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क्या क्वारंटाइन जैसी चीज़ें दुनिया में पहली बार हो रही हैं?

दोस्तों कोरोना वायरस की महामारी के बीच जिस पर भी सरकारी अमले को जरा सा शक होता है उसे सीधा क्वारंटाइन किया जा रहा है, इस बीच कभी न कभीआपके मैं में ये सवाल जरूर आया होगा की क्या इस दुनिया में क्वारंटाइन जैसी किसी चीज का वजूद पहली बार आया है या इससे पहले भी कभी इस तरह की किसी प्रक्रिया पर अमल किया गया है?


तो दोस्तों इसका जवाब है हाँ, पहले भी गंभी रूप से बीमार मरीजों को सबसे अलग क्वारंटाइन किया जा चूका है और सबसे अलग रखते हुए हु उनका इलाज़ भी किया गया था।


हालांकि इस्लामी तारिख में मेडिकल क्लिनिक आप अल्लाह के नबी के ज़माने में भी थे जिनमे से एक को खुद मस्जिदे-नबवी के आँगन में क़ायम किया गया था मगर इसमें जो इलाज किया जाता था वो खिदमत की नियत से किया जाता था न की आज की तरह तनख्वाह या फीस वसूल कर इसलिए पूरी तरह से अस्पताल नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा जंग के घायलों के लिए भी एक अलग टेंट में अस्पताल नुमा इंतज़ाम होता था जहां अक्सर औरतें भी खिदमत किया करती थीं।


इस्लामी तारिख का पहला अस्पताल 607-608 में छठे उमुवी खलीफा वलीद बिन अब्दुल मालिक ने बनवाया था और इसी में सबसे पहले मरीजों को क्वारंटाइन किया गया था।


इस अस्पताल को फ़ारसी में बीमारिस्तान कहते थे और यहां बाक़ायदा डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ की तैनाती होती थी जिन्हे इंतज़ाम के मुताबिक़ तनख्वाह और दीगर सुविधाएँ मुहैया करवाई जाती थी। ये बीमारिस्तान आम तौर पर सबसे ज्यादा Leprosy या कोढ़ के मरीज़ों के लिए होता था जहां उन का बाकि सब मरीज़ों और आम लोगों से अलग कमरे में रख कर पूरा इलाज किया जाता था जिसे आज की जबान में क्वारंटाइन(Quarantine) कहा जाता है यानि किसी फैलने वाली बीमारी के मरीज़ को बाकी दुनिया से अलग रख कर उसका इलाज़ करना ताकि इन्फेक्शन न फ़ैल सके।


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Andrew C Miller के मुताबिक-

Ummayad Caliph Al-Walid bin Abdel Malik with building the first permanent bimaristan in Damascus in 707 AD (88 AH). This bimaristan treated chronically ill patients such as lepers and blind people. However, some consider it no more than a lepersoria, as it permitted the quarantine of patients with leprosy from others. There were salaried physicians on staff at all times, and the leprosy patients were treated gratis and granted a monetary stipend upon discharge.

"उमूवी खलीफा वलीद बिन अब्दुल मलिक ने पहला बकायदा अस्पताल 707 में दमिश्क में बनाया. ये अस्पताल कोढ़ और आंख के मरीज़ों का लंबे वक्त तक इलाज किया जाता. जब कि कुछ लोगों का ख्याल है कि ये सिर्फ कोढ़ के मरीजों का अस्पताल था यहां मरीज़ों को क्वारन्टीन किया जाता ताकि दूसरे लोग बचे रहें. यहां सारा स्टाफ को लगातार सैलरी मिलती थी और कोढ़ के मरीज़ों का इलाज मुफ्त होता था और डिस्चार्ज होने पर आर्थिक मदद की जाती." (Jundi-Shapur, bimaristans, and the rise of academic medical centres the Journal of Royal Society, December 2006 page 615)


ये अस्पताल सभी लोगो के लिए होते थे वो चाहे जिस इलाके के हो या किसी भी धर्म समुदाय से आते हो, इसी के साथ यहाँ शिक्षण का काम भी होता था और यहां दूर दराज़ से बच्चे मेडिकल की तालीम लेने आते थे।


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इसके बाद जिस इंसान ने क्वारंटाइन को मेडिकल की दुनिया के सामने एक सिद्धांत के तौर और पेश किया उसका नाम इब्र शीना था जिन्हे मेडिकल साइंस की दुनिया में अब Avicenna के नाम से जाना जाता है। सीना ने क्वारंटाइन के लिए 40 दिन का वक़्त तय किया था जो की अब के 14 दिन के वक़्त से कहीं ज्यादा है। और इसे अरबैनिया का नाम दिया था जिसका अरबी में मतलब होता है 40 दिन, और क्वारंटाइन लफ्ज़ भी असल में इसी का तर्ज़ुमा है, इतालियन भाषा में Quarantena का मतलब होता है 40 दिन।


तो इससे दोस्तों इससे पहले की सरकारी क्वारंटाइन में रहने की नौबत आये उससे पहले खुद ही लॉक डाउन को फॉलो करते हुए खुद को एक जिम्मेदार शहरी के रूप में पेश करते है और खुद को अपनों को इस कोरोना वायरस से बचाते हैं।


ये पोस्ट भाई Khuwaja Amn Junaid जी की वाल से कॉपी की गयी है।

 
 
 

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