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कुरून ऐ औला - साइंस की माहिर मुस्लिम सभ्यता, जैसी न कभी थी न कभी फिर से सामने आ सकी!

अच्छा कभी आपने सोचा है की ऐसा क्या है जब हम यूरोप का इतिहास पढ़ते है तो हमें यूनान और ग्रीस की उन्नत सभ्यता को पढ़ाया जाता है लेकिन उसके बाद उनका इतिहास सीधा तेरहवी सदी में मेग्नकर्ता के लैटर पर आ अटकता है। बीच के 1200 साल कहां जाते हैं पता ही नहीं चलता।



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और इसके बाद भी वो इस पर नहीं रुकते, वो अगले दो सौ साल का जम्प मार कर सीधा ईस्ट इंडिया कंपनी से अपना इतिहास पढ़ाना शुरू करते है, आखिर ऐसा क्या है जो खुद को वर्ल्ड लीडर कहने वाले इन इतिहासकारों और लेखकों को एक हज़ार साल से ज्यादा का इतिहास छुपाने के लिए मजबूर करता है।


जवाब है एक ऐसी अज़ीम सभ्यता जो इतनी महान थी कि उसका अगर एक हल्का सा जिक्र भी किया जाएगा तो लोग हैरान रह जायेंगे की इतनी उन्नत सभ्यता आज से डेढ़ हज़ार साल पहले कैसे हो सकती थी।


कहानी शुरू होती है 570 से, आप मुहम्मद(محمد صلى الله عليه وسلم) इस दुनिया में आये और 40 साल की उम्र में नबी होने का ऐलान किया, इस के बाद से आप की जिंदगी के अगले 22 साल के हर एक पल हर एक हरकत और घटना को लिखा गया, ताकि आने वाली दुनिया में किसी भी परेशानी के समय ये जाना जा सके की इस तरह के हालात में आप किस तरह का फैसला लेते थे। और ये लिखने का काम किसी एक ने नहीं किया, बल्कि जितने भी सहाबी(वो लोग जो ईमान की हालत में आपके साथी थे) उस समय आपके पास मोजूद होते थे वो सब एक ही घटना को अलग अलग अपने तरीके से दर्ज करते थे ताकि किसी भी छोटी से छोटी चीज के छूटने की उम्मीद न रहे।


लेकिन ध्यान देने की बात ये है की ये सब सिर्फ देख कर लिखी गयी चीज़ें थी, ठीक वैसे ही जैसे कोई बच्चा क्लास में बोर्ड पर लिखी चीज़ों को अपनी कॉपी में लिख लेता है या कोई रिपोर्टर अपनी डायरी में, इस शुरूआती रिकॉर्ड में जानकारी तो होती है लेकिन इससे कुछ सीख हासिल नहीं किया जा सकता क्यूंकि ये बिखरी हुई जानकारी है, इसीलिए इस पर बाद में काम करके फिर से सही करके सिलसिले वार तरीके से लिखना जरूरी होता है। ठीक वैसे ही जेसे रिपोर्टर डायरी की बिना पर अपनी रिपोर्ट तैयार करता है जिसे बाद में अखबार में छपा जाता है।


ठीक उसी तर्ज पर आप की मौत के ठीक बाद से जहाँ एक तरफ खलीफा-ऐ-इस्लाम का लश्कर दुनिया को जीतने के लिए निकल चूका था तो दूसरी तरफ उस वक़्त के स्कॉलर उस सारी जानकारी जो आपने अपनी जिंदगी में दी थी, उसे सही ढंग से किताबो में लिखने में जुट गये, किताबें बताती है की इस काम को सही तरीके से अंजाम देनें में तीन सदी का वक़्त लगा, और इसके साथ ही उन सभी स्कॉलरस ने आप की एक बात को अपना मकसद बना लिया, कि पैदा होने से लेकर मरने तक सीखते रहो और इल्म चाहे जैसे भी मिले उसे हासिल करो।


अपनी इस इल्म की तलाश को पूरा करने के लिए दुनिया भर का सफ़र किया गया, और दुनिया भर से किताबों और जानकारियों को इकठ्ठा किया गया, वो चाहे यूनान के पुराने चर्चो में पड़े सुकरात और अरस्तु के जमाने की किताबें हो या भारत में मंदिरों के तहखानों में सड़ने को मजबूर साइंस की किताबें हो जो उससे कई सदी पहले लिखी गयी थी और उनके लिखने पढ़ने वाले आर्यों के हमले के साथ खतम हो चुके थे।


