गोएबल्स - एक ऐसा नेता जिसके उसूलों पर पूरा संघ टिका है लेकिन शायद ही उसकी बराबरी कर सकें..!
- TheoVerseMinds

- May 16, 2020
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दुनिया उसे एक वाहियात नेता मानती है लेकिन उसके समर्थक उसे अपने वक़्त का सबसे बड़ा नेता, हाँ मगर अपने गुरु से छोटा नेता। उसका गुरु उसे एक अच्छा दोस्त मानता था तो दुश्मन उसे शैतान, उसके असली वंशज नहीं बचे लेकिन उसके मानसिक वंशज उसे चमत्कारी और अध्यात्मिक नेता मानते है। लेकिन इस सब के बीच में एक चीज़ रह ही जाती है, वो ये कि वो एक कट्टर सच्चा भक्त था, आज के अंधभक्तों की तरह बेवक़ूफ़ नहीं था, बल्कि पढ़ा लिखा समझदार आदमी था, गुरु के हर कदम के फायदे नुक्सान समझता था, फिर भी आखिर तक साथ रहा और आखिर में परिवार समेत मालिक की लाश पर बिखर गया।
जी हाँ ऐसा ही था कुछ हिटलर का प्रचार या प्रोपेगेंडा मंत्री गोएबेल्स!

पॉल जोसफ गोएबेल्स का जन्म जर्मनी के डसलडोर्फ़ के पास के छोटे से शहर में अक्टूबर 1897 में हुआ था, माँ एक डच थीं जिनके बारे में चर्चा थी कि उनका खानदान के यहूदी था, ये बात नौजवान गोएबेल्स को बड़ा परेशान करती थी और वो अपने कॉलेज के दिनों में अपने खानदान की जानकारी के पर्चे लोगों में बाटता था ताकि ये पता चले कि उसका यहूदियों से कोई नाता नहीं था, वैसे ही समझ लीजिये जैसे आज किसी राष्ट्रवादी को पता चले कि उसके खानदान वाले असल में उर्दू नाम वाले थे।
जन्म से गोएबल्स का एक पैर थोडा खराब था या मुड़ा हुआ था इसीलिए वो थोडा सा लंगड़ा कर चलता था, जब 1914 में पहला विश्वयुद्ध शुरू हुआ तो देशभक्ति ने उबाल मारा, लेकिन सेना ने मुड़े हुए पैर की वजह से भर्ती नहीं किया उसे मन मार कर वापस पढ़ाई की तरफ लौटना पड़ा। होनहार छात्र था इसलिए 1917 में जिम्नेजियम स्कूल में अबितुर का एग्जाम टॉप किया और कॉलेज ख़त्म होने तक क्लास का टॉप स्टूडेंट बना रहा।
छह बहन भाइयों में से चौथे नंबर के गोएबेल्स के माँ बाप चाहते थे कि वो बड़ा होकर किसी चर्च में पादरी बने लेकिन धर्म कर्म के उसका मन न लगता था बल्कि वो कॉलेज के शुरू के दिनों से ही जर्मनी के इतिहास का शौक रखता था, वो महान जर्मनी के महान लोग, आर्यन नस्ल की अच्छाई और सबसे ज्यादा महान जर्मनी की दोबारा स्थापना और नाज़ी नस्ल को सबसे ऊपर देखना। खैर सपने देखना कोई बुरी बात नहीं है, आज भी कुछ लोग सपने देखते है पुरानी महान नस्ल को फिर से महान बनाने के।
