ज्यूरी सिस्टम - अमेरिका और यूरोप की कामयाबी का राज जिसे बड़ो चालाकी से भारत से हटा दिया गया।
- TheoVerseMinds

- Jun 8, 2020
- 10 min read
वैसे अगर आपसे पूछा जाए किसी मुल्क को बेहतर बनाने के लिए सबसे पहले किस चीज़ को बेहतर बनाया जाए तो आप क्या कहेंगे?

मेरे हिसाब से किसी भी देश में सबसे पहले जिस चीज़ में सुधर की जरूरत होती है वो है अदालत सिस्टम या इन्साफ करने की प्रणाली, अगर किसी भी बड़े से बड़े देश में ये एक संस्था बर्बाद कर दी जाए तो वो देश अगले कुछ सालों में बर्बाद हो जाएगा क्यूंकि वहाँ के सभी कामयाब लोगो को मुजरिम किस्म के लोग ख़त्म कर देंगे, भारत आज इसी का दंड भुगत रहा है।
और इसके उलट अगर किसी भी बर्बाद से बर्बाद देश का सिर्फ अदालती सिस्टम सही तेज़ निष्पक्ष और इमानदार बना दिया जाए तो देश में बुरे लोग कम हो जायेंगे जिससे अच्छे लोगों को आगे आने एक मौका मिलेगा और देश की बाकि समस्याओं का हल आज नहीं तो कल ढूंढ लिया जाएगा।
आप जानते है की दुनिया में इंसाफ या न्याय के कितने तरह के सिस्टम होते है?
दुनिया में आज तक न्याय के तीन सिस्टम पाए जाते है -
डाकू सिस्टम - नाम पढ़ कर नाक कान मत बनाइएगा, ये दुनिया का सबसे पुराना और सबसे तेज़ सिस्टम है लेकिन इसकी कमी ये है कि न तो इनका कोई सुप्रीम कोर्ट होता है और न ही किसी भी तरह की दोबारा सुनवाई होती है। अगर आपको लगता है की डाकू तो लुटेरे होते है वो कैसे इंसाफ कर सकते है तो याद कीजियेगा की आपने अपने घर के बड़ो से कितनी बार सुल्ताना डाकू या रॉबिनहुड की कहानियां सुनी है। डाकू असल में वो लोग होते थे जिन्हें उस वक़्त का समाज या राजनीतिक सिस्टम इंसाफ नही देता था तो ये खुद हथियार लेकर सिस्टम से लड़ जाते थे, ये लोग दुनिया या अमीरों की नजर में डाकू होते थे लेकिन अपने लोगों को नजर में ये देवता से भी बढ़कर होते थे और इनका समाज हर दम इनके साथ खड़ा होता था। ये कभी गरीबो को नहीं लूटते थे बल्कि अमीरों से लूटकर गरीबों में बांटते थे, वीरप्पन को दुनिया डाकू कहती थी लेकिन अपने कबीले के लिए वो मसीहा था। इसी तरह आप फूलन देवी को याद कीजिये वो किस तरह अपना और अपनी जाति के लोगों का इंसाफ करती थी। ये गरीबों को नहीं लूटते क्यूंकि मान लो एक डाकू ने 100 घरों में डकेती डाली और हर घर से 1000 रु का माल लुटा तो उसकी इनकम हुई एक लाख रुपये और उसके लिए डाकू को सौ परिवारों से लड़ना पड़ता जिसमे खतरा था और बाद में भी इस तरह दुश्मन बढ़ते चले जाते यानि जनसमर्थन घट जाता और पकडे जाने या मरने के चांस होते। दूसरी तरफ अगर वो डाकू किसी एक अमीर के घर को लूटेगा तो उसे सिर्फ एक परिवार को लूटेगा तो उसे मिलेंगे कम से दस लाख रुपये और रिस्क होगा केवल एक परिवार से लड़ने का जो डाकू आराम से ले सकता है, और बाद में भी खतरा कम था क्यूंकि एक अकेला परिवार डाकू से नहीं भिड़ेगा और वैसे भी अमीर लोग कम ही लड़ते है। और अगर डाकू समझदार वाला हुआ तो दस लाख में से एक लाख अपने गरीब कबीले में बाँट देगा और बन गया मुफ्त का राजा। इसीलिए कहा जाता है कि डाकू सिस्टम देखने में बुरा था लेकिन उतना भी बुरा नहीं था।
