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केस्ट्राती - अमीरों की जिंदगी जीने वाले वो बदनसीब लड़के जिनकी बदनसीबी उनके माँ बाप लिखते थे।

वो कहते हा न कि कोई चीज़ अगर आपको बहुत अच्छी लगे तो जरूर आपको उसका दूसरा पहलू देखना चाहिए क्यूंकि वहां आपको वही चीज़ उतनी ही बुरी दिखाई पड़ेगी जितनी अच्छी सामने से दिखती है। अगर आपको कोई इंसान सामने से कम अच्छा दिखता है तो वो पीछे से उतना कम बुरा होगा और अगर वो बहुत ज्यादा अच्छा दिखता है तो उसका छुपा हुआ पहलु उतना ही ज्यादा डार्क होगा।


ये नियम न सिर्फ लोगों बल्कि नस्लों और सभ्यताओं पर भी लागू होता है, आज जो कौम आज आपको अच्छी दिख रही है उसका गुजरा हुआ समय उतना ही अलग होता है। ऐसा ही कुछ इतिहास यूरोप में केस्ट्राती नाम के गायकों का था।


दरअसल यूरोप और खासकर रोम में एक समय में ओपेरा नाम के संगीत का बहुत चलन था, इसे भारत के हिसाब से कव्वाली या रागिनी मान सकते हो जिसे सारे जनता शौक़ से सुनती है। ओपेरा में गायक को सांस रोक कर एक लम्बी तान लगानी पड़ती थी, ओपेरा में बारीक आवाज वाले गायकों की डिमांड होती थी जिसके लिए औरतें परफेक्ट होती थीं लेकिन दिक्कत ये थी कि औरत उतनी देर तक सांस रोक कर तान नहीं लगा सकती थी और उनकी तान टूट जाती थी जिससे भरे चर्च में ओपेरा की बेईज्ज़ती हो जाती थी।


इसका तोड़ ये निकाला गया कि हल्की उम्र के लडको को ओपेरा गाने के लिए लाया जाने लगा लेकिन उनके साथ दिक्कत ये थी कि वो जब तक सीख आकर चर्च में ओपेरा गाने के लिए तैयार होते थे तब तक उम्र के साथ उनकी आवाज भारी पड़ने लगती थी और चेहरा भी दाढ़ी मूंछ आने की वजह से मर्दाना हो जाता था तो उन्हें भी जल्द ही ओपेरा में नापसंद किया जाने लगा और अब चर्चों में ओपेरा चलाने वाले किसी नए आप्शन की तलाश में थे।


चौदहवी सदी के आस पास एक भयानक प्रयोग किया गया, कुछ 9-10 साल के लड़कों को लेकर उनकी बॉल(अंडकोष,वृषण,गोटे, आंड) को कटवा दिया गया, इससे हुआ ये कि लड़के को मर्द बनाने वाला हार्मोन बनना बंद हो गया और उम्र के साथ उनका शरीर तो बढ़ा लेकिन हड्डियाँ लचीली ही रह गयी, आवाज भी भारी न हुई और लड़कियों के जेसे पतली ही रही, जब शरीर में वीर्य न बना तो शरीर भी स्वस्थ हट्टा-कट्टा हो गया क्यूंकि पूरी ऊर्जा अब शरीर में ही खप रही थी, चौड़ा सीना, स्वस्थ बदन, पतली आवाज और ताकतवर शरीर ये सब मिलकर उन्हें एक बेहतरीन ओपेरा गायक बनाते थे।


एक ओपेरा गान कुछ ऐसा होता है -




इनकी लम्बी टाँगे होतीं, तगड़ा धड होता था, चौड़ा सीना होने की वजह से घंटो लम्बी तान लगायी जा सकती थी, मोटे तौर पर इन्हें आज के जमाने का बधिया बैल बना दिया जाता था।


विकिपीडिया पर अवेलेबल परिभाषा के हिसाब से-

A castrato(Italian, plural:castrati) is atypeofclassicalmalesingingvoiceequivalent to that of asoprano,mezzo-soprano, orcontralto. The voice is produced bycastrationof the singer beforepuberty, or it occurs in one who, due to anendocrinologicalcondition, never reachessexual maturity.