एक तरफ देश को महान बनाने के सपने तो दूसरी तरफ एक पैर में कमी होने की वजह से कोई लड़की भाव न देती थी और लोग उसे यहूदी नस्ल कहते थे तो फ्रस्ट्रेशन होना लाजिमी था, उसे काउंटर करने और खुद को महान साबित करने के लिए गोएबेल्स ने 1921 में एक ऑटोबायोग्राफी लिखी जिसमे उसने बताया कि किस तरह एक जर्मन उसके अपने ही देश में सुरक्षित नहीं है और उसे किस तरह से प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है, किताब के आखिर में उसने इन सब समस्याओं का हल एक करिश्माई लीडर के रूप में पेश किया जो जर्मनी को एक नए दर्जे तक ले जा सके। मुमकिन है कि तब तक गोएबेल्स खुद को हि वो लीडर समझ रहा था क्यूंकि तब तक हिटलर से उसकी मुलाकात नहीं हुई थी।
इसके ठीक बाद उसी साल गोएबेल्स को अपनी पीएचडी पूरी करने के लिए थीसिस लिखनी थी और वो चाहता था कि ये काम वो प्रोफेसर Max Freiherr von Waldberg के अंडर में पूरी करे, बता दें कि प्रोफेसर मैक्स खुद के यहूदी थे लेकिन गोएबेल्स को इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी, शायद यही वजह है कि आज भी कुछ राष्ट्रवादी जो उर्दू भाषा तक को मिटा डालना चाहते हैं लेकिन उन्हें अरब में नौकरी में कभी कोई दिक्कत नहीं होती।
पीएचडी पूरी करने के बाद गोएबल्स ने नौकरी के बजाय लेखक बनना चुना और सबसे पहली किताब के रूप में अपने फ्रसट्रेशन वाली किताब को प्रकाशित करवाने की कोशिश की लेकिन कामयाबी तब हाथ लगी जब एक नाजी पार्टी की प्रेस ने किताब छापने के लिए हामी भरी, इसके बाद भी गोएबेल्स ने बहुत सारी किताबें लिखीं लेकिन डिग्री के सिर्फ दो साल बाद 1923 में उसे ये समझ आ गया कि महानता सिर्फ किताबों में ही ठीक है और पेट पालने के लिए ज्यादा पैसे चाहिये होते हैं जो उसे अपने इस पेशे से नहीं मिल रहे थे इसलिए उसने एक बैंक क्लर्क की नौकरी कर ली लेकिन मालिक ने एक साल बाद ही उसके अड़ियल रवैये और प्रवचन की आदत से परेशान होकर नौकरी से निकाल दिया।

इसके बाद वो पहली बार था जब गोएबल्स नाज़ी पार्टी में शामिल हो गया और इसी साल 1924 में उसकी मुलाकात हिटलर से हुई जो अभी एक छोटा नेता था, मुलाकात के बाद दोनों गहरे दोस्त बन गये, शायद इसलिए क्यूंकि जिस करिश्माई नेता का सपना गोएबेल्स ने देखा था उसके ज्यादा गुण हिटलर के अन्दर थे। इसके बाद सारी उम्र हिटलर जहाँ नेता के रोल में रहा तो गोएबेल्स ने उसके प्रचार मंत्री का रोल निभाया, कहते है कि अगर गोएबेल्स न होता तो शायद हिटलर कभी जर्मनी पर काबिज न हो सकता था क्यूंकि हिटलर की मुह से निकली गाली की भी प्रवचन साबित करने की कला बस उसी में थी, हिटलर के भाषण जरूर करिश्माई होते थे लेकिन वो सिर्फ एक एक्टर का रोल करता था, स्क्रिप्ट से लेकर भाषण के बाद उसका मतलब निकालने और उसे जर्मनी के बच्चे के पास तक पहुँचाने का काम हमेशा गोएबेल्स ने किया।
नाज़ी पार्टी में रहते हुए वो एक अखबार निकालने लगा जो लोगों को बताता था कि किस तरह से यहूदी पूरे जर्मनी के संसाधनों और जर्मन औरतों पर कब्ज़ा जमाये बैठे हैं और जर्मन अपने ही देश में खतरे में हैं। 1926 में उसने के मशहूर भाषण दिया जिसमे उसने बताया की मार्क्स वाद या लेनिन वाद जर्मनों की परेशानियों का हल नहीं है और उनके लिए हिटलर इन दोनों से ज्यादा बड़ा सुधारवादी और अच्छा नेता है, शायद यही वजह थी कि हिटलर किंग तो बना लेकिन उसका किंगमेकर गोएबल्स ही कहलाया।