जज सिस्टम - ये दुनिया का आज तक का सबसे खतरनाक न्याय सिस्टम है, इस सिस्टम में सबसे ज्यादा नाइंसाफी और ज्यादती होती है। इस सिस्टम को दुनिया भर में अलग अलग नामों से जाना जाता है जेसे जज, काजी, न्यायाधीश वगेरह लेकिन जहा भी ये जज अपनी पूरी पॉवर में होते है उस देश का नाश होना तय है। क्यूंकि इस सिस्टम में न्याय करने या यूँ कहें कि सजा देने की ताकत एक अकेले इंसान के हाथ में परमानेंटली दे दी जाती है और उस पर जाँच वगेरह भी मुश्किल से होती है इसलिए वो अक्सर अपनी मनमर्जी से चलते है। जज सिस्टम में अगर गलती से कोई इमानदार जज आ भी जाता है तो उस पर बाकि जजों, वकीलों और हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट का दबाव होता है मनचाहे फैसले देने का, अगर वो ऐसा नहीं करेगा तो जल्दी ही उसका तबादला या बर्खास्त होना तय होता है। इस सिस्टम में भ्रष्टाचार निम्न तरीके से होता है - a) जैसे ही कोई नया जज कोर्ट में आएगा तो वकील उससे पूछे बिना ही मुजरिम से रिश्वत का ऑफर लेकर आएगा और अगर जज ने इमानदारी दिखाते हुए रिश्वत न ली और इमानदार फैसला दे दिया तो वो वकील आइन्दा से उस जज के पास रिश्वत का ऑफर लेकर नहीं आएगा और ये बात पूरी कचेहरी के वकील और जजों को अन्दर खाने पता चल जाएगी की फलां जज बड़ा अक्खड़ है। फिर या तो उसके हिस्से में दमदार केस ही नहीं डाले जायेंगे या गलती से कोई बड़ा केस चला भी जायेगा तो जज को धमकियों का शिकार होना पड़ेगा और आखिर में वो भी रिश्वत लेने लगेगा। b) कोई जज अगर किसी ऐसे केस को देख रहा है जिसमे मुजरिम किसी दुसरे जज का रिश्तेदार है तो वो वाला जज इसके पास खबर दे देगा की तुम मेरे रिश्तेदार को छोड़ दो और आइन्दा मैं तुम्हारा ख्याल रखूँगा। हो न हो मगर जज को ये बात मानी पड़ेगी। c) अगर कोई ऐसा इंसान कोर्ट में है जिस पर अक्सर मुक़दमे चलते है तो तो वो कोशिश करेगा कि उसके सारे मुक़दमे इकठ्ठा हो कर एक ही जज की मेज पर आ जाएँ और फिर वो सिर्फ एक जज से सेटिंग करेगा और नैय्या पार, ऐसा अपने अकसर देखा या सुना भी होगा, हाल ही में अर्नब गिस्वामी वाला केस देख लीजिये। d) जज कभी भी डाकू की तरह अमीर को नहीं लूटता क्यूंकि उसमे जज के लिए रिस्क होता है, अमीर आदमी अपने किसी जानकार नेता से कहकर या बड़े जज को रिश्वत देकर इस जज पर कार्रवाई करवा सकता है इसलिए हमारे जज अमीर से सिर्फ रिश्वत लेते है चाहे उनकी गलती हो या न हो और गरीब को सिर्फ सजा देते है चाहे गलती हो या न हो। अब इसमें आप मीडिया की तरह जज को गाली मत दीजिये क्यूंकि सिस्टम ही ऐसा होता ही कि या तो जज भ्रष्ट होगा या या खुद कानून या ट्रक की चपेट में जाएगा। लोया साहब आपको याद ही होंगे। जज सिस्टम की सबसे बड़ी कमी ये होती है कि एक जज को लाखों मुक़दमे देखने पड़ते है इससे होता ये है कि जज अगर चाह कर भी इमानदार होना चाहे तो फैसले में इतना लम्बा समय हो जाता है की अक्सर मुजरिम या मुद्दई या कई बार तो दोनों ही इस दुनिया में नहीं होते। ऐसे कितने फैसले होते है जो दस पंद्रह या पचास साल बाद आते है। भारत में इसमें सोने पर सुहागा कोलेजियम सिस्टम भी जोड़ दिया गया है इसका मतलब ये है कि अब एक जज ही दुसरे जज को चुन सकता है। इसका असर ये हुआ कि भारत की अदालतें एक खास कौम की जागीर बन कर रह गयी हैं और मनमाने फैसले सुनाये जाते है।
ज्यूरी सिस्टम - आज आप दुनिया में जितने भी अमीर और कामयाब देश देखते है उनमे से 95% देशों में इन्साफ करने का काम ज्यूरी करती है। ज्यूरी आम जनता के बीच में से रैंडमली चुने गये लोगों को एक टीम होती है जिसे किसी एक केस में फैसला देने के लिए बनाया जाता है और वो केस ख़त्म होते जी ज्यूरी जो हमेंशा हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया जाता है और अगले किसी केस के लिए कोई नयी ज्यूरी नए लोगों के साथ बनायीं जाती है। ये कुछ कुछ हमारे पंचायत सिस्टम की तरह काम करती है, फर्क ये है कि पंचायत गाँव में होती थी तो उसमें वही गाँव के गिने चुने दस पंद्रह लोग होते थे जो मुमकिन है की गाँव के दबंग लोगो के पक्ष में फैसला दे सकते थे लेकिन ज्यूरी में ऐसा कुछ नहीं होता।

