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क्या भारत आत्मनिर्भर हो सकता है, और अगर हाँ तो कैसे??

तो आखिरकार सरकार ने कह ही दिया जो उसे बहुत पहले कह देना चाहिए था,


सरकार ने दो टूक कह दिया कि हमारे भरोसे उधार मत खाना हम खुद कंगाल हैं, आत्मनिर्भर बनो यानि अपनी परेशानी खुद हल करो। हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते।



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लेकिन चलो, मोदी जी ने कहा है तो कुछ सोच समझ कर ही कहा होगा। अब ये समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर ये असली आत्मनिर्भरता क्या होती है और कैसे हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं।


तो भैया सबसे पहले तो ये जानते है की दुनिया में वो कौन कौन से देश हैं जो आत्मनिर्भर है यानि कोई आयात नहीं करते।


जवाब है कोई नहीं,


मजाक नहीं है ऐसा कोई देश नहीं है न ही होना मुमकिन है जो बाहर से कुछ न खरीदता हो सब कुछ घर में ही सब कुछ बनाता हो। बल्कि सभी की कोशिश होती है कि उनका एक्सपोर्ट इम्पोर्ट से ज्यादा हो जिससे आखिर में वो फायदे में ही रहें, मतलब ये फर्क नहीं पड़ता कि आपने कितना कम सामान बाहर भेजा या कितना ज्यादा बाहर से खरीदा, बल्कि फर्क इससे पड़ता है कि आपने जितना बेचा उसकी कीमत खरीदे हुए से कम होना चाहिए, यानि मुनाफा। अगर आपने बिक्री से ज्यादा खरीदारी कर ली तो आप परनिर्भर हो गये यानि घाटे में चल गये।


चलो आसान भाषा में समझते है -


एक बड़ा बिजनेसमैन है, उसकी आमदनी कई लाख रु महिना है, उसके घर के अन्दर सफाई होनी है। तरीका तो ये कहता है कि अपने घर की सफाई खुद करो यानि आत्मनिर्भर बनो, लेकिन बिजनेस कहता है कि वो सफाई 1000 में कोई भी कर देगा जबकि ठीक उतने ही वक़्त में वो आदमी अपने दफ्तर में कई हज़ार रुपये कमा लेगा।


अब इसी जगह किसी गरीब आदमी को रखते है, अगर वो भी ये कहे कि मेरे घर की सफाई कोई और कर दे और मैं अपने काम पर जाऊं तो उसे खर्च करने पड़ेंगे 1000 रुपये और शाम तक वो खुद कमाएगा 500 रुपये जो उसकी दिहाड़ी है। यानि उसके लिए फायदे का सौदा ये है कि वो अपनी छुट्टी करके घर खुद साफ़ करे लेकिन ये काम बिजनेसमैन के लिए घाटे का सौदा है।


मने समझ ये आया कि या तो आपका खर्च कम हो या आपकी आमदनी ज्यादा। मने अगर आप खर्च को कम करोगे या आत्मनिर्भर बनोगे तो कहीं न कहीं आप ज्यादा का नुक्सान करोगे और आपको मजदूर वाली जिंदगी गुजारनी पड़ेगी, बिजनेसमैन बनने के लिए ये जरूरी है कि आप अपने स्टाफ पर निर्भर रहें ताकि आप अपना ध्यान दुसरे जरूरी कामों में लाग सकें।


पता है की दुनिया में सबसे ज्यादा आयात कौन करता है?


अमेरिका, 24.64 ट्रिलियन डॉलर! फिर अमेरिका एक आत्मनिर्भर देश नहीं है? बिलकुल नहीं है जी, वो तो अपने लिए एक मलेरिया की दवा भी नहीं बना सकता, भारत से मंगवानी पड गईं, वो अपने लिए वेंटिलेटर तक नहीं बना सकता यूरोप और चाइना से मंगवाता है, उसके एप्पल फोन के पुर्जे तक चाइना में बनते हैं वो नहीं है आत्मनिर्भर, बल्कि उनकी कामयाबी का राज है कि वो ऐसे सामान नहीं बनाता जो सस्ते हो, जैसे दवाई, कपडे, वगेरह, वो सस्ते फ़ोन और मशीनरी भी नही बनाता, बल्कि वो बनाता है महंगे फ़ोन, हथियार, जहाज़, नयी टेक्नोलॉजी, भारी मशीनरी बनाता है जो उसके मुंह मांगे दामो में बिकती है और लास्ट में जब बैलेंस शीट आती है तो पता चलता है कि अमेरिका ने साल भर में जितना इम्पोर्ट किया है और उससे कहीं ज्यादा कीमत का सामान एक्सपोर्ट किया है, मने लास्ट में फायदा और बाकि बचा पैसा जाता है फोरेन रिज़र्व में और आप कहते है कि देखो अमेरिका बड़ा देश है।


यानि कि हम आत्मनिर्भर नहीं हो सकते?



