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मुसोलिनी - एक ऐसा नेता जिसका कोई फैसला गलत नहीं हुआ !

Updated: Jun 3, 2020

वो शायद पहला ऐसा नेता था जिसने दुनिया को फासीवाद नाम की चीज़ से रूबरू कराया था, जिसने शासन करने से ज्यादा इस चीज़ पर ध्यान दिया कि जनता को किस तरह मुद्दों से हटा कर अपनी भक्ति में लगाया जाए। जिसके विरोधी या तो मारे जाते थे या भाग जाते थे या उसी की पार्टी में आ मिलते थे।


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ऐसा था महान ड्यूस बेनिटो मुसोलिनी। सुने हैं आज किसी दूर देश के किसी नेता को उनके जेसा बनने का शौक़ चढ़ा है।


मुसोलिनी का जन्म 1882 में इटली के Predappio शहर में हुआ था। माँ एक टीचर थी और बाप अय्याश था और पेशे से लुहार था। बचपन से न कोई हुनर सीखा न लड़ना न उच्च शिक्षा मिली और न ही किसी नेता से राजनीती सीखी थी, न ही बहुत होशियार था और न ही बहुत पंहुचा हुआ कारीगर।


अलबत्ता बातें करने, मौका भांपने और लोगों का मन भांप कर उन्हें बोतल में उतारने का हुनर खूब आता था, बचपन से गली के गुंडे टाइप चाकू चलाने में महारत हासिल थी। झूठ बोलना उनकी खासियत थी और यही एक गुण था जो उसे सत्ता के चरम तक ले जाने वाला था।


बचपन में स्कूल में मन न लगता तो जुआ खेलने की लत लग गयी, एक दिन खेल में झगड़ा हुआ तो साथ खिलाडी में पेट में चाकू घोंप दिया, लड़का मुसोलिनी के ही स्कूल का था सो स्कूल से निकाल दिया गया। जवानी आई तो इटली के राजा King Victor Emmanuel III ने हर एक जवान को अनिवार्य रूप से सेना में भर्ती होने का नियम बना दिया। अब सेना में लड़ने और गली में चाकू चलाने में फर्क होता है सो साहब ने जान बचाने के लिए 1902 में देश छोड़ दिया और स्विट्ज़रलैंड में पनाह ली।



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वहां लुसान युनिवेर्सिटी में उन्होंने राजनीति और समाज की थोड़ी बहुत समझ ली जो बाद में उनके बहुत काम आई। राजेनीतिक भाषण देने और लोगों को फुसलाने का हुनर मुसोलिनी को यहीं से मिला। अगले साल 1903 में जब राजा ने भागे हुए लोगों को राहत दी और एमनेस्टी के तहत वापस आने की छूट दी तो मुसोलिनी ने वतन वापसी की राह ली। वापस आ आकर उसने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली। लेकिन वहां भी मन न लगा और नौकरी छोड़ कर L'Avvenire del Lavoratore नाम के एक अखबार में एडिटर की नौकरी कर ली और जब वहां भी बात न बनी तो उस नौकरी को भी तिलांजलि दे दी।


राजनीती की समझ और चिल्ला कर सवाल पूछने का हुनर आता था साथ में अख़बार एडिटिंग भी सीख ली थी इसीलिए अब उन्होंने ने 1910 में Lotta di classe के नाम से खुद का एक अखबार निकाल जो हफ्ते में एक बार छपता था। अगले 5 साल तक उन्होने किसी मिट्ठू तोते की तरह खुद के अखबार से खुद की कलम से खुद के लिखे और एडिट किये हुए कॉलमों में खुद की भर भर कर तारीफ की और हाँ, आज के किसी रिपब्लिक टीवी की तरह सरकार से नेशन वांट्स तो नो पूछना भी जारी रखा !


इटली या यूँ कहें की रोम एक पुरानी सुपर पॉवर रह चूका था वो भी एक बार नहीं कई बार लेकिन अब एक औसत दर्जे का देश था और ये बात साहब को बड़ी कुढती थी, अन्दर से चुभन हुई तो मन ही मन देश को फिर से आसमान पर ले जाने की कसम खायी। सोशलिस्ट पार्टी के मेम्वर थे लेकिन वहां अनुशासन नाम की एक बड़ी बुरी बीमारी थी जो साहब को पसंद न थी सो 1915 में पार्टी से अपने जेसे कुछ गुंडे टाइप नेता और कार्यकर्ता तोड़ कर एक नयी पार्टी बनायीं जिसका नाम रखा गया फासिस्ट पार्टी और इस तरह दुनिया ने फसिस्म नाम की कोई चीज़ पहली बार सुनी या देखी।


अब दुनिया की हर एक फासिस्ट ताकत को एक दुश्मन जरूर चाहिए होता है सो इन्होने भी ढूँढा और वो थे कम्युनिस्ट या देश का हर वो इंसान जो मुसोलिनी को नापसंद करता था। इनका काम करने का तरीका कोई खास न था, बस अपनी रेलियों में चिल्ला चिल्ला कर पुराने रोमन राजाओं सीजर, अगस्तस के किस्से उनकी महानता की कहानियां सुनियी जाती थी। पुराना रोम वापस दिलाने के वादे किया जाते थे।


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पुरानी महानता के नाम पर श्रीमान मुसोलिनी चंदा वसूलते थे, फासिस्ट कार्यकर्ता ब्लैक शर्ट के साथ हाफ पेंट पहन कर चलते थे सो इन्हें ब्लैक शर्ट्स के नाम से बुलाया जाता था। ये रोज अपनी मीटिंग करते थे और लाठी चलाने की प्रैक्टिस करते थे, जो चन्दा न देता या साहब को पसंद न करता तो उसकी हड्डियाँ भी तोड़ते थे। कहने का मतलब था कि देश भर के गुंडे मवालियों को एक सही अड्डा मिलने लगा था तो धडाधड भर्तियाँ हुईं और जल्द ही ब्लैक शर्ट देश की सेना को टक्कर देने लायक हो गये। बड़ी पार्टियों के नेता खुले आम पीटे जाने लगे लेकिन पुलिस की इतनी हिम्मत न होती थी कि उन्हें रोक सके..


