मराठा साम्राज्य- एक ऐसा वंश जिसकी धमक आज तक चलती है।
- TheoVerseMinds

- May 15, 2020
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बचपन में हम जब स्कूल में हुआ करते थे तो मराठों का एक छोटा सा चैप्टर इतिहास की किताब में हुआ करता था जिसमें बहुत शोर्ट में मराठों और उसमें भी शिवाजी की लड़ाइयों का जिक्र था, लेकिन पता नहीं क्या हुआ पिछले कुछ सालो में महाराष्ट्र के शिवसैनिक और बाकि लोगों ने मराठा राज का ऐसा हव्वा खड़ा किया कि एक बार तो ऐसा लगता है जैसे इतिहास में आज तक मराठों से बड़ा कोई बहादुर आज तक इस धरती पर पैदा ही नहीं हुआ, जबकि वही महराष्ट्र में उन्ही मराठों के महल और किले इस हाल में हैं जेसे किसी हारे हुए राजा की कब्र।
खैर, ये सब लिखना हमारा मकसद नहीं था, बल्कि हमारा मकसद तो ये जानना है कि क्या जो सम्मान मराठों को दिया जा रहा है वो उसके लायक भी थे या बस उनके नाम की राजनीती ही की जा रही है, यहाँ तक कि उनके मानसिक पुत्रों ने शिवाजी की सेंकडो फीट ऊँची मूर्ति समंदर में बनाने के ऐलान कर दिया जबकि देश भुखमरी के हालात में जाने वाला है और जबकि उनसे जुडी चीज़ें अब पुणे में ख़त्म होने के कगार पर है।

मराठा वंश की शुरुआत शाहजी भोसले के बेटे शिवाजी ने की थी, जिन्हे अपने पिता की आस पड़ोस की रियासतों की जागीरदारी करने की आदत से दिक्कत थी, और उन्होने अपनी जवानी में मुगलों और बीजापुर के खिलाफ बगावत कर दी थी, वैसे बीजापुर के खिलाफ तो उन्हें लड़ना भी नहीं पड़ा क्यूंकि वहां के शाह आदिल शाह की मौत के बाद उसके सेनापति को रिश्वत देकर ही बीजापुर की रियासत का काफी हिस्सा उन्होंने कब्ज़ा लिया था। लेकिन मुग़ल सल्तनत के साथ कुछ करना संभव नहीं था और और आमने सामने से लड़ना का तो सवाल ही नहीं था तो शिवाजी ने छापामार युद्ध का तरीका अपनाया। लड़ाइयों के बावजूद वो सिर्फ एक जागीरदार ही थे जिन्होंने कुछ जागीरें कब्ज़ा रखी थी, इसका समाधान करने के लिए उन्होंने 1674 में सम्राट बनने की कोशिश की लेकिन पंडितों ने उनके कथित शुद्र वर्ण का हवाला देकर रजा बनाने से इनकार कर दिया इस पर वाराणसी से रिश्वत देकर गागा भट्ट नाम के एक भ्रष्ट पंडित को बुलाया गया लेकिन उसने भी हाथ से तिलक करने से इनकार कर दिया और पैर के अंगूठे से शिवाजी को तिलक करके राजा बनाया।
इसके सिर्फ छह साल बाद शिवाजी चल बसे और उनकी पत्नी सोयर बाई और उनके बेटे राजाराम ने बगावत कर दी, दूसरी पत्नि के बेटे संभाजी उस वक़्त बाहर थे तो उन्हें वापस आकर सत्ता के लिए लड़ना पड़ा और आखिर में सौतेले माँ और भाई को कैद करके छत्रपति बने। लेकिन वो ज्यादा दिन नहीं टिक पाए और उनका सामना लगतार औरंगजेब से होता रहा और 1687 में वो औरंगजेब के हाथो गिरफ्तार हो गये और बाद में कैद में मौत हो गयी, हालाँकि इतिहासकार मानते है की अगर औरंगजेब के बागी बेटे अकबर-2nd ने अपने मनसबदारों के साथ मिलकर अपने बाप के खिलाफ संभाजी का साथ न दिया होता तो शायद संभाजी सात साल भी न टिकते या फिर मराठे यहीं ख़त्म हो जाते।