1926 के आखिर तक गोएबल्स का कद इतना बड़ा हो गया कि उसे Gauleiter का ओहदा दिया गया जो उस वक़्त नाज़ी पार्टी के जिले के प्रमुख का नाम होता था, जाहिर है कि सिर्फ दो साल में ये ओहदा मिलना मामूली बात नहीं थी। वैसे वो नाम के लिए ही गौलेइटर था असल में उसकी धमक उतनी ही थी जितनी हिटलर की थी। दो साल बाद 1928 में जर्मनी में आम चुनाव् हुए जिसमे नाज़ी पार्टी का शेयर ६% रहा जो की एक बड़ी हार थी लेकिन अगले पांच सालों में उसने वो कमाल दिखाया कि हिटलर एक छोटे से नेता से लेकर राष्ट्रीय नेता बन गया, 1935 में जब हिटलर सब विरोधियों को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में डाल कर तानाशाह बन गया तो उसने गोएबेल्स को अपना प्रचार मंत्री बनाया जिसे उसके समर्थक खुले आम प्रोपेगेंडा मंत्री कहते थे, आज भी कुछ लोग अपने एक नेता कि जालसाजी पर हँसते हुए कह देते है कि देखो भाई से विरोधी अपने विधायक छुपा रहे है, बस फर्क इतना है की गोएबल्स का रौब आज के नेताओं से हज़ार गुना ज्यादा था।
एक के बाद एक चीज़ें हुई, न्युम्बर्ग जैसे कानून आये, हिटलर को मसीहा बना कर पेश किया गया, यहूदियों को पहले दंगों में मारा गया फिर उन्ही पर आरोप लगा कर जेलों में डाला गया, उसके बाद उन्हें कंसंट्रेशन केम्पों में ले जाया गया जो दुनिया के लिए तो जेल थे लेकिन असलियत 1945 में जर्मनी के हारने के बाद सामने आई जब उन केम्पों के अन्दर हजारों की तादाद में गैस चैम्बर मिले और उनमे मिलीं 50 लाख से ज्यादा लाशें।
शायद ये खबर कभी बाहर न आती अगर जर्मनी न हारता, और जर्मनी न हारता अगर हिटलर ने मसीहा और सबसे बड़ा लीडर बनने की हनक में पोलैंड पर हमला न किया होता तो, लेकिन उसने अहंकार में आकर पोलैंड पर हमला किया ताकि अपनी जनता को बता सके कि वो सबसे बड़ा सबसे ताकतवर और सबसे महान नेता है, वो इसके बाद भी नहीं रुका और उसने पूरे मित्र राष्ट्रों की टोली को अपने दोस्त मुसोलिनी के साथ मिल कर ललकार दिया और उसके बाद अमेरिका को भी। नतीजा जो हुआ आप जानते है। लेकिन आखिर गोएबेल्स का क्या हुआ? वो तो प्रचारक था?

हाँ वो प्रचारक था, एक ऐसा प्रचारक जो सेना में न भर्ती हो सका तो मंत्री बनने के बाद फौजी वर्दी में भाषण दिया करता था ताकि अपनी ईगो को शांत किया जा सके,आखिरी समय तक जब तक कि दुश्मन फौजें बर्लिन में न घुस गयीं उसने जनता को यही बताया कि महान हिटलर साहेब ने किस तरह अमेरिका को धुल चटा दी है, वो ये बताता रहा कि किस तरह हमारा एक एक फौजी सामने वाले हज़ार पर भारी है और कैसे जल्द ही हम दुनिया के मालिक होंगे यानि विश्वगुरु!