आइये जानते है कि ज्यूरी सिस्टम काम कैसे करता है -
जब अदालत में कोई नया केस आता है तो उस एरिया की वोटर लिस्ट से रैंडम तरीके से 25 से 55 साल के बीच में 5 लोगों को चुना जाता है, ज्यूरी मेम्बेर्स की संख्या केस के हिसाब से ज्यादा भी हो सकती है और बड़े घोटाले या नेताओं के केसों में एक ज्यूरी में 500 मेम्बर तक हो सकते है।
जब किसी केस कि ज्यूरी तय की जाती है तो उनमे से अगर किसी को शामिल होने में दिक्कत है उसे ज्यूरी से बाहर कर दिया जाता है और जिन लोगों के साथ ज्यूरी फाइनल होती है उनके नौकरी/व्यवसाय का ख्याल सरकार रखती है, इस सिस्टम में किसी भी केस का फैसला आने में एक-दो हफ्ते से ज्यादा नहीं लगते। साथी एक बार जो आदमी एक बार ज्यूरी में आ जाता है उसे अगले पांच साल तक किसी भी ज्यूरी में शामिल होने की इजाजत नहीं होती।
कार्रवाई एक जज की निगरानी में होती है और पुरे दिन तक चलती है, इस सिस्टम में अगली तारीख का मतलब अगला दिन होता है क्यूंकि सभी मेम्बर केस को ख़त्म करके अपने काम पर वापस लौटना चाहते है। तमाम सबूतों और गवाहों को बहस ज्यूरी के सामने दोनों वकील करते है और ज्यूरी को तमाम तरह के जरूरी विशेषग्य और गवाह-सबूत को तलब करने का अधिकार होता है।
आखिर में केस सुनने के बाद सही या गलत का फैसला ज्यूरी बहुमत से देती है और दोषी करार दिए जाने के बाद सजा तय करने का अधिकार जज पर छोड़ दिया जाता है जो केस की गंभीरता के हिसाब से दोषी को सजा दे देता है या निर्दोष होने की स्थिति में रिहा होने का आर्डर जारी करता है। दोषी या निर्दोष करार देने का अधिकार जज को नहीं होता और यदि दोषी मिलने पर जज कानून से कम सजा सुनाता है तो ज्यूरी को वोट वापसी कानून के तहत बर्खास्त करने का जांच के दायरे में लाने का अधिकार होता है।
अब मान लीजिये कि किसी बिजनेसमैन ने घोटाला कर दिया जिसके केस में 100 लोगों को ज्यूरी बनायीं जाएगी जिसमे सभी उम्र के लोग होंगे, इन्हें चुनते समय ज्यूरी बनाने वाली कमिटी ध्यान रखेगी की इनमे से कोई आरोपी का किसी भी तरह से परिचित न हो, पिछले पांच साल में किसी ज्यूरी में न रहा हो, आपस में किसी दुसरे मेम्बर का परिचित न हो और साथ ही खुद किसी केस में आरोपी न हो। जब ज्यूरी सुनवाई करेगी तो वो आरोपी के फील्ड के एक्सपर्ट लोगों को अदालत में केस की डिटेल्स समझाने के लिए तलब कर सकती है और आरोपी जज सिस्टम की तरह रिश्वत देने को कोशिश भी नहीं कर सकता क्यूंकि 100 में से कम से कम 5-10 लोग ऐसे सामने आयेंगे जो रिश्वत का भांडा फोड़ देंगे और आरोपी पर रिश्वत का एक और केस बनेगा जिसकी सुनवाई कोई दूसरी ज्यूरी करेगी।
मान लीजिये कोई ऐसा इंसान जो आदतन मुजरिम है और उस पर अलग अलग 20 मुक़दमे चल रहे है तो जज सिस्टम में वो आसानी से रिश्वत देकर निकल सकता है, न भी दे सका तो ये तय है कि 20 केस ख़त्म होने में कम से कम 20 साल ही लगेंगे और तब तक या तो आरोपी इस दुनिया में नहीं होगा या एक एक करके सारे केसों के जज, वकील या गवाहों और मुद्दई को रिश्वत से या धमकी से तोड़ लेगा।
