उंदुलुश - एक दास्ताँ जिसे किताबों से भी मिटा दिया गया !
- TheoVerseMinds

- Apr 14, 2020
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उंदुलुस या एंडालुसिआ यूरोप के मुल्क स्पेन या हिस्फानिआ के दक्षिण का एक प्रान्त है। इसका नाम अरबी के लफ्ज़ अल-उंदुलुश से आया है। 8वी सदी की शुरुआत में जब मुसलमानों की सल्तनत उत्तर में अर्मेनिआ और जॉर्जिया, पूरब में ईरान अफगानिस्तान के आगे हिंदुस्तान में पंजाब तक, दक्षिण में पूरे उत्तरी अफ्रीका में और पश्चिम में तुर्की से आगे अल्बानिया तक पहुंच चूकी थी तो ऐसा लग रहा था की इटली और रोम बहुत जल्दी मुसलमानों के कब्जे में आ जायेंगे, लेकिन यूरोप की जियोग्राफी, ठंडा मौसम जिसके अरब लोग आदी नहीं थे, और बीच में कुस्तुन्तुनिआ/इस्तांबुल का पतला सा रास्ता जहां से बड़ी फ़ौज को आगे ले जाना मुश्किल काम था मिल कर रास्ता रोक रहे थे। तब तारिक़ बिना ज़ियाद नाम के एक मुस्लिम सरदार ने जिब्रालटर स्ट्रेट को पार करके हिस्फानिआ को फ़तेह करने का मंसूबा बनाया ताकि रोम को दो तरफ से टक्कर दी जा सके।

बताते चलें की जिब्राल्टर स्ट्रेट का नाम अरबी लफ्ज़ जब्ल अल तारिक़ से लिया गया है जिसका मतलब होता है तारिक़ का पहाड़ जो की उस जंग में मुसलमानों की अगुआई कर रहे थे। तारिक़ बिन जियाद ने अपने अफ़्रीकी नौजवानो की टुकड़ी को लेकर जिब्रालटर स्ट्रेट का समंदर पार किया जहां उनका सामना ईसाई राजा किंग रोड्रिक से 711 ईस्वी में हुआ और गुऑडलेट की जंग लड़ी गयी, मुस्लिम टुकड़ी के जवानों की तादाद पर अलग अलग ऑथर में बहस है कुछ ने लिखा है की 1700 सिपाही थे तो इब्न अब्द अल हक्काम नाम के लेखक लिखते है की फ़ौज की तादाद 12000 थी। बहरहाल तारिक़ बिन जियाद ने ये जंग जीत कर सल्तनते उमुविया क़ायम की। मुस्लिम हिस्टोरियन अल तबारी और इब्न क़ादिर लिखते हैं की उंदुलुस को फ़तेह करने की एक और कोशिस इससे पहले हो चुकी थी जिसमे खलीफा उस्मान बिन अफ्फान के जमाने में अब्दुल्लाह बिन नफ़ी अल हुसैन और अब्दुलाह बिन नफ़ी अल अब्दुला क़ैस नाम के दो सरदारों ने हिस्फानिआ पर चढ़ाई की थी मगर इसे मॉडर्न हिस्टोरियन मानने से इंकार करते हैं और तारिक़ बिन जियाद को ही वहां पहुंचने वाला पहला मुस्लमान मानते हैं। जिन्होंने उंदुलुस को जीत कर सल्तनते मुआविया की नीवं राखी थी जिसके राज में उंदुलुस एक आर्थिक, सैन्य, विज्ञान, और शिक्षा की सुपर पावर बनने वाला था।
बताते हैं की 756 तक आते आते पूरा उंदुलुस मुसलानों के कब्जे में आ चूका था मगर इस जंग के बाद कुछ ऐसा हुआ था जो इससे पहले नहीं होता था। अक्सर जंग में हारने वाले लोगों के साथ जानवरों से भी ज्यादा बुरा सलूक किया जाता था मगर यहां ऐसा कुछ नहीं था, उंदुलुस में रहने वाले यहूदियों और ईसाईयों के साथ ऐसा कुछ नहीं किया गया।
बीबीसी UK की एक रिपोर्ट बताती है की की उमुवीया सल्तनत में यहूदिओं और ईसाईयों पर जो कानून जो क़ानून लागू थे वो आज की मॉडर्न दुनिया में शायद अटपटे लगें मगर उस वक़्त की माइनॉरिटीज के लिए वो किसी सुनहरे ख्वाब से काम नहीं थे। क्यूंकि जंग में हारे हुओं को गुलाम बना कर उनकी औरतों को कनीज बना लिया जाता था जिनके पास कोई ह्यूमन राइट्स नहीं होते थे। बीबीसी ने लिखा है की उंदुलुस में ईसाईयों और यहूदियों को ये तमाम सहूलियत मुहैया थी।
