top of page

आखिर अमीर इतने अमीर क्यूँ होते है, क्या उनके पीछे कोई राज होता है ?

तो कभी न कभी तो आपने ये सोचा ही होगा कि आखिर अमीरों के पास आखिर ऐसा क्या होता है जो उन्हें अमीर बनाये रखता है, वरना पढ़े लिखे तो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ज्यादा होते है, मेहनत गरीब ज्यादा करता है, चालाकी नेता ज्यादा जानता है, हिम्मत चोर में ज्याद है।


तो आखिर अमीर घरानों के पास ऐसा क्या होता है जो उन्हें इतना अमीर बनाये रखता है?


ree

तो दोस्तों ये बात आप ही नहीं सोचते, हम भी सोचते है, और हर कोई यही सोचता है। इसी परेशानी का हल निकालने के लिए एक बार एक शोध हुआ था, जिसमे ये पता लगाने की कोशिश की गयी की आखिर अमीरों की वो कौन सी आदतें है जो उन्हें कामयाब बनाती है और गरीबों को गरीब। लोग सारी उम्र मेहनत करके भी गरीबी में रहते है तो वो कहाँ गलती करते है।


यहाँ समझने की जरूरत है की अमीर तीन चार तरह के होते है -


  1. खानदानी अमीर - ये वो लोग है जिनके बाप दादा इतनी दौलत छोड़कर गये है और इन्हें कमाने की जरूरत ही नहीं है, इनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है और ये आज न तो कल सड़क पर आयेंगे अगर न संभले तो।

  2. गुंडागिरी वाले अमीर - ये वो लोग है जो गुंडा गर्दी या नेता गिरी के दम पर पैसे वाले बन जाते है और इनका खेल भी कुछ दिनों का होता है क्यूंकि इनका पैसा अपना नहीं होता बल्कि छीना हुआ होता है और न ही ये उसे सहेजना जानते है।

  3. तुक्के वाले अमीर - ये वो लोग है जिनका कोई तुक्का सही बैठा और उन्क्की काया पलट गयी, ये भी शोध से बाहर है क्यूंकि उनका मामला कुछ ऐसा है कि आपको हज़ार रास्तो में से एक सही चुनना है, इन्होने आँख बंद कर के कदम बढ़ाया और गलती से सही दरवाजा खोल बैठे।

  4. मेहनती अमीर - ये वो लोग है जो गरीब घरानों से आते है और अपनी हिम्मत और मेहनत के बल पर आज यहाँ है। ये शोध इन्ही लोगों पर किया गया और शुरू करने से पहले ऐसे लोगों का डाटा तैयार किया गया।



ree

शोध शुरू हुआ और उसका टॉपिक ये रखा गया कि बिलकुल एक जैसी स्थिति में आने के बाद अमीर और गरीब किस तरह से डील करते है। अब दिक्कत ये हुई की अमीर और गरीब के जीने के ढंग में बड़ा अंतर है तो एक जैसी हालत में दोनों कहाँ मिलेंगे।


गरीब सफ़र करेगा बस से तो अमीर के पास कार है, गरीब खोली में रहेगा तो अमीर के पास बंगला है, गरीब दुकान पर काम करेगा तो अमीर के पास ऑफिस है। तो आखिर ऐसा कहाँ हो सकता है कि दोनों एक ही हालत में हो? एक दूसरी दिक्कत ये भी थी की उनका असली नेचर देखना था जो की इंसान आम तौर पर अकेले में ही दिखाता है, किसी दुसरे इंसान की मोजूदगी में वो कभी भी असली रूप में नहीं आ पायेगा और थोडा सा फॉर्मेलिटी में रहेगा, खास कर जब सामने वाला आपके बिहेवियर को स्टडी करने आया हो। और उन्हें सबको एक साथ बुलाया भी नहीं जा सकता क्यूंकि ऐसी हालत में गरीब थोडा सज धज कर पोजीशन बना कर आएगा और अमीर थोडा सिम्पल दिखने की कोशिश करेगा।


बड़ा सोचने के बाद जवाब मिला, फ्लाइट्स के दौरान दोनों एक ही हालत में होते है, वहां अमीर अक्सर होते है और गरीब भी अक्सर मजदूरी वगेरह के सिलसिले में आजकल बाहर जाते है।