खैर, संभाजी की मौत एक बाद उनके बेटे साहूजी को भी औरंगजेब ने गिरफ्तार कर लिया और सोयर बाई ने कैद से बाहर आकर अपने बेटे राजाराम को राजा घोषित कर दिया, राजाराम ने 1689 से लेकर 11 साल तक राज किया और कुछ खास न कर सके और उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी ताराबाई ने 1700 में अपने नाबालिग बेटे शिवाजी-2nd को राजा बना कर खुद राज करना शुरू कर दिया, 1707 में औरन्गजेब की मौत के बाद शाहूजी जेल से निकलने में कामयाब हुए और वापस महाराष्ट्र पहुंचे तो पुणे में घुसने नहीं दिया गया बल्कि उल्टा ताराबाई ने उन्हें मारने के लिए सेना भेज दी जिसका नेतृत्व सेनापति ने अपने कमांडर बालाजी विश्वनाथ को दिया।
बालाजी जब शाहूजी के पास पहुंचे तो हमला नहीं किया बल्कि नमक का कर्ज अदा करते हुए उन्हें राजा मान लिया और उल्टा शाहूजी के साथ मिलकर पुणे पर चढ़ाई कर दी और शाहूजी छत्रपति बने। राजा बनने के बाद शाहूजी ने बालाजी को पेशवा नियुक्त किया और पेशवा युग की शुरुआत हुई। इसके बाद आने वाले चंद सालों में मराठों की ताकत धीरे धीरे छत्रपति से पेशवा के हाथों में चली गयी और जो थोडा बहुत शासन किया वो शाहूजी ने ही किया और इसके बाद के राजा सिर्फ नाम के रजा हुए और उनके राज में पेशवा ने शासन किया। बालाजी विश्वनाथ ने सय्यद अब्दुल्लाह खान और सय्यद हुसैन अली खान नाम के दो मुग़ल दरबारियों को अपने साथ मिला कर बादशाह फर्रुखशियार को 1719 में हराया और मुग़ल सल्तनत को नाम का छोड़ दिया जो वैसे भी औरंगजेब के बाद नाम की ही थी, ये बालाजी के नाम अकेला सेहरा है उनके पूरे राज में।
उनके बाद 1920 में उनके बेटे बाजीराव को पेशवा बनाया गया जिन्होने अपने २० साल के राज में कई जंगे लड़ी लेकिन कुछ खास कमाल न कर सके अलबत्ता उन्होंने बुंदेलखंड की राजकुमारी के साथ दूसरी शादी करके अय्याशी के लिए अपना नाम जरूर मशहूर करवा लिया, बाद में बाजीराव 1940 में बुखार और कमजोरी की वजह से चल बसे। उन्होंने ही वो मशहूर ब्राह्मण या पेशवा राज का ख्वाब देखा था जिसका फल ये मुल्क आज भी भुगत रहा है।
उनके बाद उनके बेटे बालाजी बाजीराव या नाना साहेब पेशवा बने जो शायद अकेले पेशवा है जिहोने मराठा राज की सीमाओं को पेशावर तक फैला दिया और इतने बड़े साम्राज्य की सँभालने के लिए अलग अलग रियासतों में अपने सरदार तैनात किये जो वहां मराठों की तय की गयी चौथई(या फिरौती) वसूल करके उसका हिस्सा पुणे भेजते थे। वैसे शुरूआती कुछ सालो के बाद नाना जी जंगों में खुद लीड नहीं करत थे बल्कि उनके कमांडर ही लड़ते थे जिनमे सदाशिव राव मुख्य थे, लेकिन पानीपत की जंग में 1761 में सदाशिव राव अहमद शाह अब्दाली के खिलाफ जंग हार गये और नाना जी के बेटे विश्वास राव और सदाशिव राव को जान से हाथ धोना पड़ा। इसकी खबर जब नाना को लगी तो वो इसे बर्दाश्त न कर सके और अपने पिता की तरह तम्बू में ही 40 साल की उम्र में चल बसे।
उनके बाद उनके छोटे बेटे माधव राव को पेशवा बनाया गया जिन्होने सारी उम्र पानीपत से हुए नुक्सान की भरपाई में और निजाम से उलझने में गुजार दी, इन्ही के राज में मराठे सिकुड़ने शुरू हो गये और जो लम्बा चौड़ा साम्राज्य इनके पिता ने बनाया था और समाप्ति की तरफ चल पड़ा। इनकी मौत 11 साल बाद 1772 में बीमारी की वजह से हो गयी।
इनके छोटे भाई नारायण राव को पेशवा बनाया गया लेकिन वो एक साल बाद ही अपने ही सैनिकों के हाथो मारे गये और पेशवाई में इनका योगदान सिर्फ नाम लिखवाने के रहा।
