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क्या सच में मुसोलिनी का कोई फैसला गलत नहीं हुआ था? या वो मीडिया मैनेजमेंट था?

कैमरा, फोटो, भाषण, चिल्लाना, बस यही मुसोलिनी के शौक थे। शायद ऐसा इसलिए भी था क्यूंकि इन्ही चीज़ों ने उसे फर्श से चोटी पर ला दिया था और शायद इसलिए भी क्यूंकि उसके समर्थक इन्ही चीज़ों के मुरीद थे, विकास या प्रगति नाम की चिड़िया तो आज उसने देखी न थी सो इन्ही सब के बल पर उसकी गाड़ी चलती थी।


अगर आपने स्टोरी का पहला भाग नहीं पढ़ा है तो यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते है...



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हर एक तानाशाह चाहे कितना भी समझदार हो एक गलती जरूर करता है। उसे लगता है कि वो सब कुछ कर सकता है, सब कुछ चुटकी में चिल्ला कर या कोई बड़ा भाषण देकर ठीक कर सकता है लेकिन असलियत ये है कि एक इंसान हर जगह सही नहीं हो सकता इसलिए उच्च शिक्षा प्राप्त और जीवन भर का अनुभव रखने वाले कंपनी सीईओ भी अपने साथ एक सलाहकार कमिटी रखते है और हर एक देश का सुप्रीम कमांडर भी अपने साथ एक थिंक-टैंक रखता है जो उसे सही गलत का मशवरा देता है, भारत में भी प्रधानमंत्री के साथ ये थिंक टैंक हुआ करता था जो अब अपनी अंतिम साँसे दिन रहा है।


अब मुसोलिनी कोई आम नेता तो था नहीं, वो तो महराजधिराज थे जो चुटकी बजा कर इटली को सुपर पॉवर बनाने के लिए सत्ता में आये थे और यही वादा और सपना उन्होंने अपनी जनता को बेचा था जो चला भी था। अब ऐसी हालत में अगर वो किसी बेकार से कॉलेज से पढ़े अर्थशास्त्रियों से सलाह लेता तो नाक कट सकती थी, सो मुसोलिनी ने नीतियां बनानी खुद से शरू की, खुद देश को सिंगल हैण्ड से चलने की कोशिश की।


ध्यान रहे कि जब 1992 में मुसोलिनी सत्ता में आया तो उसे राजनीती और चिल्लाने का अनुभव् था लेकिन शासन का अनुभव शुन्य था और दोनों में जमीन असमान का फर्क होता है। पहले तीन साल बड़ी बड़ी घोषणाओं के बीच में गुजरे, अर्थव्यवस्था ठीक ठाक थी सो झेल गयी और अख़बारों ने मुसोलिनी के गुण गाने जारी रखे, वो इस लिए क्यूंकि साहब ने खुद के देश भर के अख़बारों का सुप्रीम एडिटर घोषित कर दिया था और उसकी मर्ज़ी के बिना एक एक्सीडेंट की खबर भी न छप सकती थी। इसके लिए वो जुमले में नहीं कई बार सच में ही 18-18 घंटे काम करता था।



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1925 का चुनाव आया तो देश भर में धूम थी और जनाब पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटे, इसे आप हमारे यहाँ का 2019 चुनाव मान सकते है। देश भर में मुसोलिनी को नेता से बढ़ कर भगवान का अवतार घोषित कर दिया गया और अब उसकी मुखालिफत करने का मतलब देश्द्रोह था और देशद्रोही क जीने को इज़ाज़त कहाँ होती।


लेकिन इस बीच एक बिन बुलाया मेहमान आ गया, 1929 में दुनिया भर में मंदी आ गयी और इटली की अर्थव्यवस्था को पिछले छह साल से साहब के अत्याचार सह रही थी अब जवाब दे गयी। अब यही वो वक़्त था जब मुसोलिनी साहब का काँटा उल्टा घूमना शुरू हुआ था। उन्हें शासन के नाम पर घोषणाएँ करना आता था सो यहाँ भी वही हुआ, कई 20 लाख करोड़ टाइप के ऐलान हुए और अंधाधुंध लोन बांटे जाने लगे, अनियोजित कारखाने लगने लगे, देश भर में कई गैर जरूरी सेंट्रल विस्टा टाइप प्रोजेक्ट शूरु हुए लेकिन कामयाबी हाथ न लागु, क्यूंकि कोई भी कॉन्ट्रैक्ट लेने का, सरकारी नौकरी यहाँ तक कि सरकारी भत्तों का एक ही रास्ता था फासिस्ट पार्टी ज्वाइन करके साहब की जय जयकार करना। ध्यान रखा जाता था कि लोन भी केवल अपने लोगों को मिले !


