चे ग्वेरा - अमेरिका को अकेले दम पर छकाने वाला एक इंसान जिसे आपने टीशर्ट पर देखा होगा।
- TheoVerseMinds

- Jun 14, 2020
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वो कहते है न कि अपने मतलब के लिए तो हर कोई लड़ता है लेकिन जो बिना किसी मतलब के सिर्फ जुल्म के खिलाफ खड़े हो जाएँ ऐसा नेता सदियों में एक पैदा होता है। वो अकेला ही गरीबी को देखने के लिए मोटर साइकिल पर निकल पड़ा था, वो अकेले दम पर अमेरिका से भिड़ गया और अमेरिका की पिट्ठू सरकार को उखाड़ फेंका, वो जीता तो लोगों ने उसे सर पर बिठाया और मंत्री बनाया लेकिन उसे महलों में रहना पसंद न था तो गद्दी को लात मार कर निकल पड़ा जंगलो में और गुलाम देशो को अमेरिका से आजाद करवाने के लिए। वो मारा भी गया तो दुश्मनों में इतनी दहशत छोड़ गया कि उसकी कब्र तक आज तक लोगो के सामने न लायी गयी।

जी हाँ कुछ ऐसा ही था लैटिन अमेरिकी मार्क्सवादी क्रन्तिकारी चे ग्वेरा।
14 जून 1928 को दक्षिण अमेरिका के अर्जेंटीना देश के रोजारिओ कस्बे में एक गरीब परिवार में पैदा हुए अर्नेस्तो चे ग्वेरा बचपन से ही विद्रोही और जिद्दी किस्म के थे। बचपन में ही दमे की बीमारी ने पकड़ लिया लेकिन जिद और लगन हर चीज़ की ऐसी थी कि दमे की बीमारी पढने से न रोक सकी और पढाई के साथ साथ मेहनत और इलाज़ के दम पर दमे को हरा दिया। बचपन से गरीबी से बहुत करीबी रिश्ता रहा था तो मन थोडा खिन्न रहता था।
गरीबी से लड़ते लड़ते कार्ल मार्क्स के विचारो से प्रभावित हो गये। बड़े हुए तो अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स के एक मेडिकल कॉलेज में MBBS में दाखिला मिला, लेकिन गरीबी से रिश्ता इतना गहरा था कि बीच में ही पढाई छोड़ कर एक दिन दक्षिण अमेरिका भ्रमण का इरादा बना लिया। एक दोस्त अल्बर्टो ग्रानादो को साथ लिया और एक पुरानी 500 cc की नॉर्टन बाइक पर निकल पड़े लैटिन अमेरिका की गरीबी को करीब से देखने के लिए।

1948 में शुरू हुआ ये सफ़र तीन साल लम्बा था और इसके दौरान वो दोनों दोस्त लैटिन अमेरिका के दर्जनों देशो से गुजरे, सेंकडो इंडस्ट्रियल एरिया और सेंकडो खदान और जंगलो वाले एरिया में सफ़र किया, काम करते और मालिक ठेकेदारों के बीच में पिसते मजदूर देखे, पैसे की कंगाली में इलाज के बिना मरते गरीब भी देखे और साथ में उन्होंने देखा इस सबसे पलने वाला अमेरिका के धन्ना सेठो का मोटा पेट जो अमेरिका के अपने आलिशान महलों में बैठ कर दुनिया में शांति और विकास लाने की बात करते है जबकि उनके विकास की कीमत ये कारखानों और खदानों में काम करने वाले मजदूर चुकाते है, उन्होंने देखा कैसे कम्पनियों की पैसे की भूख से कटते जंगलो से गाँव के गाँव उजाड़ जाते है और हत्या बलात्कार आम तरीका होता है जंगल खाली करवाने का।