इनके बाद उनके चाचा यानि पेशवा बाजीराव के बेटे रघुनाथ राव को 1773 में पेशवा बनाया गया लेकिन वो भी एक साल ही गद्दी संभल पाए और 1774 में अपने ही दरबारियो के दबाव में गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर हो गये।
जब रघुनाथ राव गद्दी से उतरे तो नारायण राव के बेटे माधवराव-2nd कुछ महीने की उम्र में पेशवा बने, बताते चले की माधव का जन्म अपने पिता की मौत के बाद हुआ था। इनके राज में मंत्रियों ने शासन किया और 1782 में अंग्रेजों के हमले के बाद हाथ खड़े करके उनके साथ संधि कर ली इस शर्त पर की आगे कि जंगों में वो अंग्रेजों के साथ लड़ेंगे। यहाँ बता दें की ब्रिटिश मैसूर पर1761 से हमले कर रहे थे लेकिन पहले हैदर अली और उसके बाद उनके बेटे टीपू सुलतान ने इनके छक्के छुड़ा रखे थे जिसके चलते उनकी इज्ज़त दांव पर लगी हुई थी।

इनके बाद असली सत्ता अंग्रेजों के हाथों में यही लेकिन जनता के लिए अंग्रेजों और पुणे के कुलीन(किसी भी राज्य का एक अमीर तबका जो सत्ता के करीब होता है, हर देश और जमाने में इस तबके का सत्ता पर बड़ा तगड़ा कण्ट्रोल होता है और कोई भी शासक इनके बिना राज नहीं कर सकता) समुदाय ने मिल कर पेशवा रघुनाथ राव के बेटे बाजीराव-2nd को पेशवा बना कर पेश किया जिनके नाम पर सबसे ज्यादा जंगें हारने का रिकॉर्ड है। सबसे पहले इन्हें अपने ही सरदार सरदार इंदौर के होलकर ने 1800 में ग्वालियर के सिंधिया के साथ मिलकर पुणे पर चढ़ाई कर दी और पूरी तरह से शहर को कब्ज़ा लिया, हालाँकि बाद में चूँकि अंग्रेजो के हित भी शामिल थे इसलिए उन्हें संधि के बाद लौटना पड़ा और पेशवा को उनकी गद्दी वापस मिल गयी। लेकिन तीन साल बाद ही अग्रेजों के साथ अपनी संधि तोड़ने के जुर्म में उन्हें फिर से जंग में जाना पड़ा और 1804 में एक नयी संधि के साथ उन्हें फिर से गद्दी मिली लेकिन अब उन्हें बस महल तक सीमित कर दिया गया था और शासन का सारा काम गायकवाड और अंग्रेज साथ मिल कर देखते थे। बदकिस्मती ने यहाँ भी साथ नहीं छोड़ा और उनकी ही जनता में उनके खिलाफ आक्रोश भड़कने लगा। दरअसल हुआ कुछ यूँ कि पेशवाई जाति से ब्राह्मण थी इसलिए शुद्रो पर अत्यचार करना उनका जन्मजात अधिकार था और इसे शुरू से आखिर तक सारे पेशवाओं ने भरपूर इस्तेमाल किया लेकिन पहले के पेशवा के खिलाफ कोई कुछ कह नहीं पाया। अब एक तो पेशवा नाम के थे तो दूसरी तरफ पेशवा के नाम के पीछे सत्ता चलने वाले गायकवाड और कुलीनों ने हद्द कर दी थी और दूसरी तरफ अंग्रेज सेना में भर्ती होकर उन्ही शूद्रों को भरपूर तन्खवाह और सम्मान मिलता था तो गुस्सा पेशवाई की तरफ आना लाजिम था।

अब हुआ ये की 1800 में हारने के दो साल बाद जो संधि हुई थी उसमे पेशवा बाजीराव-2nd को 6000 सेना और उनके कब्जे से मुक्त हुए सरदारों की रियासतों से कुछ कर मिलना तय हुआ था। लेकिन 1817 में सिंधिया ने कर देने से इनकार कर दिया और इस विवाद में अंग्रेजों ने आदतन अपना पैर घुसा दिया, या ये भी मुमकिन है कि अंग्रेज ही नाम के पेशवा को ऐश करवाते हुए ऊब चुके थे और उन्होंने ही अपने भरोसेमंद सिंधिया को कहा कर बंद करने को। बहरहाल विवाद बढ़ा और नवम्बर 1817 में अंग्रेज और पेशवा आमने सामने आ गये, पेशवा की तरफ से उसकी सेना थी और अंग्रेजों की तरफ से पेशवा के दबे कुचले महार जिनकी तादाद 500 थी, 1 जनवरी 1818 में पेशवा की सेना और महारों का सामना हुआ और थोड़ी ही देर में पेशवा सेना में ये अफवाह फ़ैल गयी की पीछे से अंग्रेजो की पूरी रेजिमेंट आ रही है, फिर क्या था भगदड़ मच गयी और 28000 मराठी वीरों ने 500 शूद्रों के सामने हथियार डाल दिए। इसके बाद पेशवा ने एक और सुलहनामा करके रिटायरमेंट ले लिया और गद्दी अंग्रेजो को सोंप कर पेंशन ले ली और 1851 में बिठुर में परलोक सिधार गये।