इल्म की एक खासियत होती है, वो जहाँ जाता है खुशहाली लाता है।


उस इल्म की ताक़त और अपनी मेहनत के बल पर मुसलमानों ने एक ऐसी अज़ीम सल्तनत और हुकूमत कायम की जिस के सामने आज का यूरोप और अमेरिका भी दबी जुबान से चिढ़ता है कि आखिर हम ऐसा मुल्क फिर से क्यूँ नहीं बना सकते या ऐसे लोग हमारे क्यूँ नहीं हो सकते, हम तो आखिर उनसे एक हज़ार साल से ज्यादा आगे है। दोस्तों कुरून-ऐ-औला किसी देश या इलाके का नाम नहीं था, बाकि ये एक तहजीब एक दौर को कहा जाता है जिसकी शुरुआत 711 में अल-तारिक के उन्दुलुश जीतने के साथ शुरू हुई और 1492 में उसी उन्दुलुश के वापस हारने के साथ ख़त्म हुई, अगर आपको उन्दुलुश के बारे में जानकारी नहीं है तो आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते है।


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उस वक़्त की मुसलमानों की कामयाबी का हाल ये था की जो भी खाते या पहनते थे वो फैशन हो जाता था, यूरोप इस जमाने को डार्क एजेस या मध्यकाल कह कर बुलाता है क्यूंकि ये उनका डार्क टाइम था जहाँ सिर्फ पोप ही की सत्ता चलती थी जबकि मुसलमानों ने उस समय साइंस और ज्ञान का हर वो क्षेत्र जो आज मोजूद है उसमे इस कदर तरक्की हासिल कर ली थी की यकीन करना मुश्किल था। और इस का कारण था उस समय की इमानदार अदालते, बेहतर एजुकेशन सिस्टम और उस समय के शासको की उन्नति की तरफ लगन जिसने अपने समय के न केवल मुस्लिम बल्कि यहूदी और ईसाई विद्वानों को मुस्लिम सलतनत में आने पर मजबूर कर दिया ठीक वैसे ही जैसे आज कोई भी IIT करते ही अमेरिका भागता है क्यूंकि अपने देश में उसे ऊंची लेवल की रिसर्च के लिए न माहौल मिलता है न इज्ज़त और न ही पैसा।



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उन लोगो ने जब उन्दुलुश में इस्लामी झंडा लहराया और पहले मदरसा कायम किया तो उसका लाईब्रेरियन एक इसाई को बनाया क्यूंकि वो काबिल था और दूसरा की किसी को ये कहने का मौका न मिले की मुस्लिम कम्युनल कौम है, उन्होंने यूनिवर्सिटीज बनायीं, स्कालरशिप शुरू की, एग्जाम सिस्टम बनाये, पुलिस सिस्टम इजाद किया, नस्ल के मुताबिक बादशाह बनने पर रोक लगायी और खिलाफत का निजाम अपनाया, और यहाँ तक की जब शिक्षा के नए हब बनाने के लिए यूनिवर्सिटीज कम पड़ गयी तो एजुकेशन हब की तर्ज़ पर एक पूरा शहर बसाया गया जिसे डिजाईन करने से पहले खलीफा हारून अल मंसूर ने कहा की ऐसा शहर बनाओ जो हमारी नस्लों के पैदा होने से पहले ये तय कर दे की दुनिया के शासक हम ही रहेंगे। आज उस शहर को हम बगदाद के नाम से जानते हैं और दुनिया गवाह है की इतने विद्वान् आज तक ऑक्सफ़ोर्ड ने पैदा नहीं किये जितने अपने समय में बगदाद ने दिए है।


एक्सप्लेन करने के लिए दोस्तों किताबें कम है ईसलिए मैं आपको कुछ ऐसे कारनामे और इंसान बताता हूँ जिससे आपको आईडिया मिलेगा की आखिर वो कैसा वक़्त रहा होगा और कैसे लोग रहे होंगे जिन्होंने बिना रुके एक हज़ार साल तक अपना झंडा नीचा नहीं होने दिया और जो वो न होते तो आज न यूरोप होता न अमेरिका और न ही ये दुनिया ऐसी होती -