जब ग्वेरा 1951 में वापस ब्यूनस आयर्स पहुंचे तो उन्होंने इस सफ़र को मोटर साइकिल डायरीज के नाम से एक किताब के रूप में संजोया और आगे की अपनी पढाई पूरी की। एक साल बाद युनिवेर्सिटी से डॉक्टर की डिग्री मिली। अब ग्वेरा चाहते तो सारी उम्र लोगों का इलाज़ करके या मेडिकल प्रोफेसर बनकर अपनी गरीबी दूर कर सकते थे और सारी उम्र शांति से ब्यूनस आयर्स के शहर में गुजार सकते थे लेकिन उन्हें अब ये रास नहीं आ रहा था और उन्हें जंगल में पिसते तड़पते लोग याद थे। उन्हें याद था कि किसी तरह जब उन्होंने अमेज़न के जंगल में लेप्रोसी से लड़ते लोगो का मुफ्त में इलाज़ किया था तो कैसे गाँव वालो ने ग्वेरा को मुफ्त में नाव दी थी।
उन्होंने आगे की जिंदगी हथियारों के सहारे लड़ने का फैसला किया और एक बार फिर शहर की जिंदगी छोड़ कर जंगल की राह ली। उस समय दक्षिण अमेरिका की इंका सभ्यता अपने आखिरी दौर में थी और संयुक्त राज्य अमेरिका दक्षिण अमेरिका में पैर ज़माने के लिए वहां धडाधड उन लोगो का क़त्ले आम करा रहा था साथ ही आज की तरह उस वक़्त भी अमेरिका ही पूरी दुनिया के पूंजीवाद का केंद्र था।
ग्वेरा ने अपने विद्रोह का निशाना अमेरिका को बनाने का फैसला किया और उत्तरी अमेरिका के देश और संयुक्त राज्य अमेरिका के पडोसी गरीब देश ग्वाटेमाला का रुख किया। उस समय ग्वाटेमाला के राष्ट्रपति याकोबो आरबेंज़ गुज़मान अपने देश में समाज सुधार का अभियान चला रहे थे और अमेरिका इसके खिलाफ था क्यूंकि समाज सुधार का सीधा मतलब था वहां काम करने वाली अमेरिकी कम्पनियों को नुक्सान। ग्वेरा वहां समाज सुधारक के तौर पर काम करने लगे। अगले साल 1954 में अमेरिका ने सीआईए के दम पर गुजमान की सरकार को गिरा दिया और अपने पिट्ठू नेताओं को सरकार में बिठा दिया और FDI से लेकर तमाम अमेरिकी हितों वाले कानून वहां एक एक करके लागू करवा दिए।
ग्वेरा ने ग्वाटेमाला छोड़ दिया और मेक्सिको पहुँच गये कहा उनकी मुलाकात क्यूबन क्रन्तिकारी फिदेल कास्त्रो और उनके भाई राउल कास्त्रो से हुई, ग्वेरा उन दोनों के साथ क्यूबा पहुंचे और क्यूबा की मशहूर क्रांति में हिस्सा लिया और गुरिल्ला युद्ध के दम पर सरकार के पसीने छुड़ा दिए। क्यूबा में उन दिनों अमेरिका समर्थित तानाशाही सरकार थी और क्यूबा अघोषित रूप से अमेरिका का गुलाम था इसलिए क्यूबा में सरकार के गिर जाने का मतलब था अमेरिका का हार जाना।
ऊंचे बूट और फौजी पोशाक पहन कर सिगार पीते हुए घोड़े पर सवार गोरिल्ला जंग करने वाले ग्वेरा जल्द ही क्रांतिकारियों में मशहूर हो गये और सब उन्हें प्यार से चे कह कर बुलाया करते थे जिसका मतलब होता है अपना या प्यारा। ग्वेरा ने सौ लड़ाकों को अपने साथ लेकर जंग शुरू की और आखिर कार 1959 में जीत हासिल की।
सरकार में आने के बाद ग्वेरा ने तीसरी दुनिया के तमाम देशों को साथ लाने की कोशिश की और इसी सिलसिले में वो 30 जून 1959 को भारत में आये जहाँ उन्हें तत्कालीन पीएम नेहरु ने नए नए बने होटल अशोक में मेहमान बनाया और इसके बाद ग्वेरा ने भारत में कई अन्य जगहों का दौरा भी किया।


जीतने के बाद फिदेल कास्त्रो को क्यूबा के राष्ट्रपति बने थे तो ग्वेरा को इनाम के तौर पर क्यूबा के नेशनल बैंक का अध्यक्ष बनाया गया लेकिन उन्होंने ये पद ठुकरा दिया और जेल मंत्री का पद संभाला और चार्ज लेते ही अगले कुछ महीनों में एक एक करके लगभग 550 तानाशाह के समर्थकों को बिना मुकदमा चलाये फांसी दे दी। बीबीसी की डॉक्यूमैंट्री आज भी उन्हें इन्ही का आधार बना कर हत्यारा घोषित करती है लेकिन उनके क्यूबा के समर्थक आज भी उनकी पूजा करते है।
इसके बाद ग्वेरा क्यूबा के उद्योग मंत्री भी बने।
अमेरिका ने जब क्यूबा में सरकार गिरने की बेईज्ज़ती का बदला लेने के लिए हाथ पाँव मारने को कोशिश की तो फिदेल और ग्वेरा ने साथ मिलकर एक अलग रणनीति पर काम किया की दुशमन का दुश्मन दोस्त होता है और वो सीधा सोवियत(आज का रूस) से जा मिले और उन्हें क्यूबा में अमेरिका के खिलाफ परमाणु मिसाइल तैनात करने का न्योता दे दिया। अमेरिका ने सोवियत के खिलाफ तुर्की में मिसाइल तैनात कर रखे थे और सोवियत भी कहीं अमेरिका के पड़ोस में अपना अड्डा बनाने की जुगत में था तो उनके लिए ये न्योता किसी मुंह मांगी मुराद जैसा था।

