
- 6 min read
अगर आपका भी मानना है की मुस्लिम अधिकतर लेने वालों में से है तो माफ़ करें मगर अभी तक आप आंकड़े देखे बिना ही मीडिया के दिमाग से सोच रहे हैं। विस्तृत जवाब- थोड़ा लम्बा होने जा रहा है कृपया धैर्य रखिये और ध्यान से पढ़िए।
अक्सर कहा जाता है की जब सरकार कोई निर्णय देशहित में लेती है तो मुस्लिम पीछे खड़ा नज़र आता है, तो चलो मान लेते हैं की सरकार कल को निर्णय लेती है की आप को आपकी नौकरी से निकाल कर आपकी जगह किसी दिवंगत सैनिक की विधवा को वहाँ रखने जा रही है। तर्क के आधार पर फैसला कतई तर्कसंगत है और सही भी है क्यूंकि आपसे ज्यादा इस रोज़गार की जरूरत उसे है आप तो टैलेंटेड हैं किसी और तरह से अपना पेट पाल ही लेंगे। इस स्थति में आप क्या करेंगे देशभक्ति दिखाएंगे या अपने मौलिक अधिकार की रक्षा करेंगे?
ध्यान रहे की सरकार इंसानों से मिलकर बनती है और इंसान गलत भी हो सकते हैं और उनकी नियत भी सही और गलत हो सकती है। और अगर सरकार कोई ऐसा निर्णय लेती है जिससे किसी नागरिक वर्ग या समूह का अहित होता है तो उस का विरोध करने का हक़ भी हमें उस संविधान ने ही दिया है जिससे वो सरकार वजूद में है। फिर भी अगर आपको लगता है की मैं गलत हूँ तो आपको थोड़ा सा इतिहास रिवीजन करा देता हूँ,
देशहित में सबसे पहला फैसला सरकार ने 1949 में लिया था जब कुछ चोर नुमा लोगों ने रात के अँधेरे में बाबरी मस्जिद के अंदर मूर्तियां रख दी थीं, न्याय कहता है की सबसे पहले मुक़दमा ये होना चाहिए था की एक पवित्र स्थल को विवादित बनाने का प्रयास किसने किया और अपराधी को सजा मिलने के बाद अगर बाबरी बनाम राम मंदिर का मुक़दमा लड़ा जाता तो तर्कसंगत लग सकता था मगर सरकार ने फैसल लिया की जिसने मूर्त रखी थीं वो तो बैताल था जो अब गायब हो गया लिहाज़ा भूत बाधा मिटाने के लिए मस्जिद को लॉक करके मुक़दमा ये चलेगा की मंदिर है या मस्जिद, और स्थानीय मुसलमानों को समझाया गया की 1-2 हफ्ते रुक जाओ आपकी मस्जिद आपको वापस मिल जाएगी वो कहते रह गए की ये फैसला बाद में कर लेना लेकिन मौके के कब्जे की इमारत को सरकार ऐसे कैसे बंद कर सकती है और कैसे सरकार एक दंगाई को ढूंढने के बजाय उल्टा उसके उठाये मुद्दे को मुक़दमा बना सकती है लेकिन निर्णय देश हित में था सो मानना पड़ा।
दूसरा देश हित का फैसला हमने 1956 में देखा जब सरकार ने बाकायदा बिल लाकर गैर हिन्दू पिछड़ा वर्ग को आरक्षण से वंचित करके उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी अशिक्षा और गरीबी की तरफ धकेल दिया गया मगर देश हित का निर्णय था तो हमने बिना चूं चां के ये भी मान लिया।

अगला निर्णय हमने मलियाना मेरठ में देखा जहां सेक्युलर फोर्सेज ने गाड़ी भर के मुसलामानों को जंगल में लेजा कर गोली मार दी और पूरी घटना को ही सतह से साफ़ कर दिया मगर देश हित में मारा था तो बेचारे मर गए, अरे नहीं तो देश का विकास रुक जाता नहीं ?
इसके बाद हमने देश का तगड़ा देश हित 1986 में देखा जहां एक अंडर ट्रायल प्रॉपर्टी का ताला खोलने की परमिशन एक सेक्युलर देश के सेक्युलर प्रधानंत्री ने देदी और देश के विकास में योगदान दे दिया, हाना कहां भूल गया"कोर्ट प्रोसीजर को ठेंगा दिखा आकर " और उसके कुछ साल बाद इसी में पूजा की इजाजत दे दी गयी देश हित में।
अगला देश हित का फैसला आया 1992 में जब दुनिया में पहली बार सिक्योरिटी फाॅर्स की मौजूदगी में एक धर्मस्थल को तोडा गया अब जैसा की कानून होता है या जैसा सुना है उस हिसाब से पहले कोर्ट को हियरिंग रोक कर इस बात की सुनवाई करनी थी की किसके आदेश से ये ध्वंस हुआ, अपराधियों को सजा मिलती और फिर मंदिर वाले मुद्दे पर फैसला दिया जाता। छोडो यार देश का वैश्वीकरण हो रहा था हम क्यों विकास रोकें यार? फिर विकास दिखा 2003 में जब NRC और NPR का कानून संसद में पास किया गया मगर छोडो यार सब ही पिसेंगे हमें क्यों पन्गा लेना हाँ?