लेकिन जब ये इन्सान ज्यूरी कोर्ट वाले देश में होगा तो इसके 20 केस सुनने के लिए कम से कम 100-150 लोगों की ज्युरियां बनायीं जाएँगी जो एक एक करके केसों की सुनवाई करेंगी, अब ऐसी हालात में आरोपी को गवाह सबूत तोड़ने का मौका नहीं मिलेगा और न ही वो एक साथ अकेला इतने सारे लोगों को रिश्वत दे पायेगा। रिश्वत देना दूर की बात है जितने दिन में ज्यूरी के केस ख़त्म होते है तब तक वो सारे लोगो के नाम पते जान ले यही बहुत है।
और सबसे बड़ा फायेदा ये है कि जज सिस्टम में जज सरकारी घर में रहता है उसे सिक्यूरिटी मिलती है, ज्यूरी में सब आम आदमी होते है। मान लीजिये ज्यूरी में किसी रेपिस्ट का केस आता है तो ज्यूरी रिश्वत नहीं लेगी बल्कि हर एक मेम्बर ये सोचेगा कि हो न हो कल ये आदमी हमारी औरत पर हाथ उठाये और वो सब जज पर ज्यादा से ज्यादा सजा देने का दबाव बनायेगे।

भारत में भी अंग्रेजो के जमाने में ज्यूरी कोर्ट हुआ करते थे और सबसे पहला ज्यूरी केस मद्रास में 1665 में एक अंग्रेज महिला Ascentia Dawes के खिलाफ चलाया गया था जिसकी ज्यूरी में छः ब्रिटिश और छः पुर्तगाली लोग थे और अंग्रेज महिला को दोषी करार दिया गया था, बाद में ज्यूरी में भारतीय लोगों के शामिल होने का कानून भी लाया गया और ये कानून आजादी के बाद तक जारी रहा।
आजादी के बाद नेहरु नहीं चाहते थे कि उनकी सरकारी नीति में जनता दखल न दे सके और वोट लेने के बाद वो पांच साल तक बेफिक्र राज कर सकें लेकिन ये ज्यूरी अद्लातों के चलते मुमकिन न था इसलिए उन्होंने इसे ख़त्म करने का बहना ढूँढा, 1959 में नौसेना कमांडर के. ऍम. नानावटी ने अपनी विदेशी पत्नी के आशिक की गोली मार कर हत्या कर दी और ये केस दस लोगों की एक ज्यूरी के सामने गया। साफ़ था कि ये हत्या थी लेकिन पत्नी और मृतक की गलती देखते हुए ज्यूरी ने नानावटी को निर्दोष दे दिया और 1963 में इस केस का बहाना बना कर ज्यूरी कानून को ख़त्म कर दिया और इसके बाद एक एक करके 1973 तक देश की तमाम अदालतों से ये कानून हमेशा के लिए हटा कर इस देश की जनता को जजों के हाथों पिसने के लिए छोड़ दिया गया। नानावटी का केस आपने अक्षय कुमार की फिल्म रुस्तम में देखा होगा जिसके बनाने का मकसद ही ये था की ज्यूरी कानून के समर्थन में उठने वाली आवाजों को दबाया जा सके!

जनता जजों के कण्ट्रोल से बाहर न जा सके इसके लिए कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट और कोलेजियम जेसे कानून लाये गये जिसने भारत की देश की अद्लातों को एक कौम की जागीर बना दिया और जनता को अदालत को भगवान मानने के लिए मजबूर कर दिया गया।
हलाकि किसी देश की तरक्की में सबसे बड़ा योगदान अदालत का ही होता है लेकिन अमेरिका और यूरोप के देशो में इसके अलावा वोट वापसी पासबुक, हथियार बंद समाज, सरल टैक्स सिस्टम और, रिक्त भूमि कर जेसे कानून भी होते है जो वहां की जनता को खुल कर सांस लेने की इजाजत देते है। उम्मीद है कि एक दिन हमारे देश में भी ये सब होगा लेकिन इन सब का रास्ता ज्यूरी कोर्ट से होकर ही जाता है, अगर अदालत भ्रष्ट है तो चाहे बाकि कानून कितने भी अच्छे क्यूँ न हो वो जज की जूती की नोक पर ही होते है और ज्यूरी कानून जजों के पर कतरने का और जनता का इंसाफ जनता से करवाने का एक सिस्टम होता है।
एक परिभाषा के अनुसार -
Thejurydecides whether a defendant is "guilty" or "not guilty" in criminal cases, and "liable" or "not liable" in civil cases. When cases are tried before ajury, the judge still has a major role in determining which evidence may be considered by thejury.
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