वो गुलाम नहीं थे और आज़ादी की जिंदगी गुजार सकते थे।
वो अपना मजहब मानने अपने त्यौहार मनाने और उसे घर से बाहर दिखाने और अपनी धार्मिक पहचान रखने के लिए आज़ाद थे।
अपनी मर्ज़ी से इस्लाम अपना सकते थे मगर धर्म बदलो या मारो जैसा कोई कानून नहीं था।
वो अपनी मर्ज़ी का पेशा करने के लिए आज़ाद थे बशर्ते वो इस्लाम के किसी नियम के खिलाफ न हो जैसे की ब्याज आधारित बैंकिंग का कारोबार या बिना हलाल गोश्त का कारोबार।
वो सरकारी महकमों में ऊंचे पदों पर जा सकते थे और अपनी राय प्रशासन में रख सकते थे।
समाज और कल्चर में हिस्सा ले सकते थे तालीम हासिल कर सकते थे।
इसके साथ ही उन पर कुछ पाबंदियां भी थीं जैसे की -
उनकी अलग बस्ती होना जरूरी था, मुसलमानों के बीच में नहीं बस सकते ताकि एक दूसरे की इबादत में कोई दिक्कत न हो और किसी मुमकिन फसाद को टाला जा सके।
मुस्लिम नौकर या गुलाम नहीं रख सकते थे।
मुस्लिम औरत से शादी नहीं कर सकते थे।
जकात से छूट थी मगर जजिया देना होता था।
इस्लामिक सल्तनत की ताक़त के खिलाफ नहीं जा सकते थे।
इस्लामिक विश्वासों की बुराई या मजाक नहीं कर सकते थे।
मुसलमानों को अपने मजहब में लाने की कोशिस नहीं कर सकते थे।
इसके अलावा -
हथियार नहीं रख सकते थे।
कोई भी कपडे पहन सकते थे मगर ऐसा लिबास नहीं की मुस्लमान और उनमे फ़र्क़ करना मुश्किल हो जाये।
किसी मुस्लिम से वसीयत या विरासत नहीं ले सकते थे।
दो मुस्लिमों के बीच के झगडे में गवाही दे सकते थे जबकि दो गैर मुस्लिम या मुस्लिम और गैर मुस्लिम के झगडे में ऐसा सकता था।
किसी तरह की चोट की हालत में मुसलमानों से कुछ कम मुआवजा मिलता था।
ये वो दौर था जिसे गोल्डन ऐज ऑफ़ इस्लामिक एरा कहा जाता है। लोग शौक के तौर पर अरबी लिबास पहनते थे और फैशन में क़ुरआन की आयते गुनगुनाना शामिल था। यही वो वक़्त और जगह थी जहां कुरुने औला से पहले इस्लामिक साइंस पर आधारित यूनिवर्सिटी बनायीं गयीं थी। लोग दूर दराज़ से यहाँ पढ़ने आया करते थे और कई तो सिर्फ साइंस के करतब देखने आया करते थे, बताया जाता है की यहीं सबसे पहले इंद्रधनुष की रौशनी पैदा करने का आर्टिफीसियल सिस्टम बनाया गया था और उसी वक़्त में रोमन लोगो का विश्वास था की इंद्रधनुष देवताओं की गद्दी है। और जब 1492 में रोमनों ने उंदुलुस को वापस जीता तो और फौजी एक यूनिवर्सिटी के एक कमरे में घुसे तो देखा की एक बक्से नुमा मशीन में इंद्रधनुष दिखाई दे रहा है तो खलबली मच गयी की कैसे लोग हैं जिन्होंने देवताओ की गद्दी को भी बक्से में क़ैद कर रखा है। इब्न अल हातिम जिन्हे ऑप्टिकल साइंस का इजादकर्ता माना जाता है उंदुलुस के ही रहने वाले थे और जब उंदुलुस ईसाईयों के हाथ में चला गया तो तमाम लइब्रेरियों के साथ साथ इब्न अल हातिम की किताबें भी ईसाईयों के हाथ लग गयीं जिसके आधार पर विल्लेब्रोर्ड स्नेलियस ने अपनी पहली ऑप्टिकल साइंस की किताब लिखी जिसे आज ऑप्टिकल साइंस की शुरुआत माना जाता है।