बात यहीं नहीं रुकी इसके बाद एक तगड़ा देश हित का फैसला इसी बीच में गुजरात के रूप में भी आया और POTA जैसे कानून के रूप में भी जिससे हज़ारों नौजवानों को पकड़ कर जेल में डाल दिया गया जो 15-20 साल की सजा काट कर अब जेल से बहार आ रहे हैं और जिनके बरी होने की खबर कहीं अख़बार के किसी कोने में ही मिलती है जबकि इससे फेल वही अखबार उसके गिरफ्तार होने की कहानी मैं पेज पर महीनों चला कर उनके पूरे खानदान का चीरहरण कर चूका होता है। पर छोडो यार 100-200 आतंकयों को पकड़ने के लिए अगर 2 4 हज़ार बेगुनाह फंस भी गए तो कोनसी बड़ी बात हो गयी हैंन? विकास नहीं रुकना चाहिए बस!
इसके बाद हमने मुजफ्फरनगर को भी मूव ऑन कर दिया और अख़लाक़ और इसके बाद सैंकड़ों और लींचिंग्स को भी और इसके बाद लॉक डाउन में डाले गए लाखों कश्मीरियों को भी।
अब बस सरकार ये चाहती थी की जरा ये कुछ हज़ार शरणार्थी जिन्हे एक मामूली आर्डिनेंस से भी भारत की नागरिकता दी जा सकती थी उन के बहाने से जड़ पर वार किया जाय जिसका हम सब देशद्रोही विरोध कर रहे हैं, देश का बिकास देख नहीं जाता न असल में हैं न???
चलो अब योगदान देने और खैरात लेने की बात करते हैं -
सबसे पहले तो ये जान लीजिये की मुस्लिम इस देश को क्या क्या देता है।
मुसलमानों ने आज़ादी के पहले से अब तक कुल छह लाख एकड़ जमीन दान या वक़्फ़ की है जिसे सरकार वक़्फ़ बोर्ड बना कर कंट्रोल करती है और जिसकी कुल अनुमानित वेल्यू 1.20 लाख करोड़ रुपये है, जिसमे अम्बानी के बंगले से लेकर सरकारी गोदाम तक बने हुए हैं और जो खाली हैं उनका सरकार अप्रत्यक्ष रूप से उपयोग करती है, कुल रेवेन्यू जोड़ कर देखिये जरा।
मुस्लिमों की सरकारी अनुदान के बिना स्थापित की गयी दो बड़ी और कई छोटी यूनिवर्सिटीज हैं जिनमे अनेकों गैर मुस्लिम बच्चे पढ़ते है, और जिनमे आज कल सरकार का आरक्षण लागू करने का इरादा है, ध्यान रहे ये सार्वजनिक संपत्ति नहीं निजी है। बाकि यूनिवर्सिटीज की बात मत करना क्यूंकि BHU को छोड़ कर सब सरकार द्वारा स्थापित हैं जिसमे जनता का टैक्स शामिल होता है।
138 करोड़ की जनसँख्या में 20 करोड़ 10 लाख मुस्लिम हैं जिसमें से 93% यानि 18 करोड़ 30 लाख लगभग गरीबी की रेखा के निचे है बाकि 7% जो की कुल जनसँख्या का 1.01% होते हैं वो कुल इनकम टैक्स का 3% शेयर करते हैं। अप्रत्यक्ष टैक्स की बात नहीं कर रहा हूँ, वो सभी 20 करोड़ मुस्लिम देते हैं।
2018 में कुल 2 लाख से ज्यादा हाजी सऊदी गए जिन्हे सब्सिडी के नाम पर केवल एयर इंडिया का चुनाव करने के लिए मजबूर किया गया, आम दिनों में 32000 से लेकर 35000 तक का सऊदी का रिटर्न टिकट मिलता है मगर एयर इंडिया इसके लिए 75000 से लेकर 1 लाख तक वसूल करता था। आम तौर पर अगर यही बुकिंग हाजियों की तरह 3 महीने पहले एडवांस में की जाय तो कोई भी एयरलाइन 25000 तक में यात्रा करा सकती है और अगर उसी एयरलाइन को 2 लाख की बल्क बुकिंग 3 महीने दे दी जाय तो ज्यादा से ज्यादा 20000 में, इस हिसाब से एयर इंडिया प्रति यात्री लगभग 60000 ज्यादा वसूल कर रहा था जो की कुल सीजन का 12 सौ करोड़ होता है जिसमे होटल बुकिंग आदि के नाम पर होने वाली लूट शामिल नहीं है और ये सब चल रहा था मुसलमानों को मिलने वाली मदद के नाम पर, और इसके बंद होने के ठीक एक साल बाद एयर इंडिया एयरपोर्ट से सीधा OLX पर आ गयी।
अधिकतर मुस्लिम आबादी अपने सभी तरह के कर भरने के पश्चात् भी ज्यादातर आधाभूत सुविधाओं के बिना कच्ची कॉलोनियों में रहती है। जहाँ की शिक्षा से लेकर अपनी और सड़क का बजट या तो नेता अधिकारीयों के बंगले में खर्च होता है या बहुसंख्यकों के इलाक़ों में।

वापस मिलने वाली चीज़ों में हज सब्सिडी का बयान ऊपर कर दिया है, इसके अलावा अगर कोई मुस्लिम स्पेशल योजना भारत में चल रही हो तो कृपया मुझे आंकड़ों के साथ अवगत कराएं जान कर ख़ुशी मिलेगी और शायद मैं भी इसका लाभ ले सकूँ।
धन्यवाद।
ये पोस्ट हिंदी क्वोरा से ली गयी है !
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