क्या आप दुनिया को वायरलेस की तकनीक देने वाले वैज्ञानिक को जानते हैं ?
- TheoVerseMinds

- Apr 11, 2020
- 4 min read
दोस्तों कभी हाथ में पकडे इस छोटे से मोबाइल फ़ोन को देख कर मन में ख़याल आया है की आखिर ये मजेदार तकनीक न होती तो हमारी जिंदगी कैसी होती? अच्छा मोबाइल से याद आया की बिना सिग्नल के तो ये फ़ोन सच में एक डिब्बे से ज्यादा कुछ भी नहीं है, और अगर सिग्नल रहें और सिर्फ आपका इंटरनेट बंद कर दिया जाये तो? शायद आप इसे फेंक देना चाहेंगे या शायद इस्तेमाल करना बंद भी कर दें।

कभी सोचा है की इस छोटे से मोबाइल को पूरे तरीके से काम करने के लिए कितने तरह के सिग्नल चाहिए होते हैं? सोचो सोचो!
चलिए हम बता देते हैं, फ़ोन में कुल 6 तरह के वायरलेस ट्रांसमिशन सिस्टम लगे होते हैं। क्यों चौंक गए न? ये टोटल सिग्नल हैं कालिंग सिग्नल, इंटरनेट डाटा कनेक्शन, जीपीएस सिग्नल, वाईफाई, ब्लूटूथ, और NFC कनेक्शन, वैसे एक और भी किस्म के कनेक्शन कुछ फ़ोन्स में लगा होता है जिसे इंफ्रारेड कहते हैं मगर अब वो सभी फ़ोन में नहीं आता।
अब इसमें सबसे मजे की बात ये है की कितनी तरह के कनेक्शन हैं ये बताया है, उन कनेक्शंस के कितने वर्शन या संस्करण मौजूद है या कितने अपडेट आने वाले हैं उसकी बात कर ही नहीं रहे हैं, अकेले कालिंग के लिए 2G, 3G, Lte4G, VolTee 4G, 5G और इसके अलावा भी CDMA वगैरह कितने और ऑप्शन मौजूद हैं, इस हिसाब से इस छोटे से फोन में इस्तेमाल होने वाले वायरलेस कनेक्शन की वैरायटी सैंकड़ों में हो सकती है।

अब जब इतने छोटे से डिवाइस में इतने कनेक्शन हो सकते हैं तो सोचिये इस पूरी दुनिया में कितनी तरह के डिवाइस मौजूद हैं और उनमे कितने किस्म के वायरलेस का इस्तेमाल होता होगा? ट्रैन, हवाई जहाज़, सैटेलाइट, शिप, टैक्सी, बैंकिंग, बिज़नेस, शेयर मार्किट, डिजाइनिंग, मार्केटिंग, ऐसा कुछ है जो बिना किसी वायरलेस कनेक्शन या इंटरनेट के बिना चल सकता हो? बनाने की चीज़ें तो दूर नए ज़माने के हथियार और बम तक रिमोटली कण्ट्रोल किये जा रहे हैं, और ये पूरी दुनिया इंटरनेट और किस्म किस्म के वायरलेस के सहारे चल रही है।
लेकिन कभी हम सबने आज तक जानने की कोशिश की आखिर वो कौन इतना दानिश्वर वैज्ञानिक था जिसने दुनिया को इतना एहम फार्मूला दिया जिस पर आज पूरी दुनिया तिकी हुई है, हम हवाई जहाज़ से लेकर टीवी बनाने वालों के नाम तो जानते हैं मगर जिसने सबसे पहले कहा की चीज़ें एक जगह से दूसरी जगह बिना ले जाए भी जा सकती हैं वो इंसान कौन था।
खैर अगर आप नहीं जानते तो हम आज आपको यही बताने वाले हैं।