  1. रिहान अल बरुनी - दुनिया को वायरलेस ट्रांसमिशन का फार्मूला सबसे पहले इन्होने ही दिया था जिस पर हम पहले लिख चुके है। बरुनी पंद्रह अलग अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ थे।

  2. अब्बास इब्न-फिर्नास - दुनिया में सबसे पहली उड़ना भरने वाला इंसान जिसने विल्बुर राईट और शिवकर तलपडे से एक हज़ार साल पहले हवा में उड़ कर दिखाया और साथ ही ऐरोडायनेमिक्स पर पूरी किताब लिखी और साथ में लैंडिंग की तकनीक और आज के टीवी के टीवी का बेसिक फार्मूला भी। अब्बास ने एक ऐसा ग्लोब बनाया था जिसमें देखने पर अन्दर बिजली और बादल नज़र आते थे जबकि अन्दर कुछ नहीं होता था जिसकी नक़ल आज के जादूगर इस्तेमाल करते हैं। लेखक फ्लिप हैंडी लिखते है की अगर ये तकनीक रोमन हमले में नष्ट न हुई होती तो हम टीवी को अब से काफी पहले ही बना चुके होते।

  3. इब्न अल-हैथम - सबसे पहले ये साबित किया की सूरज की रौशनी अपनी है और चाँद सिर्फ उसे पलट कर जमीन पर डालता है।

  4. अब्दुल रहमान अल-सूफी - एंड्रोमेडा गैलेक्सी का सबसे पहले डिटेल में जिक्र किया अपनी किताब किताबुल खाकत अल-साबितुल मुसव्विर में। आज चाँद के एक मैदान का नाम उनके नाम पर रखा गया है।

  5. सलाम इब्न अल-साबत - सबसे पहले आधुनिक तरीक के एग्जाम करवाए और डिग्री देने का चलन शुरू किया जिससे होशियार और कम होशियार के बीच में फर्क किया जा सके।

  6. इब्न-शीना - अल करून नाम की किताब लिखी जिसे आधुनिक मेडिकल साइंस की बुनियाद माना जाता है, इस किताब को पढ़े बिना 19वी सदी तक यूरोप में कोई डॉक्टर नहीं बना सकता था। सबसे पहले वायरस की संकल्पना इन्होने ही की थी।

  7. अहमद मूसा और अहमद मूसा - 872 में किताबुल-खाय्युल लिखी जिसमें हज़ार से ज्यादा मशीन, गियर और पुल्ली के डायग्राम थे जो उस वक़्त में किसी जादू से कम नहीं था।

  8. अबू अल-सलात - इन्होने एक ऐसी मशीन इजाद की जो जादू से कम नहीं थी, ये कसी भी डूबे हुए जहाज़ का पानी के नीचे ढूंढ कर वापस सतह पर ला सकते थे। इनका जिक्र जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने भी किया है कि अगर राजा फर्डिनेंड ने कोडोरबा पर हमला करके वहां की सभी लाईब्रेरी और यूनिवर्सिटीज को नहीं जलाया होता तो इन्सान चाँद पर दो सौ साल पहले जा चूका होता।

  9. ज़कारिया अल रज़ी - नाइट्रेट से बारूद बनाना सीखा जिससे बाद में इब्न-बेतार ने 1240 में गन पाउडर बनाया। जकारिया की लिखी किताब ने हमें इलेक्ट्रिसिटी कर्व की पूरी डिटेल मिलती है और साथ ही पिस्टन, क्रैंक का इस्तेमाल करके जमीन से पानी निकालना, और पवन चक्की बनाना सिखाया।

  10. सबसे पहले राकेट का इस्तेमाल टीपू सुलतान ने लिया, दोधारी तलवार का अविष्कार अकबर महान ने किया, हाथी घोड़ो के कवच, ज्यादा क्षमता वाले परतदार कमान भी अकबर का ही अविष्कार है।

  11. साबुन और शैम्पू बगदाद का अविष्कार हैं। बताते चले की ठन्डे मौसम वाले यूरोप में उन दिनों नहाने को बुरा माना जाता था। जॉर्ज पंचम के पास जब एक मुस्लिम व्यापारी खुशबूदार साबुन लेकर गया तो राज को नहाकर इतना हल्का महसूस हुआ की उस आदमी को भारी मुआवजा देकर अपने दरबार में नियुक्त कर लिया।

  12. प्रिंटर 1350 में मुस्लिमो ने बनाया था। अब इसमें आप कह सकते है कि वो तो पंद्रहवी सदी में जर्मनी में बना था तो बता दूं को वो प्रिंटर का उन्नत वर्जन था वरना अगर सबसे पहले जर्मनी में प्रिंटर बना था तो फिर चौदहवी सदी में मार्टिन लूथर के चर्च विरोधी अभियान के पर्चे कहाँ छपे थे?

