आखिर जानवर इतने कम बीमार क्यों पड़ते है जबकि तमाम चीज़ें इन्सान और जानवर को एक जेसे ही मिलती है?
- TheoVerseMinds

- May 20, 2020
- 4 min read
इस बार करने से पहले मैं एक घटना का ज़िक्र करूँगा, इस बारे में मैंने बहुत पहले पढ़ा था लेकिन काफी दिन हो गए इसलिए सोर्स अब याद नहीं और ढूंढने पर मिला भी नहीं, अगर मिला तो मैं बाद में जोड़ दूंगा।
तो हुआ कुछ यूँ कि एक बार कुछ वैज्ञानिकों ने बंदरों पर एक रिसर्च की और ये देखने की कोशिश करी के आखिर लगभग सामान डीएनए के बाद भी बंदर स्वस्थ कैसे रहते है और इंसान क्यों इतने बीमार रहते है।

प्रयोग के पहले चरण में उन्हें मिलावटी रासायनिक खाना दिया गया जैसा आज कल कर एक आम इंसान खाता है। बंदरों के सामान्य से ज्यादा मात्रा में तेल मिर्चें, मसाले, लेड, आर्सेनिक और अन्य रसायन दिए गए जो आज के मनुष्यों के लिए सामान्य बात है।
लेकिन एक दो दिन के अंदर सभी बंदरों ने उतनी मात्रा के साथ रहना सीख लिया और खाते रहे।
दुसरे चरण में उन्हें बिमारियों के साथ रखा गया और देखा गया कि वो बीमार होते हैं या नहीं, लेकिन नाकामयाबी ही हाथ लगी, यहाँ तक कि उनमे से कई बंदरों को सीधे इंजेक्शन से मानुष्यिक रोगों के वायरस दिये गए।
रिजल्ट, बंदर बीमार तो हुए लेकिन 1-2 दिन में खुद ही रिकवर कर गए और इंसानो की तरह बीमार नहीं हुए।
आखिर क्या वजह है कि जो रोग इंसान को हफ़्तों या महीनो के लिए अस्पताल भेज देता है वो बंदरो पर असर नहीं करता और करता भी है तो बन्दरों का इम्म्यून सिस्टम कुछ ही दिन में उसे मार देता है? आखिर इतनी मजबूत इम्युनिटी का राज क्या है जबकि डीएनए का एक बड़ा भाग समान ही होता है।
अब अगले चरण में डॉक्टरों ने बंदरों की दिनचर्या और खान पान के बारीक बारीक बिंदु को नोट करना शुरू किया और ध्यान दिया कि आखिर अलग क्या है, क्यूंकि अब उन्हें इंसानों के जितना ही प्रदूषण दिया जा रहा था, उन्हें इंसानों जितना ही अशुद्ध पानी और मिलावटी खाना दिया जा रहा था, रोगाणु भी भरपूर दे दिए गए थे लेकिन बंदर बीमार होने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
इसके बाद के चौंकाने वाली बात सामने आयी।
बन्दर सुबह उठने एक बाद सबसे पहला काम खाने का करते हैं और पेट भर भर के खाते है और पूरे दिन खेलते है, दिन में और शाम में वो सुबह से कम और कम खाना खाते है।
ये ध्यान देने वाली बात थी क्यूंकि इंसान ठीक उसका उल्टा करते है, सुबह में हल्का नाश्ता या बिना नाश्ता किये हुए, दोपहर में मध्यम लंच और शाम में भरपेट डिनर के बाद सीधे बिस्तर।

फिर क्या था, डॉक्टरों ने बंदरों को खाना देने के स्केड्यूल में बदलाव कर दिया और अब खाना इंसानों की तरह दिया जाने लगा, सुबह में मामूली सा खाना दोपहर में हल्का खाना और रात में भरपेट खाना।
पहले ही हफ्ते में रिजल्ट मिला और अगले हफ्ते तक उन्ही बंदरों में सामान्य बीमारियां जैसे थकना, अनिद्रा दिखने लगीं। ये वैज्ञानिकों के लिए बड़ी कामयाबी थी और अब समय था इस वेरीफाई करने का, अब डॉक्टरों ने बंदरों को पहले की तरह इंजेक्शन से कुछ वायरस दिए और नतीजे में बंदर फ़ौरन बीमार हो गए।
नतीजे चौंका रहे थे, डॉक्टर परेशान थे और ये बात परेशान कर रही थी कि आखिर सिर्फ खाने का समय बदलने से कोई इतना कमजोर कैसे हो सकता है ?
शोध आगे बढ़ा और रिसर्च पेपर निकाला गया जिसमे उन्होने लिखा कि जब इंसान सुबह उठ कर खाना खाता है और उसके बाद काम कर जाता है तो वो खाना पेट में पड़ा नहीं रहेगा बल्कि धीरे पचता रहेगा और शरीर को ऊर्जा देता रहेगा, दोपहर का खाना भी इसी तरह शाम तक शरीर को रिचार्ज रखेगा लेकिन इसकी मात्रा सुबह से कम होनी चाहिए, और शाम का खाना सिर्फ इतना होना चाहिए कि शरीर उसे सोने से पहले हजम कर सके।
लेकिन आप उसका उल्टा करते है।
सुबह में हल्का नाश्ता लेते है या नहीं लेते तो सारा दिन आपका शरीर काम के दौरान ऊर्जा की मांग करेगा और पेट में कुछ नहीं होगा नतीजतन ऊँघ आती रहेगी और थकन बनी रहेगी, दोपहर में आप लंच करेंगे तो शरीर को राहत मिलेगी लेकिन वो अब तक की ऊर्जा की कमी को पूरा करने के लिए नाकाफी होगी, और शाम में आप बिस्तर पर जाने से पहले भर पेट खाना खाएंगे और बिना टहले ही सो जायेंगे तो वो खाना रात भर पेट में पड़ा हुआ सड़ता रहेगा और शरीर में हज़ारों हानिकारक केमिकल और रोगाणु बनाएगा। जो आपकी इम्युनिटी को कमजोर करेगा।
ध्यान रहे की हमारा शरीर एक आटोमेटिक डॉक्टर है जो अपनी तरफ आने वाली बड़ी से बड़ी बीमारी से लड़ने की ताक़त रखता है बशर्ते की आप इसे ठीक रखें, लेकिन जब हम खाना खाने का समय बदल कर इसे बेहाल कर देते हैं तो ये मामूली नज़ला जुकाम को भी नहीं झेल पाता और बीमार हो जाता है।

कुछ लोगों ने यूँ भी कहा है कि सुबह का खाना सर में ताक़त देता है, दोपहर का सीने और शाम का पेट में, यही वजह है की आज भी डायटीशियन आपको डिनर हल्का करने की सलाह देते है और जिम ट्रेनर भी भारी नाश्ता और हल्का डिनर करने की सलाह देंगे।
मर्ज़ी आपकी शरीर आपका।
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