973 ईस्वी में ख़्वारिज़्म में पैदा हुए एक मुस्लिम सांईसदान अलबरूनी एक अज़ीम शख्सियत थे , हाँ वही अलबरूनी जिनका थोड़ा सा ज़िक्र अपने अलजेब्रा की किताबों में स्कूल में पढ़ा होगा मगर उससे ज्यादा न आपको पढ़ाया गया न ही आपने कभी उनके बारे में जानने की कोशिश की। आप इस्लामिक तारिख की एक अज़ीमुश्शान शक्सियत गुजरे हैं, जिस वक़्त में आप हुए उसे मुसलामानों का सुनहरा दौर कहा जाता है और ये वही वक़्त था बगदाद में कुरुने औला की शुरुआत हुई थी और उधर पश्चिम में उंदुलुश/ एंडालुशिआ की तहज़ीब वजूद में आ चुकी थी और तुर्की में मशहूर सलतनत उस्मानिआ अभी शुरू होना बाकि थी, इस वक़्त तक ख़्वारिज़्म समरकंद और बुखारा ही इस्लामी तहज़ीब के मरकज़ थे। अगर इनमे से कई अलफ़ाज़ आपने पहली बार सुने हैं तो आपको हमारे आने वाले बाकि आर्टिकल्स के लिए इंतज़ार करना पड़ेगा।
तो आप अल्बरूनी एक मस्जिद में इमाम थे, और साथ ही आप जियोलॉजी, फिज़िक्स, एंथ्रोपोलॉजी,सोशियोलॉजी, एस्ट्रोनॉमी, एस्ट्रोलॉजी, केमिस्ट्री, तारीख, जियोग्राफी, मैथमैटिक्स, दवाओं, साइकोलॉजी, फिलॉसफी और थिओलॉगी में भी महारत रखते थे, एक दिन आपने तहज़्ज़ूद की नमाज़ पढ़ी(वो नमाज़ जो दिन निकलने से ठीक पहले होने वाली नमाज़ से कुछ घंटे पहले पढ़ी जाती है) और एक तारीख की किताब को पढ़ने लगे जिसमें एक किस्सा था।
वो किस्सा हज़रत सुलेमान का था, उनके सामने एक नजूमी आया और उसने दरबार में आकर बादशाह सुलेमान से कहा की मैं पलक झपकने से पहले ही मलिका बिलकिस का तख़्त आपके सामने लाकर पेश कर सकता हूँ, आपने उसे पढ़ा और यहीं रुक कर कुछ सोचने लगे और वक़्त होने पर फज़र की अजान देने में मशगूल हो गए, लेकिन दिमाग में लगातर यही बात घूम रही थी की आखिर ऐस कैसे हो सकता है की एक किस्सा जो सच है उसमें कोई शख्स किसी चीज़ को पलक झपकने से पहले एक जगह से दूसरी जगह ताक़त रखता हो, सोचते सोचते वक़्त गुजर गया और आपने फज़र की जमात कराई और इसके बाद एक खुत्बा दिया जिसमें उन्होने वो तारीखी बयान दिया जिसकी दम और आज ये दुनिया कायम है -
सुनो, ये मुमकिन है की किसी भी चीज़ को एक जगह से दूसरी जगह ले जाय तेज़ी से, बशर्ते उस चीज़ को बदल नूर(रौशनी, लाइट, प्रकाश) में बदल दिया जाये और पहुँचने वाली जगह पर उसे वापस नूर से उसकी असली फॉर्म में पहुंचा दिया जाये।

आने वाले वक़्त में इसी फॉर्मूले के ऊपर मार्कोनी ने रेडियो, और ग्रैहम बैल ने टेलेफोन का इज़ाद किया। अब अगर किसी को ये शक है की भला एक छोटा सा फार्मूला भला इतने बड़े इज़ाद की बुनियाद कैसे हो सकता है तो सुन लें की जब स्पेस ट्रेवल की बात आती है तो हम सब जानते है की सबसे बड़ी दिक्कत इसकी दूरी यही जिसे किसी भी तरीके से जल्दी तय नहीं किया जा सकता क्यूंकि कोई भी चीज़ रौशनी की स्पीड को नहीं पहुच सकती, इसीलिए वार्प ड्राइव का सिद्धांत सामने आया जिसमें कहा गया की स्पेस में सफर करने के बजाय ऐसी मशीन बनायी जाय को स्पेस को ही एक कागज़ की तरह मोड़ कर छोटा कर दे। अभी ये सुनने में भले ही पागल पन लगता है और न ही इससे मिलता जुलता कुछ या इसका कोई पुर्जा ही बना पाना मुमकिन हो पाया है मगर सोचो अगर किसी दिन अगर ये मुमकिन हुआ तो आप किसे उसका क्रेडिट देंगे, उस बनाने वाले को या उस शख्स को जिसने सदियों पहले बता दिया था की स्पेस को कागज़ की तरह मोड़ा जाना मुमकिन है और ये स्पेस ट्रेवल मे मदद कर सकता है।
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