व्यापार, तालीम, उद्योग, विज्ञान, इमारती कला अपने चरम पर थे। और ये सिलसिला 1031 तक चला जब उमुविया सल्तनत अपनी ताक़त खोने लगी थी और उधर रोमनो ने उंदुलुस को वापस लेने की कोशिशें तेज़ कर दी थी जिसकी शुरुआत सल्तनते उमुविया की शुरुआत के महज़ 11 साल बाद 722 ईस्वी में शुरू हो गयी थी। 1031 से लेकर 1130 तक का वक़्त उंदुलुस के लिए उथल पुथल भरा रहा और कोई मजबूत हुकूमत न आ सकी और आखिर में 1130 में उंदुलुस की सल्तनत कई हिस्सों में बंट गयी जिसके अलग अलग हिस्से पर अलग अलग सरदार हुकूमत करने लगे। और आने वाले 300 साल उंदुलुस के लिए बहुत अच्छे नहीं थे। 1200 के आस पास से रोमनों ने उंदुलुस पर अपने हमले तेज़ कर दिए थे और ये शायद इसीलिए भी था क्यूंकि उसी वक़्त में रोम के पूरब में तुर्की के काई कबीले के शहज़ादेएर्तुग्रुल बिन उस्मान ने हलब के शाह की मदद से सलीबी फौजों(क्रूसेडर्स) के खिलाफ मुहीम छेड़ कर सल्तनते उस्मानिया की नीव रख दी थी जो आने वाले 800 सालों तक चलने वाली थी और जिसमें कुरुने औला की अज़ीम तहज़ीब को वजूद में आना था। रोमन चाहते थे की इससे पहले एर्तुग्रुल सलीबी फौजों को हरा कर अल्बानिया से आगे बढ़े उससे पहले उंदुलुस को फ़तेह कर लिया जाए जिससे दो तरफ से घिरने की नौबत न आ सके।

200 साल के लगातार जंगों और अनेकों सुलहनामों के बाद आखिर 14वि सदी के आखिर में मुसलमानो ने अपने शहर एक एक कर गंवाने शुरू कर दिए और कोर्डोबा, बडाजोज़ जैसे शहरों को गंवाने के बाद आखिर में 1492 में ग्रानादा वो आखिरीे शहर था जिसकी फ़तेह ने 750 साल पुरानी इस्लामी सल्तनत को ख़त्म कर दिया और इसके बाद कोडोरबा की शाही मस्जिद को एक चर्च में तब्दील कर दिया गया जो की चर्च ही है। इस आखिरी जंग में ईसाईयों की तरफ से अरागोन के राजा फर्डिनेंड-3 और कैस्टाइल की रानी इसाबेला की फ़ौज थी जिसके सामने मुसलमानों की तरफ से शाह मुहम्मद-३ ने मुक़ाबला किया था जो आखिर में जंग के मैदान में लड़ते हुए ज्यादा खून बहने की वजह से जान गँवा बैठे। इस जंग को ईसाई तारिख में रेकॉन्क्वेस्टा के नाम से जाना जाता है।
बताया जाता है की फ़तेह ग्रानादा के वक्त राजा फर्डिनेंड ने कसम खायी थी की वहां के मुस्लिमों और यहूदियों हिफाज़त की जायेगी, इसका असर ये हुआ की जो मुस्लमान शिकस्त बाद उंदुलुस छोड़ कर अफ्रीका लौट रहे थे वो अब यहीं रुक गए और उन्हें वो तमाम अधिकार दे दिए गए तो उमुविया सल्तनत में ईसाईयों को मिले थे मगर ये सब लम्बे वक़्त तक नहीं चला और 1500 आते आते मुसलमानों पर सरकारी अधिकारीयों और फ़ौज के जुल्म बढ़ गए अब तक बादशाह अपनी कसम की खातिर उन्हें बचता रहा लेकिन इस बीच उसने 1502 से लेकर 1505 तक रोम के पॉप को कई खत लिखे और कसम तोड़ने की इज़ाज़त मांगी और आखिकार 1505 में मुल्क के तमाम मुसलमानों के नाम मरो या ईसाई बनो का फरमान जारी हो गया जिसके बाद बहुत सारे मुसलमान उंदुलुस छोड़ कर दूसरे मुल्कों में वापस जाने लगे लेकिन जल्द ही मुल्क छोड़ने पर भी बैन लगा दिया गया और सिर्फ वही लोग देश छोड़ कर जा सकते थे जो राजा का जारी किया हुआ टैक्स 10 सोने की तुर्की मोहरे दे सकते थे जो की उस वक़्त के हालात में बहुत कम लोगों के लिए मुमकिन था। लिहाज़ा अक्सर वही फंस गए।
