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क्या सच में ट्रेन अपना रास्ता भूल सकती है जेसा कि बताया जा रहा है?

दोस्तों जेसा आपने आज कल ख़बरों में पढ़ा होगा कि कई सारी ट्रेने अपना रास्ता भूल जा रही है जिससे उन्हें कई गुना रास्ता तय करना पड़ रहा है और साथ में उनमे सवार मजदूरों की मौत की ख़बरें भी आ रही है।


अब सवाल ये बनता है कि क्या ये वाकई में मुमकिन है कि कोई ट्रेन रास्ता भूल सकती है या आखिर उन्हें कैसे चलाया जाता है और कैसे एक ट्रेन का रास्ता तय किया जाता है।



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सबसे पहले तो ये समझते है कि आखिर ट्रेन का रास्ता कैसे तय होता है या वो एक लाइन से दूसरी लाइन पर कैसे जाती है।


आपको बता दें कि ट्रेन की लाइन कभी भी उसका ड्राईवर तय नहीं करता और न ही किसी ट्रेन में कोई स्टीयरिंग सिस्टम लाग हुआ होता है जिससे उसे मोड़ा जा सके। जी हाँ आपने सही पढ़ा ट्रेन में किसी तरह का कोई भी स्टीयरिंग नहीं होता और न ही उसे मोड़ा जा सकता है।


ट्रेन को मोड़ने का काम स्टेशन मास्टर का होता है जो ट्रेन लाइन पर मोजूद पॉइंट की मदद से करता है।


ट्रेन सड़क की तरह अपनी मर्ज़ी से नहीं चलती बल्कि वो इसके लिए पटरी पर डिपेंड होती है, ट्रेन को मोड़ने का लिए पटरी को मोड़ा जाना जरूरी है और ट्रेन ड्राईवर उसे नहीं मोड़ सकता, जब कहीं दो लाइनें एक जगह मिलती है तो उसका डिजाईन ऐसा होता है कि आसानी से उन्हें एक लाइन से दूसरी पर जोडा या हटाया जा सकता है और इसी सिस्टम को लाइन-पॉइंट कहा जाता है।


जब पीछे से आती हुई रेल को किसी एक स्टेशन पर भेजना होता है तो स्टेशन मास्टर पॉइंट की मदद से आने वाली लाइन को जाने वाले स्टेशन वाली लाइन से कनेक्ट कर देता है और दूसरी वाली लाइन से काट देता है और इस पूरे काम में ड्राईवर का रोल जीरो होता है।


ये पॉइंट दो तरह के होते है।


  • एक होते है लीवर-पॉइंट जो पहले इस्तेमाल होते थे, इनमे स्टेशन मास्टर के रूम से एक कर्मचारी आकर हाथ से लीवर खींच कर लाइन तय करता ताकि ट्रेन सही पटरी पर चली जाए, आपने पुरानी फिल्मों में देखा भी होगा कि किस तरह हीरो जान पर खेल कर लीवर को पकड़ कर ट्रेन को पलटने से बचाता था। इनकी सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि सुनसान जंगल वाली जगहों पर जहाँ लाइनें बटती थीं वहां भी एक कर्मचारी सिर्फ लीवर खींचने के लिए रखना पड़ता था, ये लीवर आज भी कई स्टेशन पर दिख जाते है।


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  • दुसरे होते है मोटर-ऑपरेटेड-लीवर, इनमे हाथ से कुछ नहीं करना पड़ता, सब कुछ मोटर की मदद से हो जाता है। स्टेशन रूम में बैठा हुआ आदमी कंप्यूटर से लाइन को कण्ट्रोल करता है।


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और इस तरह ट्रेन चलाने में ड्राईवर का रोल सिर्फ स्पीड घटाने बढ़ाने, इमरजेंसी में ब्रेक लगाने और स्टेशन पर सही तरह से पहुचाने का होता है, ट्रेन कहाँ जायेगी इसका काम स्टेशन मास्टर का होता है।


ट्रेन चलाने के नियम क्या होते है।


सबसे पहले तो जब कोई ट्रेन चलती है तो ड्राईवर को एक कॉशन-आर्डर दिया जाता है जिसमे रवाना होने वाले स्टेशन से लेकर आखिर स्टेशन तक के नाम, पूरी डिटेल, कहाँ से लेकर कहाँ पर रुकना है, किस पॉइंट से लेकर कहाँ तक कितनी रफ़्तार रखनी है इन सब बातों को पूरी डिटेल होती है और ये कॉशन-आर्डर ट्रेन के पहुंचने तक ड्राईवर के पास होता है और इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है।


साथ ही ये ड्राईवर भी पूरे सफ़र में नहीं होता बल्कि हर कुछ सौ किलोमीटर पर ड्राईवर बदला जाता है और वहां से नया ड्राईवर कॉशन-आर्डर की मदद से आगे ले कर जाता है।


मान लीजिये की गाड़ी पंजाब से बिहार जा रही है तो पीछे से आने वाला ड्राईवर दिल्ली उतर जायेगा और नया ड्राईवर दिल्ली से लखनऊ तक जायेगा और वहां अगले को ट्रेन सोंप देगा। पुराना ड्राईवर आराम करने के बाद वापस अपने पुराने रूट पर लौट जाता है और ये गाड़ी पूरे रास्ते इसी तरह ड्राईवर बदलते हुए जाती है। किसी नए रूट पर कोई नया ड्राईवर नहीं जा सकता, नए रूट पर जाने से पहले उसे नए रूट को अच्छी तरह से याद करना और टेस्ट पास करना पड़ता है चाहे वो कितना पुराना ड्राईवर क्यूँ न हो।