ओपेरा में इनका संगीत समय के साथ मशहूर होता चला गया, ये सिर्फ बड़े चर्चों में गाते और इनका संगीत सुनने दूर दूर से लोग आते थे, दौलत और शोहरत इनके क़दमों में पड़ी रहती थी, उस वक़्त के यूरोपियन राजा भी इनके दीवाने होते थे और उनसे भी ज्यादा दीवानी होती थी वहां की औरतें और रानियाँ।


जी हाँ औरतें भी इनकी दीवानी होती थी।



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दरअसल हुआ कुछ यूँ कि उस समय कोई कंडोम का रिवाज तो था नहीं इसलिए अगर कोई औरत किसी के साथ अवैध सम्बन्ध बनाती थी तो पूरा खतरा था कि उसे गर्भ ठहरे और वो गर्भवती हो जाये और उसका भांडा फूट जाए, और साथ ही ये जरूरी तो नहीं कि वो पुरुष महिला को संतुष्ट कर देगा।


लेकिन एक केस्ट्राती के साथ ऐसा कुछ नहीं था, वो हट्टे कटते होते थे, हार्मोनल चेंज की वजह से लिंग का साइज़ भी अच्छा ख़ासा होता था और कोई वीर्यस्खलन नहीं होता था इसलिए बिना रुके घंटो तक ताबड़तोड़ सेक्स कर सकते थे, साथ ही गर्भवती होने का खतरा भी जीरो था। अमीर औरतें उस वक़्त के इन केस्ट्रातियों की दीवानी हुई फिरती थी और उनके साथ सोने के बदले अच्छी खासी रकम भी लुटाया करती थी।


कहने का मकसद ये है कि एक इंसान जितनी भी ख्वाहिशें रख सकता है वो सब इन्हें मुहैय्या होती थीं, पैसा दौलत, सेक्स, महंगा लाइफस्टाइल, राजाओं मंत्रियों और अमीरों के साथ उठाना बैठना, चर्चों में रहना और इज्ज़त पाना सब फ्री में मिलता था। लेकिन किस कीमत पर ?


कुछ दिनों में केस्ट्राती बनने का चलन इतना बढ़ गया कि हल्की उम्र के लड़कों के माँ बाप खुद उन्हें केस्ट्राती बनाना चाहते थे, लेकिन ये कानूनी न था।


गरीब घर के लोग अपने लड़कों को झोला छाप डॉक्टरों के पास लेजा कर उनके बाल्स कटवा देते थे और इस काम को चोरी छुपे किया जाता था, लड़का दर्द से चिल्लाये नहीं इसके लिए उन्हें अफीम का नशा दिया जाता था, दर्द को कम करने के लिए उन्हें गर्म पानी के टब में लिटा दिय जाता था, कई बार लड़कों की ज्यादा खून बहने की वजह से या ज्यादा दर्द की वजह से मौत हो जाती थी तो कभी कटे हुए जख्म में इन्फेक्शन या ज्यादा देर तक बेहोश रहने के वजह से गर्दन की हड्डी टूटने की वजह से मौत हो जाती थी और लड़के के घरवाले झूट बोलते थे कि जंगली जानवर की वजह से मौत हुई है या लड़का पेड़ से गिर गया था।


लडको के दर्द का अंत यहीं नहीं होता था बल्कि ये तो महज शुरुआत होती थी, जिस हार्मोनल चेंज की वजह से उन्हें ये सब मिलता था वही हार्मोनल चेंज लडको को टेंशन और मेंटल बीमारियों और अकेलेपन की तरफ धकेल देता था, वो अकेले पड़ जाते थे। साथ ही केस्ट्राती बनने के साथ ही उनको ट्रेनिंग शुरू हो जाती थी, उन्हें ऐसा कोई भी खाना नहीं दिया जाता था जिससे उनके चेहरे पर मर्दाना लक्षण दिखें साथ ही उन्हें चर्च में रोजाना घंटो घंटो तक लम्बी तान लगाने और सही ओपेरा गाने की ट्रेनिंग लेनी पड़ती थी जो जाहिर है की मानसिक रूप से तोड़ने वाला होता था। और साथ ही कई बार इनकी मनमोहक सूरत देख कर बड़े घरानों के पुरुष भी इनका यौन-शोषण करते थे...

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बड़े होने के बाद भी भले ही इन्हें कितनी भी इज्ज़त या दौलत या सेक्स मिलता था पर ये अकेले ही रहते थे क्यूंकि ये कोई औलाद पैदा न कर सकते थे और न ही शादी कर सकते थे, इनका कोई परिवार भी नहीं होता था और इनके माँ बाप भी इनसे बस नाम चारे का मतलब रखते थे ताकि पैसे मिलते रहे, क्यूंकि साथ रहने में उन्हें बदनामी का डर होता था।


एक उम्र के बाद जब ये रिटायर होते तो बिलकुल अकेले हो जाते थे और अँधेरे और गुमनामी में मरने को मजबूर होते थे जिनकी सुध लेने वाला पूरे यूरोप में कोई न होता था और यहाँ तक की इनका परिवार जो सारी उम्र इनके पैसे का फायदा लेता था वो भी अब इनके पास न आता था, और इस तरह ये जिंदगी के आखिरी साल किसी गुमनाम से अस्पताल या चर्च के किसी कोने में गुजारते थे। इनका हाल कमोबेश आज के सो कॉल्ड-फेमस पोर्न-स्टार्स के जेसा होता था...


यूरोप में लगभग तीन से साल तक चली इस रस्म को आखिर में 17वी सदी में कड़े कानून बना कर बंद किया गया।


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