वैसे आज से कुछ साल पहले भी किसी देश के एक वालरस जेसी मूंछो वाले इंसान ने कहा था कि हम 3 दिन में सेना से बेहतर टीम बना सकते है, क्या पता दोनों में क्या रिश्ता होगा।


खैर, 1921 आते आते ब्लैक शर्ट्स देश की सबसे बड़ी ताकत बन गये और साहब उनके लीडर क्यूंकि चिल्लाकर भाषण देने का हुनर उनके पास ही था। 1921 के आखिर में देश की मजदूर यूनियनों ने तनख्वाह को लेकर हड़ताल कर दी और राजा इसे सँभालने में नाकाम रहा तो मुसोलिनी ने ऐलान किया कि ब्लैक शर्ट्स इन सब को 2 दिन में रास्ते पर ला सकते है, लाना जरूरी भी था क्यूंकि देश को आगे बढ़ने के लिए पैसा चाहिए था तो काम नहीं रुकना था अब मजदूरी मिले न मिले वो महान देश में कौन देखता है?



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आखिरकार साहब ने खुद ही कमान संभाल ली यूनियनों पर हमला शुरू कर दिया, सेंकडो यूनियन लीडरों को देश भर में या तो मार दिया गया या घायल कर दिया और सच में तीन दिन में सारे मजदूर अपने काम पर जा रहे थे और इस घटना ने साहब के चाहने वालों की संख्या में दोगुनी से ज्यादा तरक्की कर दी। अब उन्हें अपने आप की मशहूर दिखाने के लिए सरसों के दाने वाला फोटो नहीं डालना पड़ता था


अगले एक साल में सरकार को नाकाम बताने की हर एक कोशिश की गयी, अन्ना हजारे टाइप के धरने ही हुए और ये बता दिया गया की कैसे ये सरकार नकारा है और देश को आगे ले जाने का केवल एक ही तरीका है और वो है मुसोलिनी को गद्दी पर बिठा देना और वो चुटकी बजा कर सब हल कर देगा। या आप यूँ समझ लें की 2014 वाला पूरा माहौल था और अब चुनाव की देर थी। वैसे ऐसी बात नहीं है की उन्होने पहले चुनाव नहीं लड़ा था, बस पेहले इतने मशहूर न थे तो गिनी चुनी पैतींस सीटें ही मिल पायीं थी।


1922 में देश भर में सरकार की नाकामयाबी का ढोल पीटने के बाद आखिरकार मुसोलिनी ने नेपल्स शहर में एक रैली में ये साफ ऐलान कर दिया की अब सरकार इटली को बर्बाद कर रही है इसीलिए ब्लैक शर्ट्स सत्ता संभालेगे, सरकार की मर्ज़ी है वो आराम से सत्ता हमे देदे वरना हम रोम आ कर जबरदस्ती सत्ता पर कब्ज़ा कर लेंगे। और 27 अक्टूबर को उसने 30000 ब्लैक शर्ट्स के साथ नेपल्स से रोम की तरफ मार्च करना शूरु कर दिया। शोहरत आसमान की बुलंदियां छू रही थी, मार्च की ख़बरें देश भर में फ़ैल गयी, रास्ते में पड़ने वाले हर एक शहर में भव्य स्वागत हुआ, रैलियां हुईं, पुराना रोम लौटाने की बातें और वादे हुए।



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राजा के चमचो ने सेना भेज कर मार्च को रोकने की सलाह दी लेकिन राजा डरपोक था, या क्यूँ कहें की ब्लैक शर्ट्स की असली ताकत जानता था और उसे पता था कि अगर किसी तरह मुसोलिनी ने सेना से जीत कर रोम में कदम रखा तो सबसे पहले राजा की गर्दन उड़ाई जाएगी। राजा का वहम गलत भी नहीं था क्यूंकि उस वक़्त सेना आज के जितनी एडवांस नहीं होती थी और जनता के पास भरपूर हथियार होते थे न की आज की तरह खाली हाथ सो सेना के हारने के पूरे चांस थे।


राजा ने समझदारी से काम लिया और रोकने के बजाय मुसोलिनी को रोम आ कर सरकार बनाने का न्योता भिजवा दिया। ब्लैक शर्ट्स की फ़ौज सीना चौड़ा करके संसद पहुंची और मुसोलोनी को महाराजाधिराज बनाया गया और अब तय्यारी थी चुटकी बजा कर इटली की सारी समस्याएँ हल करते हुए इटली को दुनिया में सबसे महान बनाने की।


दुनिया भर के तानाशाही शासकों ने बधाईयाँ भेजी और इन बधाइयों में एक भारत से भी थी, फर्क इतना था कि वो किसी शासक की तरफ से नहीं बल्कि एक कमजोर कांग्रेसी की तरफ से थी जो ऐसी ही हाफ पेंट की सेना बना कर अखंड भारत का सपना सजाये बेठा था।


बाकि आगे..........


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