जनता को लुभाने और महान इटली का एहसास करवाने के लिए अंधाधुंध हथियारों को खरीद शुरु हुई और उन्हें पडोसी देशों पर तैनात किया गया, बस राफेल या S-400 की तरह। हथियार गैर जरूरी है या महंगा है या बजट नहीं है ये महान देश में वैसे भी कौन देखता है। उन्हें तो बस महानता से मतलब होता है अब उसके लिए चाहे गरीब के खून की आखिरी बूँद भी क्यूँ न निचडनी पड़े। अर्थव्यवस्था अब बद से बदतर हो चुकी यही और देश में भुखमरी के हालात हो चुके थे सो जनता के सर से मुसोलिनी के नाम का भूत उतर जायेगा इस बात का पूरा खतरा था। अब एक ही हथियार बाकी था जो किसी भी तानाशाह का आखिरी चारा होता है, युद्ध।



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पुराने रोमन साम्राज्य में एक बार अफ्रीका का देश इथोपिया भी रह चूका था सो अखंड इटली बनाने के लिए उसे जीतना बहुत जरूरी था। अखंड इटली या अखंड भारत का आप इस तरह समझ सकते है कि दिल्ली के किसी राजा ने दूसरी सदी में पंजाब जीता था, फिर आठवी सदी में किसी राजा ने बिहार जीत लिया और फिर पंद्रहवी सदी में दिल्ली के ही किसी राजा ने आधा दक्षिण भारत जीत लिया तो आज का दिल्ली का शासक जनता को ये बताएगा कि ये सारे इलाके कभी न कभी हमारे अंडर आ चुके है सो अब ये हमारे है, ये दावा करते हुए वो ये भूल जाता है कि उस समय में केवल क्षेत्र ही नहीं जीता था बल्कि जनता को भी अपनाया गया था। और अगर पांचवी सदी में अफ़ग़ानिस्तान हमारा था तो तेरहवी सदी में अफगानिस्तान का बाबर विदेशी केसे हो गया या अट्ठारहवी सदी का अफगानी शासक अहमद शाह दुर्रानी भला विदेशी केसे हुआ वो सब तो देशी हुए न?


लेकिन तानाशाही में तर्क नहीं चलते सेनाएं और घोषनाये चलती हैं, सो यहाँ भी चली और अखंड इटली के निर्माण के लिए इथोपिया पर हमला कर दिया गया। गाँव के गाँव जेहारीली गेसों से ख़त्म कर दिए गये और क्रूरता का की ऐसी कहानी लिखी गयी जिसे मुसोलिनी के चेले हिटलर के अलावा कोई न तोड़ सका, या हो सकता है आज किसी दूर देश में हाफ पेंट पहनने वाले ही लोगों की सेना तोड़ दे।

1935 की गर्मियां थी, इथोपिया जीता जा चूका था और साहब पूरे जोश में थे, उनकी मर्ज़ी के बिना उनका एक फोटो भी अख़बार में न छपता था, टीवी तब होते न थे। सिर्फ वही फोटो छपने को दिया जाता था जिसमे साहबी की छाती 56 इंच की दिख रही होती थी। जिसमे और वो थोडा हीरो जेसे दिख रहे होते थे। पूरी दुनिया इथोपिया हमले के खिलाफ थी लेकिन फिर भी चुप थी क्यूंकि अभी एक विश्व युद्ध होकर रुका था और दुनिया दूसरा नहीं चाहती थी। यहीं साहब अंदाजा लगाने में गलती खा गये और अपनी सत्ता के घमंड में एक और बड़ी घोषणा कर बैठे।


साहब ने जंग जीतने के बाद राजधानी में एक दीवार पर पांच नक़्शे लगवाए थे, जिनमे इटली के चार पुराने नक़्शे थे और पांचवा वो नक्शा था जो मुसोलिनी बनाने निकला था यानि अखंड इटली !


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अखंड इटली के नक़्शे में इजिप्ट भी आता था, रानी क्लियोपेट्रा में जमाने में इजिप्ट रोम का हिस्सा था और इसे जीतना जरूरी था। और इसलिए भी जरूरी था क्यूंकि इजिप्ट में स्वेज कैनाल थी, उस वक़्त के अंग्रेजों का अस्सी प्रतिशत व्यापार उसे से होता था तो दुनिया को कण्ट्रोल करने के लिए भी जरूरी था, इजिप्ट पर हमला करने की तय्यरियाँ हुई और साहब ने ये मान लिया की पूरी दुनिया अब मुझसे डरती है और मेरा ही डंका बजता है लेकिन सच्चाई कुछ और थी, दुनिया बस युद्ध से बचती थी वरना इस दुनिया ने तो सिकंदर को न छोड़ा मुसोलिनी कौन था।