अब मामला ये है कि इस सारे झोलम झाल में मुझे अगर कुछ नहीं मिला तो वो है महानता।
शिवाजी ने अपनी जीत की शुरुआत के सरदार को रिश्वत देकर की, बेईज्ज़ती से राजा बने, बेटे को कैद हुई और वहीँ मौत हुई, दरबार में बागवत हुई, संभाजी को खुद के परिवार के खिलाफ लड़ना पड़ा वो भी एक दरबार के गद्दार बालाजी के साथ, बालाजी ने मुगलों पर जीत दर्ज की तो सरदारों को रिश्तो देकर,और उसे जीत नहीं माना जाएगा क्यूंकि वो खुद ही ख़त्म हो चुके थे, उल्टा जिसे जिताया उसे ही निहत्था करके असली सत्ता अपने हाथ कर ली। बेटे बाजी राव ने एक-दो जंगें लड़ी तो अय्याशी में मौत हुई, उनके बेटे नाना साहेब बाजीराव ने साम्राज्य फैलाया लेकिन अपना, छत्रपति को बेदखल कर दिया और आखिर में अब्दाली के हाथों बेटे और सरदार को मरवाने के बाद गम में मौत हुई।
इसके बाद माधव राव रिपेयर डैमेज में उम्र ख़त्म की, नारायण राव अपने सैनिकों के हाथो मरे, रघुनाथ राव नाकाबिल थे इसीलिए बेईज्ज़त करके महल से भगाए गये, इसके बाद सारा शासन ही दरबारियों और उसके बाद अंग्रेजों के हाथ में चला गया। देश के खिलाफ अंग्रेजो के साथ भी लड़े, खुद के सरदारों के हाथ हारे, रिश्वत देकर राजा बने रहे। चौथ वसूली की, अपनी ही जनता के शूद्रों पर अत्याचार किये, ऐसा कोई उल्लेखनीय निर्माण न किया जो आज मुगलों की तरह खड़ा होकर अपनी पहचान बताता हो। और सबसे आखिर में बेईज्ज़त होकर अंग्रेजों से पेंशन ली और सबसे बड़ा योगदान देश को ब्राह्मण राज नाम का एक ऐसा मर्ज़ दिया जिसका जख्म आज तक हरा है और देश आज गुलाम होने को तैयार है।
सही से देखा जाए तो 1719 से लेकर 1761 तक का जो युग है उसे महान मराठा युग कहा जा सकता है जिसमे पेशवा ब्राह्मणों ने छत्रपति को कठपुतली बना कर राज किया था, और हाँ इस 42 साल को महान मानने के लिए भी आपको तमाम रिश्वतबाजी और मस्तानी बायी को फ्रेम से निकाल आकर सोचना पड़ेगा तभी ये महानता टिकेगी !
और हाँ, उन्ही मराठों की देन, सिंधिया महाशय जेसे गद्दार,शिवसेना और संघ जेसे मानसिक पुत्रों का मैंने जिक्र नहीं किया है जो आज उन्ही का नाम लेकर आम जनता पर वैसे ही गुंडाराज करते हैं जैसे कल मराठे करते थे। और जब कोई खफा होकर खिलाफ होता है तो वैसे ही गद्दार बोलते हैं जेसे महारों को बोला गया था जबकि अत्याचार से छुटकारे के लिए किसी भी हद्द तक जाना हर किसी का हक़ है।
बस ऐसे महान थे हमारे मराठे।
अगर आप मराठो का आज के भारत में योगदान नहीं जानते तो यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते है।
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Mr Makkarchand. Peshwa Bajirao ne Poona ke aaspaas sikudi huyi saltanat ko delhi se sirhind tak pahucha diya. Kuch puncturewalo ko zyada dard hota hai is hakikkat se.