क्या कांग्रेस कभी मुसलमानों की समर्थक रही थी?
- TheoVerseMinds

- May 31, 2020
- 5 min read
शायद कंग्रेस दुनिया की ऐसी इकलौती पार्टी है जिसने अपने मकसद, अपनी आइडियोलॉजी, अपने लोगों के किये बहुत कुछ किया लेकिन फिर भी आज अपनी स्थापना के लगभग 125 साल बाद हर कोई इसके खिलाफ है।

कांग्रेस खुद के स्वतंत्रता सेनानी होने का दावा करती है लेकिन जनता में से अक्सर लोग इस पार्टी को अंग्रेजों का पिट्ठू दल मानती है, कांग्रेस खुद के हिंदूवादी होने का दावा करती है तो जनता उसे मुस्लिम परस्त पार्टी कह कर नकार देती है। काग्रेस ने सेक्युलर होने का चोला भी ओढा लेकिन भारत के मुस्लिमों में से बहुत सारे इसे मुस्लिम विरोधी या ब्राह्मणवादी पार्टी मानते है जिसने आरएसएस और बीजेपी को फलने फूलने के लिए आदर्श माहौल और छूट दी। यहाँ तक की इस पार्टी ने विकासवादी होने का दंभ भी भरा लेकिन वो भी नकार दिया गया और 2014 में इसे भ्रष्टाचार के नाम पर सत्ता से दूर फेंक दिया गया और आज ये पार्टी अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है।
लेकिन कभी कभी मेरे दिमाग में ये सवाल आता है कि आखिर ऐसा क्या है जिसने इस पार्टी को एक सदी से भी लम्बा संघर्ष करने के बाद भी जनसमर्थन से दूर कर दिया और ये अपनी किसी भी तरह की छाप छोड़ने में नाकाम रही।
खैर, ये तो टेक्निकल बता हो गयी और इसका विश्लेषण तो कोई बड़ा राजनीतिक विश्लेषक ही कर सकता है की ऐसा क्या हुआ, हम तो आज कांग्रेस नाम की किताब के एक छोटे से पाठ की सच्चाई जानने की कोशिश करेंगे और वो ये है कि क्या ये पार्टी अपने दावे के मुताबिक सच में मुस्लिम हितेषी है या तमाम बातो की तरह ये भी महज एक दावा है?
जेसा हमने पहले भी लिखा है कि 1857 के बाद अंग्रेजों ने बांटों और राज करो वाली नीति पर काम करते हुए मुस्लिम घरानों और नवाबों को तकरीबन ख़त्म कर दिया लेकिन हिन्दू घरानों के साथ बड़ा नरम रवैया अपनाए रखा, अगर आपने हमारा ये आर्टिकल नहीं पढ़ा तो आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते है।
बहरहाल हिन्दू राजाओं को अंग्रेजों का सत्ता संरक्षण मिला लेकिन मुस्लिम नेता पर शिकंजा कसा गया तो उन्हें अपना अस्तित्व बचाने की फिक्र हुई, ये आदतन सही भी है फिक्र उसे ही होती है जिसे तंगी होती है, और जिसे आसानी होती है वो अक्सर सुस्त पड जाते है।
तो हुआ ये कि आने 1880 आते आते मुस्लिम नेता मजबूत होते चले गये क्यूंकि वो लगातार जनता के बीच में थे और अंग्रेजों के खिलाफ लगातार अभियान चला रहे थे दूसरी तरफ हिन्दू राजा अंग्रेजों के संरक्षण में अहंकारी और अत्याचारी होते चले गये और जनता में अप्रिय हो गये। इस सब से जनता को भटकाने के लिए किसी मजबूत संस्था को जरूरत महसूस हुई।

एक बड़ी प्लानिंग के तहत 1885 में अंग्रेज अफसर एलन ह्यूमन ने 28 दिसम्बर को एक पार्टी की बुनियाद रखी जिसका मकसद जाहिरी तौर पर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना था लेकिन असल मकसद जनता को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने को तैयार जनता को बातों में उलझाना था। अंग्रेजों को ज्यादा नुकसान न हो इसलिए अहिंसा का कांसेप्ट हिन्दू वेदों से निकला गया तो साथ ही कुरान से भी انالها معش صابرين(सब्र करने वालो के साथ अल्लाह होता है) निकाला गया ताकि जनता अंग्रेजों के खिलाफ हथियार न उठा ले। बाद में ये फार्मूला महात्मा गाँधी के नाम से जोर शोर से फैलाया गया ताकि असल क्रन्तिकारी कहीं गुम हो जाएँ।
तो इस तरह देखा जाए तो कांग्रेस की स्थापना ही मुस्लिमों और देश की खिलाफत करने के लिए हुई थी, वैसे भी एक दो साल का बच्चा भी जानता है की कौन अंग्रेज अफसर अपने ही खिलाफ लड़ने वाली संस्था खड़ी करेगा और क्यूँ?