जब सोवियत की परमाणु हथियारों से लेस पनडुब्बी क्यूबा पहुंची तो अमेरिका ने अपने जंगी जहाज़ रास्ते में तैनात कर दिये और दुनिया परमाणु जंग के कगार पर जा पहुंची, पूरी दुनिया के देशो के मान मनोवल के बाद अमेरिका और सोवियत अपनी अपनी पोजीशन से पीछे तो हटे लेकिन अमेरिका को क्यूबा में दखल न देने की बात माननी पड़ी। 1964 में ग्वेरा क्यूबा के प्रतिनिधि के तौर पर संयुक्त राष्ट्र गये तो बड़े बड़े नेता उस 36 साल के नौजवान को सुनने के लिए आतुर थे।
एक साल बाद एक बार फिर ये महलों वाली जिंदगी ग्वेरा को नागवार गुजरने लगी और उन्हें अपना मकसद, अमेरिका, जंगल और बंदूके याद आने लगी और साथ ही उनके अपने पुराने साथी फिदेल कास्त्रो के साथ कुछ मुद्दों पर मतभेद भी हो गये थे। उन्होंने 1965 में फिदेल को मंत्री पद का इस्तीफ़ा देकर क्यूबा से विदा ली और अफ्रीका के कांगो का रुख किया जहा उन दिनों बेल्जियम के समर्थन वाली कठपुतली सरकार थी। ग्वेरा ने क्यूबा की तर्ज पर कांगो में भी विद्रोही लड़को को इकठ्ठा किया और उन्हें गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग देनी शुरू की और उन्हें सिखाया की कैसे क्यूबा में इसी ट्रेनिंग के साथ 500 से भी कम लडाको ने कैसे पूरी सरकार को गिरा दिया था, अफ़सोस मगर कोंगो में उनकी क्रांति असफल रही और उन्हें तत्कालीन दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ने ज्यादा हीरो न बनने की सलाह भी दे डाली।
कांगो से निकलने के बाद फिदेल ने उन्हें क्यूबा वापस आने का न्योता दिया लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया और उन्होंने दक्षिण अमेरिका के देश बोलीविया में जाकर डेरा दाल दिया जहा की सरकार अमेरिका समर्थित थी और उन्होंने वहां के जंगलों मे रहने वाले विद्रोहियों को अमेरिका के खिलाफ ट्रेन करना शुरू कर दिया।

ग्वेरा यहाँ अपने मकसद में कामयाब होते जा रहे थे लेकिन कहते है न की किस्मत हर बार साथ नहीं देती, उन्होंने अकेले दम पर अमेरिका जैसी महाशक्ति से लड़ने अक बीड़ा उठाया था। बोलीविया में उनके साथ धोखा हुआ और किसी ने अमेरिका समर्थित बोलीविया की सेना को उनकी लोकेशन बता दी। सेना की रेड हुई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
अमेरिका उनसे इतना डरा हुआ था कि उन्हें दुनिया के सामने लाने या मुक़दमा चलाने की हिम्मत न दिखाते हुए सीधे गोली मारने का आदेश दे दिया गया और 9 अक्टूबर 1967 को बोलिविया के ला हंगेरिया नाम के शहर में उन्हें गोली मार दी गयी। मरने से पहले उन्होंने खुद को गोली मारने वाले सैनिक से कहा था कि आप मुझे गोली मार सकते है क्यूंकि ये गोली केवल मुझे मार सकती है और मेरे विचार और क्रांति हमेशा धधकती रहेगी और अमेरिका के सीने में हलचल मचाती रहेगी।