इसके बाद जब ड्राईवर ट्रेन के साथ तैयार होता है तो स्टेशन मास्टर को तैयार होने की खबर देता है फिर स्टेशन मास्टर लाइन क्लियर कन्फर्म करके गार्ड को आदेश देता है जिसके बाद गार्ड ड्राईवर को ग्रीन सिग्नल देता है।


शुरू से लेकर आखिर तक पूरे सफ़र में यही नियम होता है और जहाँ कहीं भी लाइन बिजी होती है या बाई चांस गलत लाइन पर गाड़ी चली जाए तो स्टेशन मास्टर उसे कन्फर्म नहीं करेगा जिससे गार्ड सिग्नल को रेड कर देगा और मजबूरन ड्राईवर ट्रेन को रोक देगा।


इस सबके अलावा भी आजकल हर ट्रेन में ऑनलाइन जीपीएस ट्रैकर लगा हुआ होता है ताकि ट्रेन के चलने और पहुंचने की सही जानकारी मिलती रहे जो किलोमीटर तो क्या दस मीटर भटकने पर भी अलार्म दे देगा।


इस सब से जाहिर है कि ट्रेन रास्ता भूल जाए ये किसी भी कीमत पर मुमकिन नहीं है, ज्यादा से ज्यादा ट्रेन एक स्टेशन भटक सकती है-


मान लिया ट्रेन नयी दिल्ली से उप्र की तरफ चली तो गलती से रास्ता भूल कर शाहदरा स्टेशन के बजाय निजामुद्दीन पहुँच गयी तो ड्राईवर अपना कॉशन-आर्डर चेक करेगा और उसे पता चल जाएगा कि ये गलत स्टेशन है। अगर वो भी अपने आर्डर को अनदेखा कर देगा तो भी उसे स्टेशन पर पड़ने वाले पॉइंट से आगे बढ़ने के लिए स्टेशन मास्टर से परमिशन लेगा और वो बात देगा कि आपकी ट्रेन मेरे स्टेशन पर गलती से आई है और मेरे पास आपके लिए खाली लाइन नहीं है, इसके बाद गार्ड रेड सिग्नल देगा और ट्रेन रुकेगी।


अगर ड्राईवर फिर भी न रुका तो मास्टर पॉइंट से अगली लाइन कनेक्ट नहीं करेगा और ड्राईवर को ट्रेन रोकनी ही पड़ेगी वरना पलट जायेगी।


अगर किसी भी तरह से ये तीनों चीजें भी इग्नोर कर दी जाती है तो जब ड्राईवर ट्रेन ट्रान्सफर करेगा तो उस स्टेशन पर कोई नया ड्राईवर नही होगा। और ये सब भी तब होगा कि हम ये मान लें कि ड्राईवर उस रूट को भूल चूका है जिस पर वो लम्बे समय से चल रहा है और साथ ही ट्रेन का जीपीएस खराब है और साथ ही जीपीएस वाली टीम का ध्यान भी इस पर नहीं है।


तो फिर ट्रेनें आखिर कैसे और क्यूँ भटक रही है?


वो दरअसल भटक नहीं रही है बल्कि भटकाई जा रही है।


ये तो जाहिर है की किसी भी तरह ट्रेन का भटकना मुमकिन नहीं है, इसलिए हमें मजबूरन ये मानना पड़ेगा कि दरअसल अधिकारी जान बूझ कर ट्रेन को कई दिन लम्बे सफ़र पर भेज रहे है। और वो ऐसा क्यूँ कर रहे है इसकी दो वजहे हो सकती है-


सरकार नहीं चाहती कि मजदूर अपने घर जाएँ क्यूंकि ये सरकार अमीरों के चंदे से वजूद में है जिनकी बड़ी बड़ी फेक्ट्रियां हैं। उनमे मजदूर काम करते है जो घर चले गये तो लॉक डाउन के फ़ौरन बाद फैक्ट्री चलाना नामुमकिन हो जायेगा लिहाज़ा उन्हें काम पर रोकना जरूरी है इसीलिए सरकार ने बिना तय्यारी के 4 घंटे की मोहलत से लॉक डाउन लागू किया ताकि वो घर न जा सकें, जबकि फ्लाइट दो दिन बाद 27 मार्च तक चलती रही थी।

लेकिन जब मजदूर पैदल ही घर जाने लगे तो सरकार पर उन्हें घर भेजने का दबाव बना, इस पर सरकार ने सही इन्तेजाम करने के बजाय केवल चंद ट्रेनों का इन्तेजाम किया लेकिन अब उस पर अमीरों का दबाव बन गया।



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इसलिए उन्होंने बीच का रास्ता निकाला कि ट्रेनों की हालत इतनी ख़राब कर दो ताकि वो मजदूर घर ही न जा पायें और रास्ते में ही दम तोड़ दें और बाकि मजदूर उनकी ये हालत सुनकर घर जाने का इरादा छोड़ दें। इसीलिए 24 घंटे की ट्रेन को पहुंचनने में तीन दिन तक लग रहे है और अन्दर लोगों के खाने पीने तक का इंतज़ाम नहीं है और वो भूखे प्यासे मर रहे है और कुछ लोग उनके खाने पीने का इन्तेजाम कर रहे है।


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