बताया जाता है की 1525 आते आते ये पाबंदियां इतनी बढ़ा दी गयी की मुसलमानों को क़त्ल करने के बजाय ऐसी दर्दनाक सजाएँ दी जाने लगी की वो मौत की पनाह मांगते थे, एक हिस्टोरियन लिखते है की एक छोटे दो नौक के भले को पट्टे से मुसलमानों की गर्दन पर इस तरह से बाँध दिया जाता था की गर्दन निचे न हो सके और ये तब तक किया जाता जब तक वो ईसाई न बन जाए या तड़प तड़प कर मर न जाए। नाखून उखाड़ना, भूखा प्यासा रखना, तांबे के बैल के पेट में बंद करके आग पर चढ़ा देना, परिवार के लोगों को एक दुसरे के सामने आरी से काटना उस वक़्त की आम सजाएँ थीं।

ऐसे वक़्त में 4 तरह के मुसलमान सामने आये।
जो किसी तरह से भाग गए।
जो तड़प तड़प कर मर गए।
जो जाहिर तौर पर ईसाई बन गए मगर छुप छुप कर इस्लाम को मानते रहे, इन्हे क्रिप्टो मुस्लिम कहा गया।
और जो वाक़ई ईसाई बन गए।
बताया जाता है की ३सरी तरह के ज्यादा थे यानि जो ईसाई बन गए मगर अंदर से अब भी मुस्लिम थे, धीरे धीरे उनकी खबर रोम तक पहुँचने लगी और इलाक़ो में जासूसों को भेजा जाने लगा की कहीं कोई चोरी छुपे कोई इस्लाम को तो फॉलो नहीं कर रहा और जो पकड़ा जाता उसे कड़ी सजाएँ दी जाती थी। इसके बाद पॉप आदेश जारी हुआ की जो सभी नए ईसाई बने लोगों को ये साबित करना पड़ेगा की वो सच में ईसाई बन गए हैं और क्रिप्टो मुस्लिम नहीं हैं।
साबित करने के प्रोसेस में हर एक को सूअर का मांस खा कर दिखाना होता था, शराब पीनी पड़ती थी, सबके सामने जीसस की पूजा और अल्लाह की बुराई करनी पड़ती थी वरना उसे क्रिप्टो मुस्लिम मान कर मार डाला जाता था। इसी दौरान अफ्रीका के मुफ़्ती अहमद इब्न अबी जुमा अल मगरवी अल वेहरानी ने एक फतवा जारी किया जिसका नाम था फतवा आरोन, जो शायद अब तक की इस्लामिक हिस्ट्री का सबसे विवादित फतवा है।
इसमें मुफ़्ती अहमद ने हदीसों की मदद से ये साबित करने की कोशिस की थी की किस तरह से उंदुलुस के मुस्लिमों को अपनी जान बचाने के लिए तय किये गए टेस्ट को पास करने के लिए जो भी जरूरत पड़े तो तो कैसे ईमान बचाया जाए। इसके बाद भी कई मुस्लिम सरदार जिनमे एबेन हुमैया/इब्न मुहम्मद उमय्या का नाम सबसे ऊपर आता है, ने उंदुलुस को वापस पाने की कोशिशें की मगर नाकाम हुए।

आज 500 सालों बाद उंदुलुस जो की अब एंडालुसिआ है, स्पेन का एक राज्य है और क़ानूनी तौर पर ईसाई इलाक़ा है। बताते चलें की एंडालुसिआ आज दुनिया के सबसे बदनाम टूरिस्ट प्लेसेस में नंबर 1 पर आता है जिसमे शहर बार्सिलोना सबसे ऊपर है, ट्रिप एडवाइजर के मुताबिक़ बार्सिलोना में शाम के वक़्त सड़क पर निकलेंगे तो आपको हर थोड़ी दूर पर कोई न कोई शराब या ड्रग्स के नशे में उलटी करके पड़ा हुआ या खुलेआम इश्क़ फरमाता जोड़ा मिल ही जाएगा, जिस्मफरोशी, ड्रग्स, बिक्री, जुआघर, सेक्स पार्टियां, न्यूडिस्ट रिसोर्ट, जैसी चीज़ें दुनिया भर के नौजवानों को यहां आने के लिए ललचाती हैं। लूटमार यहां आम है और दिन की रौशनी में बिना कपड़ो के बाजार में घूमना एक आम बात क्यूंकि अक्सर टूरिस्ट यहां नंगे घुमते हुए पाए जाते हैं।
आखिर में एक शेर, की संभल जा ऐ जाहिल अब भी वक़्त है वरना तेरी दास्तान भी न होगी दास्तानों में !!
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