इसके बाद कांग्रेस ने क्या क्या ये लिखने में किताबें भर जाएँ लेकिन मुस्लिम विरोध के कुछ खास पॉइंट यूँ है -
1937 में ओडिशा में चुनावों के बाद अंतरिम सरकार बन चुकी थी,कांग्रेस के बिश्वनाथ दास राज्य के अंतरिम प्रधानमन्त्री बनाये गये थे। हिन्दू महासभा का द्वि-राष्ट्र सिद्धांत अब मुस्लिम लीग ने अपना लिया था और जोरों पर था। उस वक़्त ओडिशा के गृह मंत्रालय में मुहम्मद सालेह अल हैदरी साहब तैनात थे। वो लिखते है कि जब में मंत्रालय के जरूरी कागजात संभल रहा था तो मेरी नज़र एक क्लासिफाइड चिट्ठी पर पढ़ी जो मंत्री साहब की तरफ से राज्य के तमाम बड़े अधिकारीयों के नाम थी और उसका मजमून था की देश का बंटवारा अब तय है और हो सकता है कि मुस्लिम इस देश में न रहे इसलिए आपको सलाह दी जाती है कि राज्य के तमाम महत्वपूर्ण पदों से मुस्लिम अधिकारी और कर्चारियों को हटा कर हिन्दुओं को तैनात किया जाए। हथियार खाना जेसी जगहों से मुस्लिमों को हटा कर गश्त और बाकि गैर जरूरी चीजों में डाला जाये ताकि आने वाले समय में किसी अप्रिय स्थिति से निपटा जा सके।
देश आजाद हुआ और अगले साल 1948 में भारत हैदराबाद विवाद अपने चरम पर पहुँच गया और हैदराबाद को देश में मिलाने के लिए यूँ तो तमाम तर्क दिए जाते है कि वो पाकिस्तान जाना चाहते थे आदि लेकिन सच्चाई ये है कि उस वक़्त के काग्रेस हुक्मरानों को भावी हिन्दू-राष्ट्र के बीच में एक स्वतंत्र मुस्लिम देश पसंद नहीं था इसलिए उसे खतम करना जरूरी था और जब निजाम ने पाकिस्तान से मदद मांगी तो उसे पाकिस्तान में मिलने का प्रस्ताव कह कर प्रचार किया गया। इतिहासकार लिखते है कि जब 18 सितम्बर 1948 को हैदराबाद फ़तेह कर कर लिया गया तो भारतीय सेना के जवान राज्य के गांवों में निकल पड़े और मुस्लिम इलाकों में रेप लूट और कत्ले आम का ऐसा हौलनाक मंजर मचाया गया जिसे सुन कर रूह काँप जाए। हजारों से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं का रेप हुआ और जवानों ने लोगों को मार कर कुओं में डाल दिया और लाशों के अम्बार लग गये। लूट का ऐसा आलम था कि बुजुर्ग बताते है कि घरों में पानी पीने का लौटा तक न छोड़ा गया था। ख्याल रहे की ये भीड़ न थी बल्कि सरकारी फ़ौज थी जो बिना आर्डर के पेशाब तक न करे .
आजादी के साथ ही नए नए बने संविधान में आर्टिकल 44 जेसे मुस्लिम विरोधी डायरेक्टिव आर्टिकल्स जोड़े गये और जान पूछकर अयोध्या विवाद को जन्म दिया गया वरना चाहते तो मूर्ति रखने वाले को सजा दी जाती और किस्सा ख़त्म।
देश को आजाद हुए अभी नौ साल ही हुए थे, देश के पिछड़े तबके और निचली जातियों को आरक्षण दिया गया था ताकि उनकी तरक्की तय की सके। लेकिन कांग्रेस की सरकार ने 1956 में संविधान संशोधन करके गैर हिन्दू निचली जातियों को आरक्षण से अलग कर दिया जिसकी मुख्य लाभार्थी मुस्लिम निचली जातियां थीं जो आज तक इस संशोधन का दंड भुगत रही है।

ये तो कुछ मुख्य बिंदु थे इसके अलावा भी हजारों दंगे और नरसंहार कांग्रेस काल में हुए, ऐसी नीतियां बनीं जिससे मुस्लिम दलित से भी बदतर होता चला गया और इसी बीच में संघ भाजपा को फलने फूलने के लिए परफेक्ट माहौल दिया गया। मोरादाबाद, नेल्ली और हाशिमपुरा जेसे तमाम नरसंहार सिर्फ कांग्रेस ने करवाए थे।

इतना ही नहीं कांग्रेस के राज में मुस्लिमों के खिलाफ POTA जेसे कानून, NIA जेसी संस्थाएं लाकर मुस्लिम नौजावानों की बर्बादी की बुनियाद रखी गयी। हजारों नौजवानों को सिमी और इंडियन मुजाहिदीन जेसे बोगस संगठन बना कर जेलों में ठूंस दिया गया जो सब आज 20-25 साल की सजाएँ काट कर बेगुनाह छूट रहे है और जिनकी ख़बरें भी अख़बारों में सजा नहीं पाती।
जेसे पहले कहा, कांग्रेस की बर्बादी का विश्लेषण को विद्वान ही कर सकता है लेकिन मेरी नज़र ने ये बर्बादी गरीब मुस्लिम और निचे तबके की आह और जुल्म के फल से ज्यादा कुछ नहीं है।
दोस्तों अगर आपको हमारी ये स्टोरी पसंद आयी हो तो लाइक कीजिये, दोस्तों के साथ व्हाट्सप्प, ट्विटर, फेसबुक पर शेयर कीजिये, फेसबुक ट्विटर पर हमारे पेज को लाइक कीजिये लिंक आपको ऊपर सोशल सेक्शन में मिल जाएगा। और साथ ही हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब करना न भूलें, सब्सक्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करके ईमेल डालें!
जम्हूरियत का जमीनी मिशन जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।







Comments