  13. अमीर अजुद्दौला - सबसे पहले बाँध बलूचिस्तान की कौर नदी पर बनाया गया था और उसके बाद उन्दुलुश में जो 30 फीट ऊँचा और 250 चौड़ा था और जिसके इस्तेमाल से गेहूं पीसा जाता, पानी को नेहरों में मोड़ा जाता और पानी जमा किया जाता था।


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दोस्तों ऊपर जितने भी लोगों का जिक्र मैंने किया है वो सारी जानकारी किसी हवाई किताब से न लेकर विकिपीडिया और कुओरा जैसे इन्टरनेट फोरम से ली गयी है जिसे आप नाम पर क्लिक करके क्रॉस चेक कर सकते है। ये सब इतिहास में क्यूँ नहीं मिलता तो इसका जवाब ये है कि जब रोम ने एक एक करके इस्लामिक सल्तनतों को जीता और कुरून-ऐ-औला को ख़त्म करने का बीड़ा उठाया तो उनका मकसद सिर्फ उसे दुनिया से ख़त्म करना नहीं था बल्कि उसे जेहनों से भी ख़त्म करना चाहते थे ताकि फिर ऐसी कोई सभ्यता वजूद में न आ सके जिसे हराने में उनको फिर से हज़ार साल तय्यारी करनी पड़े जैसा उन्हें पहले करना पड़ा।


और बाकि रहा सहा काम हमारे दीनी मदरसों ने भी कर दिया जिनका इतिहास कर्बला की लडाई से जम्प मार कर सीधा मौलाना इलियास से शुरू होता है और बीच के हज़ार साल को एसे ख़त्म कर दिया जाता है जेसे गधे के सर से सींग।


आखिर में एक बात की अगर किसी को लगता है की ये झूट है या इस्लाम तलवार का धर्म है तो बताओ आज हलाकू खान या चंगेज खान के नस्ल वाले कहा रहते है उनसे बड़ा तो तलवार बाज कोई नहीं हुआ, इंसान तलवार से सल्तनत बढ़ा सकता है, तहजीब तो बस मेहनत और इल्म की ताकत से बना करती है। अगर ऐसा न होता तो आज हिटलर का राज होता और अमेरिका धुल चाट रहा होता।


इस स्टोरी से हमारा मकसद किसी को नीचा दिखाना या खुद की बडाई करना नहीं है बल्कि ये साबित करना है कि ये जो लोग आप देखते है जो कहते है कि धर्म ही विज्ञान का सबसे बड़ा दुश्मन है, वो सारे के सारे जाहिल है।


जब विज्ञान अस्तित्व में आया तो भारत में और मिस्र में और ग्रीस में मंदिरों और मदरसों से शुरू हुआ, उसे दाऊद और सुलेमान जैसे बादशाहों ने आगे बढ़ाया, और वहां जब कुछ जाहिल रोमनों और आर्यों का हमला हुआ तो मुस्लिमो ने संभाला ये नस्तिक्तावादी कल की पैदाइश आज मजहब और धर्म पर ऊँगली उठाते है। अगर रोमन न होते तो मिस्र और ग्रीस से विज्ञान न ख़त्म होता, अगर आर्य और डेरियस का हमला न होता तो भारत का ज्ञान कभी दफ़न न होता और रोमन फर्डिनेंड का हमला न होता तो उन्दुलुश या स्पेन आज अमेरिका से चार गुना ज्यादा उन्नत देश होता।


अच्छा लगा हो तो हमें बताईयेगा जरूर ताकि इस स्टोरी में जितने भी नए नाम और किताबे आपने पढ़ी उन सब पर हर एक पर अलग अलग स्टोरी हम कर सकें। कोई नए सवाल हैं तो कमेंट बॉक्स में बताइए टीम जम्हूरियत आपके लिए उनका जवाब खोद कर भी लाएगी।


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