सीआईए के एक अधिकारी ने एक बार कहा था कि क्यूबा क्रांति के बाद अमेरिका ग्वेरा से इतना डर गया था कि उन्हें किसी भी कीमत पर पा लेना चाहता था। अमेरिका इतना डरता था कि उसने कभी भी दुनिया को ग्वेरा की कब्र की लोकेशन नहीं बताई की कहीं कब्र से प्रेरित हो कर लोग उसे पूजें और क्रांति कर बैठें। डर का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते है कि दुनिया भर में मानवाधिकार का राग गाने वाला देश उनके खिलाफ मुक़दमा करने की हिम्मत नहीं कर पाया और सीधे गोली मार दी वरना खतरा था कहीं उनके मुक़दमे की खबर दुनिया भर में क्रांति न भड़का दे और ये गिरफ़्तारी अमेरिका का अंत बन जाए।
आज क्यूबा में क्रांति के 60 साल बाद भी उस हीरो को पूजा जाता है, पूरा क्यूबा आज भी अमेरिका के खिलाफ डटा हुआ है। यहाँ तक की क्यूबा मिसाइल संकट के बाद जब अमेरिका क्यूबा के खिलाफ कोई कार्रवाई न कर सका तो पुरानी आदत के मुताबिक आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए, दुनिया भर के देशों को क्यूबा के साथ व्यापार करने से मन कर दिया सिवाय चाइना और रूस समर्थक कुछ देशों के। लेकिन क्यूबा इससे टूटा नहीं बल्कि मज्बूत हुआ।
उस छोटे से देश में आज आप जायेंगे तो आपको ऐसा लगेगा जेसे अचानक आप पचास साल पीछे चले गये हो क्यूंकि वहां कोई भी गाड़ी या मशीनरी लेटेस्ट मॉडल को नहीं मिलती सिवाय चाइना मेड के। वहां के लोगो को जब नयी गाड़िया मिलनी बंद ओ गयी तो उन्होंने पुरानी 60 मॉडल की गाड़ियों को रिपेयर करके चलाना जारी रखा और धीरे उनके स्पेयर पार्ट्स भी बनाना सीख लिया, वो आज भी उन्ही गाड़ियों को चला रहे है और हर एक गाड़ी इतनी रिपेयर हो चुकी है कि हर एक पार्ट कई बार नया हो चूका है। वहां आपको कोई स्मार्टफोन नहीं मिलेगा क्यूंकि एंड्राइड और एप्पल दोनों अमेरिका के है, वो आज भी फीचर फ़ोन चला रहे है वो भी तबसे जब चाइना ने वहां बेचना शुरू किया था।
उनके कंप्यूटर भी असेम्बल किये हुए लिनक्स सिस्टम पर चलते है क्यूंकि विंडोज अमेरिका का है ,आज भी अमेरिका क्यूबा को अपने को तरसता है लेकिन ग्वेरा के साथी फिदेल कास्त्रो के भाई राउल कास्त्रो के शासन में आज भी क्यूबा ग्वेरा के कदमो पर ही चल रहा है और आजादी की कीमत समझता है। वो हमारी तरह विकास में अंधे होकर खुद को बेचना शायद अभी नहीं सीख पाए है।
ग्वेरा के आखिरी शब्द की मेरे मरने के बाद भी मेरा अस्तित्व रहेगा, आज भी पूरी तरह सच है।
आज किसी देश में लोग खुद के अपने लोगो को भूल जाते होंगे लेकिन चे ग्वेरा की फोटो वाली टीशर्ट, जीन्स, कॉफ़ी मग और बहुत सारा सामान आपको दुनिया भर में मिल जायेगा। उनकी लिखी किताबे मोटर साइकिल डायरीज और टेक्निक ऑफ़ गुरिल्ला वार आज भी दुनिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में से एक है और उनके ऊपर लिखी किताबे भी छात्रो में मशहूर है।
शायद खुद को भुलाकर दुनिया भर में क्रांति जगा कर गरीबो को आजाद करने का सपना देखने वाले इंसान के लिए इतना सम्मान कम है। आज 14 जुलाई को उस महान आत्मा का जन्मदिन है और अगर वो जिन्दा होते तो 92 साल के होते।
ग्वेरा ने एक बार कहा था की -
“Many will call me an adventurer, and that I am...only one of a different sort: one who risks his skin to prove his truths.”
"अनुवाद - लोग मुझे रोमांचकारी कह सकते है, हाँ वो मैं हूँ। लेकिन वो रोमांचकारी हूँ जो सच को साबित करने के लिए अपनी जान को दांव पर लगाता है। "
उनकी क्रांति की गूँज आज भी अमेरिका के कानों में गूंजती है और आज के कुछ दिनों पहले तक अमेज़न उनके नाम वाला सामान नहीं बेचता था, आज भी ब्रिटिश BCC उन्हें तानाशाह और हत्यारा नरसंहारी कह कर बुरा साबित करने की नाकाम कोशिश करते है लेकिन वो योद्धा आज भी लोगो के दिलों में जिन्दा है।
धन्यवाद्।
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