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1935 से 1939 के बीच में मुसोलिनी ने एक एक करके इजिप्ट, सूडान और अल्बानिया पर हमला किया और पूरे यूरोप पर शासन करने के सपना सजा लिया जिसमे उसे अपने चेले हिटलर का साथ मिला हुआ था, हिटलर ने पोलैंड पर हमला किया और इसी के साथ दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया। जिस दुनिया को कमजोर समझने के गलती हुई थी उसने अब दोनों गुरु चेलों को सबक सिखाने के ठान ली थी।


जो जनता मुसोलिनी की वाहवाही करती थी अब वो उकता चुकी थी। मंदी, बेरोजगारी ने देश को बेहाल कर दिया था और इसके साथ बेतहाशा हथियार खरीदी और बेवजह की जंगों और इनके मरने वाले सैनिकों की लाशों ने जनता का मोह भंग कर दिया था। अब फैसला होने वाला था, अगले छह साल कुछ युद्ध तो कभी जनता के बीच उठने वाले विद्रोहों और विरोधो पार्टियों को दबाने में गुजरा लेकिन अब ढलान आ चुकी थी सो अब इस सबसे क्या होता।


1942 में अमेरिका भी जंग में शामिल हो गया और मुसोलिनी और हिटलर को जापान का साथ मिला, 1945 तक आते आते इंग्लैंड अमेरिका ने बढ़त ले ली, 1945 में जब अमेरिका और अंग्रेजों को सेनाएं इटली में घुस गयी तो मुसिलिनी के विरोधी दल उनसे जा मिले, राजधानी जब जाने वाली हुई तो अब भागने के अलावा कोई चारा न बचा।



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25 अप्रेल 1945 को मुसोलिनी ने जर्मन सेना की जीप में काफिले में शामिल होकर अपनी प्रेमिका के साथ जर्मन ड्रेस में कूच किया। खबर निकल गयी सो रास्ते में पकडे गये, पकड़ने वाली टुकड़ी के सरदार ने बताया की उन्होंने कई दफा मुसोलिनी को नाम से बुलाया लेकिन उसने जवाब न दिया तो जब मैंने कंधे पर हाथ रख कर हंस कर पुकारा तो उसने कहा कि किसी को ये मत बताना की मैं भागते हुए पकड़ा गया हूँ। वहां से उन्हें एक फार्म हाउस पर ले जाया गया और आखिर में अगले दिन उसे गोली मार दी गये लेकीन किस्सा यहाँ ख़त्म नहीं हुआ था।


मरने के बाद मुसोलिनी और उसकी प्रेमिका की लाश को 28 अप्रेल को मिलान शहर ले जाया गया जहाँ जनता उसके इंतज़ार में विशाल झुण्ड में इंतज़ार कर रही थी। उसकी लाश की किसी कुत्ते की तरह चौराहे पर फेंक दिया गया, एक औरत ने उसके मुंह पर पेशाब किया, लोगों ने मरे हुए चेहरे में गोलियां मारीं और चाकुओं से गोदा। लोगों में उसके खिलाफ इतनी नफरत थी कि वो यही न रुके बल्कि उन दोनों की लाशों को बीच चौराहे उल्टा लटका दिया गया और कई दिन वही लटका रहने दिया ताकि जो भी देर से आये वो भी उससे अपना बदला के सके। उसके मरने की घटना को आप इस विडियो में सुन सकते है।



एक ऐसा नेता जो कभी गलत साबित न हुआ वो दुनिया से चला गया और ऐसा गया कि सदियों के लिए अपनी कहानी छोड़ गया और जिसकी वजह से हिटलर ने गोएबल्स से कहा की मेरी लाश को मरने के बाद जला देना कहीं मुसोलिनी जेसा हाल न हो। लेकिन इस सबमे सबसे अहम बात ये है कि जब मुसोलिनी सत्ता के परवान पर था तब भारत में भी एक संगठन की स्थापना हुई थी जो मुसोलिनी के ब्लैक शर्ट्स की तरह हाफ पेंट पहनते थे, उन्ही की तरह लाठियां चलाते है, जिन्होंने मुसोलिनी को बधाई की चिट्ठियां भेजीं थी और मुक्तकंठ से हिटलर और मुसोलिनी की प्रशंसा भी की थी।



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और इसी संगठन में से एक श्री मुंजे ने मुसोलिनी के काम करने के तरीके को समझने के लिए इटली और जर्मनी का दौरा किया था, मुसोलिनी ने फरसे के निशान के साथ शासन शुरू किया था तो मुंजे ने त्रिशूल अपनाया। शुरुआत तो बिलकुल फासीवाद के जनक मुसोलिनी के जेसी हुई थी, दुआ है कि अंत मुसोलिनी जेसा न हो।


धन्यवाद् !


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