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बिलकुल नहीं जी और बनना भी नहीं है क्युकी देश के कुल इम्पोर्ट का 81% कच्चा तेल होता है केसे बंद करोगे आप? और इसे बंद करने का मतलब है कि आपको देश के ज्यादातर ट्रक, ट्रेन, वाहन, पॉवर-प्लांट, हवाई जहाज़ बंद करने पड़ेंगे क्यूंकि हम देश की कुल तेल खर्च का छोटा सा हिस्सा ही अपने देश में निकालते है। इसका आसान हल है कि हम उस बिजनेसमैन की तरह सोचे जिसने हज़ार रुपये देकर घर की सफाई करवाई जबकि वो कीमत आम मजदूर के लिए ज्यादा थी, हमे इम्पोर्ट कम करने के बजाय एक्सपोर्ट बढ़ाने पर ध्यान देना होगा, देश में ऐसे उद्योग लगाने होंगे जो हाई क्वालिटी के सस्ते प्रोडक्ट बना सकें तभी साल का व्यापार घाटा कम होगा।


लेकिन ये होगा कैसे? जाहिर है कि बाहर से आने वाले तेल साबुन आटा खरीदना बंद करने से ये नहीं होगा, ये तो चिल्लर सामान है, असली खेल तो महंगे हथियारों, मशीनों, और तकनीक में होता है। जिसका खरीदना या बनाना सरकार एक हाथ में होता है, उस सरकार के हाथ में जिसने हाल ही में रक्षा क्षेत्र में भी 100% FDI लागू कर दी है यानि अब भारत का फौजी राइफल भी विदेशी चलाएगा, इसी सरकार ने देश में जापानी बुलेट ट्रेन को मंजूरी दी है देश की शताब्दी को पीछे करके तो भारत की कमाई कम होगी और जापान की बढ़ेगी, सरकार ने ही नागपुर मेट्रो का ठेका और पटेल की मूर्ति का ठेका चाइना को दिया था। ये सारे प्रोजेक्ट इतने बड़े हैं की आज से पूरा देश अगर तेल साबुन चप्पल सब देशी खरीदेगा तो दस साल में भी इतना पैसा नहीं बचा पायेंगे जितना ये सारे एक महीने में देश से बाहर ले जाते है।



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आत्मनिर्भर बनने का केवल एक तरीका है कि अपना एक्सपोर्ट बढ़ाओ, न की इम्पोर्ट घटाओ, और ये पूरी तरह से सरकार के हाथ में है क्यूंकि जब तक जनता के हित में कानून नहीं होंगे टैक्सेशन नहीं होगा जनता खुद के कारोबार नहीं कर सकती! वरना जनता को जो सस्ता दिखेगा वो खरीदेगी चाहे जहाँ बना हो !


और आखिर में अगर एक बार फिर आत्मनिर्भर बनने की बात करूँ तो मेरे हिसाब से देश के लिए इससे बुरा कुछ हो ही नहीं सकता क्यूंकि देश एक दुसरे से ही चलता है। जिस दिन अपने बच्चे को खुद से ट्यूशन देंगे उस दिन कोचिंग क्लास वाले सड़क पर मिलेंगे, जिस दिन आप अपना सामान बाजार से खुद खरीदेंगे उस दिन अमेज़न और फ्लिप्कार्ट कंगाल हो जाएँगी, जब सारे लोग अपना खाना खुद बना कर खायेंगे तब जोमैटो,स्विग्गी, और तमाम रेस्टारेंट बंद हो जायेंगे और चिल्लर से चिल्लर चीज़ है कि जिस दिन से सब अपने टिकेट खुद निकालेंगे उस दिन सारे ट्रेवल्स वाले कंगाल और जिस दिन से सब अपनी गाड़ी खुद चलाएंगे उस दिन सारे ड्राईवर बेरोजगार। ये दुनिया बस ऐसे ही चलती है और यहाँ आत्मनिर्भर होने का बस एक तरीका है कि दुसरे की बनायीं गाड़ी छोड़ कर दुसरे की चिने हुए घर से निकल कर दुसरे के सिले हुए कपडे उतार दो, दुसरे के बनाये फ़ोन को तोड़ दो और किसान की उगाई सब्जी भी फेंक दो और जंगल में जाकर खुद पत्ते तोड़ो और खाओ नंगे बैठ कर, वैसे इस हालत में भी आप पेड़ों पर निर्भर है।


किसी विद्वान ने कहा है की-


किसी भी देश के लिए सबसे बुरा आदमी वो है जो साइकिल चलाता है क्यूंकि वो कार नहीं खरीदता, उसमे तेल नहीं डलवाता, रिपेयरिंग और इन्शुरन्स पर पैसे नहीं खर्च करता, चालान नहीं भरता टोल टैक्स नहीं देता, रोड टैक्स भी नहीं देता, सेहत ठीक रहती है तो अस्पताल नहीं जाता दवा नहीं लेता, जिम भी नहीं जाता। इसका स्टैण्डर्ड डाउन रहता है तो ये महंगे कपडे या फोन नहीं लेता, 300 का पिज़्ज़ा नहीं खाता और इन सारी चीज़ों से निकलने वाला टैक्स भी नहीं देता और इतने खर्चो की जरूरत नहीं पड़ती तो ज्यादा नहीं कमाता। और हाँ पैदल चलने वाला इससे भी बुरा होता है क्यूंकि वो साइकिल खरीदने और रिपेयरिंग के पैसे भी बचा लेता है।

उम्मीद है की समझ में आ गया होगा, बाकि आपकी मर्ज़ी आपको मजदूर की तरह आत्मनिर्भर बनना है या अम्वानी की तरह खाने से लेकर दफ्तर तक दूसरों पर डिपेंड होना है।


फैसल आपका मर्जी आपकी।


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