फिर टीम ने दो केटेगरी बनायीं के इकॉनमी क्लास और एक बिजनेस क्लास। गौरतलब है कि बिजनेस क्लास का किराया इकॉनमी से लगभग तीन गुना होता है, और फ्लाइट में दोनों के पास करने के लिए कुछ नहीं होता बल्कि उन्हें टाइम पास करना होता है। अब देखना ये था की एक अमीर और एक गरीब फ्लाइट में बैठ कर क्या करते है।


नतीजे चौंकाने वाले रहे।



ree

सेंकडों फ्लाइट्स के क्रू का इंटरव्यू लिया गया और उसके मुताबिक पता चला की पूरे सफ़र के दौरान गरीब जहाँ अपना टाइम पास करने के तरीके ढूंढते हैं वही अमीर उस टाइम का भी इस्तेमाल करते है।


बिजनेस क्लास के मुसाफिर अक्सर सफ़र में या तो लैपटॉप पर काम करते हुए नज़र आते है या वो बिजनेस मैगजीन और दूसरी किताबें पढ़ते है तो दूसरी तरफ गरीब मुसाफिर अक्सर टाइम पास करने के लिए खिड़की से बाहर झांकना, गाने सुनना, या मोबाइल गेम खेलने जेसे काम करते है यानि टाइमपास।


इससे कुछ बाते ये सामने आई -


अमीर जहाँ अपना एक भी मिनट ख़राब नहीं करते और हमेशा कुछ न कुछ काम करते रहते है वहीँ गरीब चाहे जितनी भी मेहनत कर ले लेकिन खाली टाइम में वो टाइम पास करते हैं और आगे बढ़ने के लिए कुछ नया करने से चूक जाते है।

गरीब लोग परेशानी के लिए सलाह लेना पसंद करते है तो अमीर किताबों का सहारा लेते हैं और उनके आधार पर वो आगे की योजना खुद बनाते है और यही उनकी कामयाबी का राज है।


अब आप कहोगे की किताबें तो प्रोफेसर भी पढ़ते है वो क्यूँ न करोडपति बन जाते?


इसकी वजह ये है कि एक तो वो सिर्फ उतनी ही किताबें पढ़ते हैं जितनी उन्हें स्कूल में पढ़ानी है, उससे ज्यादा मेहनत वो नहीं करते।

और दूसरा वो किताबों को सिर्फ रटते हैं वहीँ कारोबारी अमीर अपने प्रोफेशन के हिसाब से सही किताब लेकर उसे पढ़कर उसके हिसाब से काम करने की कोशिश करेगा और वो आज न कल कामयाब हो जायेगा।


अब मेरी बात सुनकर आप किताबों पर बेस्ड फ़िल्में मत देखने लगना क्यूंकि दोस्त किताबें होती है उन पर बनी फ़िल्में नहीं। वजह ये है कि एक तो फिल्म को आप दो घंटे में देख कर ख़त्म कर दोगे और जरूरी नहीं कि वो आपको कल तक याद रहे, दूसरी वजह ये है की वहां आप जो देख लेते है वही आपको सच लगता है आपको किताब से जोड़ने के लिए जो इमेजिनेशन लगती है वो आप नहीं लगा पाते।


ree

किताब में आपने किसी करैक्टर को पढ़ा तो आप सोचोगे कि वो कैसा दिखता होगा कैसे चलता होगा और किताब में दी हुई डिटेल्स के हिसाब से आप जेहन में एक तस्वीर बनाओगे जबकि फिल्म में आपको कुछ नहीं सोचना सिर्फ देख कर बात ख़त्म, दिमाग पर कोई मेहनत नहीं।


इसके अलावा किताब में सिर्फ कहानी या उसका मकसद पढ़ने को मिलेगा जबकि फिल्म में आपको एक लव स्टोरी, बैकग्राउंड में ढेर सारा म्यूजिक, और गाने ड्रामा देखने को मिलेगा जो आपको फोकस से अलग ले जा रहा है।


और आखिरी और सबसे जरूरी बात, किताब लिखने में कोई खर्च नहीं होता, लेखक को बस बैठ कर लिखना होता है इसीलिए उसमे कुछ फ़ालतू चीज़ें नहीं होती। जबकि फिल्म में कई करोड़ का खर्च होता है, डायरेक्टर प्रोडूसर, एक्टर, फाइनेंसर से लेकर सेंकडो लोगों का करियर और पैसा जुड़ा होता है और इसलिए वो चाह कर भी वो मेसेज नहीं दे सकते जो वो देना चाहते है बल्कि वो फिल्म में ऐसी चीज़ें डालेंगे जो लोगों को कानों ओर दिमाग को आँखों को अच्छी लगे, अब चाहे उसका मेसेज सही हो या गलत हो फर्क नहीं पड़ता, और साथ ही वो ऐसी फिल्मे भी नहीं बना सकते जो लोगों को या सरकार को नाराज करती हों, पद्मावत का हाल तो आपने देखा ही होगा, कौन डायरेक्टर अपने करोड़ों रुपये इसलिए फँसाएगा की आप तक सही मेसेज पहुंचे।