लेकिन जब दुश्मन फौजें बर्लिन के इतने पास आ गयीं की 24 घंटे में बर्लिन आ जाती तो तानाशाह अपनी महान सत्ता को छोड़ कर एक 30 फीट गहरे बंकर में जा छुपा, एक एक करके उसके सभी साथी साथ छोड़ गये। हिटलर के एक करीबी हिमलर ने अमेरिका के कर्नल ओवेन्हीज़र को सन्देश भेज दिया कि मैं शर्तो के साथ सरेंडर कर सकता हूँ, बाकि के सभी नेता भी कड़ी सजा से बचने के लिए निगोशिएट कर के गिरफ़्तारी दे रहे थे ऐसे में हिटलर ने अपने पुराने दोस्त गोएबेल्स को संदेसा भेजा कि वो शादी करना चाहता है। जबकि उसने बंकर के स्टाफ तक को ये मान कर छुट्टी देकर भागने के लिए कह दिया था कि अब वो नहीं बचेगा।
गोएबेल्स उस वक़्त शहर के बाहर था, चाहता तो भाग सकता था लेकिन नहीं भागा। उसने अपनी पत्नी मागदा और छह बच्चो के साथ बर्लिन में कदम रखा, हिटलर की मंगेतर ईवा ब्रान को लिया और एक पादरी को भी, बंकर में जाकर हिटलर की शादी कराई और पूरे परिवार के साथ ख़ुशी मनाई जैसे एक शहंशाह की शादी में होनी चाहिए थी। रात हुई और अगले दिन सुबह उठे, प्रोग्राम तय था, गोएबेल्स ने खुद अपने हाथो से अपने दोस्त मालिक गुरु और जिगरी यार और उसके नयी दुल्हन को जहर दिया, मौत के बाद हिटलर की वसीयत के अनुसार दोनों की लाशो को जला दिया ताकि लोग उन कब्र खोद कर उनकी लाशों का वो हाल न करें जो फ्रांस में मुसोलिनी और उसकी पत्नी की लाश का हुआ था।

गोएबेल्स इसके बाद एक दिन और जिन्दा रहा, अगले दिन यानि 1 मई 1945 को उसने मिठाई में जहर मिला कर अपने छः बच्चो को दे दिया, जब वो तड़प तड़प कर मर गये तो उनकी लाशों को चूमा और प्यार से दफनाया। इसके बाद पत्नी की तरफ देखा को जो खुद हिटलर को बहुत बड़ी फैन थी, आँखों आँखों में इज़ाज़त ली और पिस्तौल से सीने में गोली मार कर उसकी जान ले ली, सर पर नहीं मारा कहीं मरने के बाद बदसूरत न लगे, इसके बाद उस महान नायक और वक्ता ने वही पिस्तौल अपनी सर पर रखी और चला दी और वहीँ बिखर गया जिसके नीचे एक दिन पहले हिटलर को जलाया था, और इसके साथ ही दे गया एक कहानी जो कहती है कि अगर कुछ करने का बीड़ा उठाओ तो सिर्फ कामयाबी का नहीं बल्कि हार देखने का भी दम रखो।
गोएबेल्स तो चला गया लेकिन उसकी लिखी १४० किताबों में एक किताब की एक लाइन आज के गोएबेल्स ने पकड़ ली-
एक झूठ को हिम्मत से पकड़ कर एक हज़ार बोलो तो वो सच लगने लगता है।
प्यारे भक्तो, मुझे नहीं शिकायत अगर तुम गोएबेल्स को अपना आदर्श मानते हो, मैं बुरा नहीं कहूँगा कि तुम्हे पोलैंड की जगह पाकिस्तान कमजोर लगता है और तुम उस पर हमला करना चाहता हो, या मैं तब भी मन नहीं करूँगा की तुम भी उर्दू नाम वालो के लिए डिटेंशन केम्प बनाना चाहते हो। तुम्हारा हिटलर भी तुम्हे दिखने के पाकिस्तान को धमकाता है और हमले करता है, तुम्हारे हिटलर को भी एक मजहब से दिक्कत है, तुम भी अपने हिटलर की बादलों वाली थ्योरी को सच मानते हो और हर एक कदम को मास्टर-स्ट्रोक!
मेरा बस इतना सा कहना है कि अगर तुम न जीत सको, अगर तुम हार जाओ और कोई कर्नल ओवेन्हीज़ेर तुम्हारे सर पर आ खड़ा हो तो भागना नहीं, अपने हिटलर को धोखा नहीं देना, गोएबल्स की रवायत पूरी करना और अपने हाथ से अपनी पत्नी और बच्चो की जान लेने की हिम्मत रखना।
लेकिन मुझे शक है कि तुम ऐसा करोगे, क्यूंकि तुम तो सिर्फ उसकी कामयाबी देखते हो उसका बलिदान नहीं। है न मितरो???
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