उदहारण - एक कहानी थी, उसका सार ये था कि एक गाँव में डाकू आते थे उन्हें बचाने के लिए कुछ लड़के पैसे देकर बुलाये गये, लड़कों ने डाकुओं को मार दिया लेकिन इस लडाई में उनमे से कई लड़के भी मर गये। लेकिन बाद में जब डाकू ख़त्म हो गये तो गाँव वालों ने लड़कों को गाँव में नहीं रखा बल्कि ये कह कर भगा दिया की आज तुमने डाकू मारे है कल क्या पता हमें मार दो जबकि उनके साथियों ने गाँव के लिए जान दी थी। मेसेज ये हुआ की आज अगर तुम किसी के लिए लड़ोगे तो कल काम निकलने के बाद वो सबसे पहले तुम्हे लात मरेगा जब तुम उस के लिए लड़ कर टूट चुके होंगे।



ree

इस पर एक फिल्म बनी, नाम था शोले बड़ी हिट थी लेकिन जब ये रिलीज़ हुई तो इमरजेंसी का दौर था और सिप्पी साहब सरकार को नाराज नहीं कर सकते थे। इसिलिए उनकी कहानी में डाकू तो थे, गाँव भी था, दो लड़के भी थे, पैसे के लिए लडे भी,दोनों में से एक मारा भी, लेकिन गाँव वालों ने बचे हुए को लात मार कर भगा दिया ये सीन उन्होंने फिल्म में नहीं डाला क्यूंकि बागी जनता का सीन सरकार को पसंद नहीं था। इसलिए बाद के सीन में सिर्फ वीरू को ट्रेन से वापस शहर जाते हुए दिखाया गया जबकि फिल्वोकी शुरुआत में वो दोनों गाँव में बसने के सपने देखते थे और उसकी शादी भी गाँव की लड़की से हुई थी। मगर गाँव वालों ने उसे गब्बर के मरने के बाद लात मार कर शहर भगा दिया और सिप्पी साहब ने ये मेसेज इंदिरा जी के डर से ख़त्म कर दिया।


अब सोचिये अगर आप यही कहानी किताब में पढ़ते?


वहां गाने नहीं होते, बसंती का गाना और गब्बर के डायलोग नहीं होते हाँ पूरा सबक जरूर होता कि किसी के लिए लड़ने से पहले दो बार सोच लो। क्यूंकि उस लिखने वाले को इंदिरा जी का डर नहीं होता, उसके लिए किताब छपने के लिए सिर्फ कलम और छपाई का कागज़ लगा है, किताब बैन हो जाए ठेंगे से, उसे पता है की बैन हो भी गयी तो मार्किट में फिर भी रहेगी इसलिए वो सच लिखने का रिस्क ले सकता है।


ऐसी और बहुत सी किताबे है, बहुत सारी फ़िल्में भी है, लेकिन आपको कामयाब होना है आपको किताब की तरफ जाना होगा, उसे पढ़ कर जीवन में लाना होगा और जिंदगी के हर एक पल का सही इस्तेमाल भी करना होगा।


किताबें तजुर्बे का फ़साना होती है तो कभी नाकामयाबी की वजह की पहचान, वो आपकी सबसे अच्छी दोस्त होती है .


एर्तुग्रुल के ड्रामे और रामायण का सीरियल मनोरंजन दे सकता है कामयाबी नहीं, उसके लिए इनकी किताब खरीद कर पढ़ो क्यूंकि वहां ड्रामा नहीं होगा सच्चाई होगी।


दोस्तों अगर आपको हमारी ये स्टोरी पसंद आयी हो तो लाइक कीजिये, दोस्तों के साथ व्हाट्सप्प, ट्विटर, फेसबुक पर शेयर कीजिये, फेसबुक ट्विटर पर हमारे पेज को लाइक कीजिये लिंक आपको ऊपर सोशल सेक्शन में मिल जाएगा। और साथ ही हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब करना न भूलें, सब्सक्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करके ईमेल डालें!

Comments


©2020 by TheoVerse 
Copyright reserved.

bottom of page