तो क्या दुश्मनों को ख़त्म करने के बाद रवांडा एक खुशहाल मुल्क बन गया था? पढ़िए हमारी रिपोर्ट!
- TheoVerseMinds

- Apr 13, 2020
- 7 min read
तो दोस्तों सबसे पहले तो बात ये ये है की हममे से अक्सर ने तो रवांडा का नाम भी नहीं सुना होगा, आपको बताता चलूँ की रवांडा सेंट्रल अफ़्रीका का एक गरीब देश है जो लम्बे समय तक यूरोप के देश बेल्जियम का ग़ुलाम रहा था।

यहां दो जातियों के लोग रहते थे एक थे तुत्सी लोग और दूसरे थे हुतु लोग, तुत्सी एक माहिर कौम थी जो बिना किसी सरकारी मदद के भी अच्छी माली हालत में थे और अक्सर बड़े बिजनेस और सरकारी नौकरियों काबिज थे। 1990 के आस पास 72.1 लाख की आबादी वाले इस देश में 91% हुतु थे और 8% तुत्सी और बाकि अन्य वर्ग के लोग थे। गुलामी से आज़ादी के बाद देश की सरकारें हर मोर्चे पर बुरी तरह से नाकामयाब रहीं इसीलिए उन्होंने गोएबेल्स के क़दमों पर चलते हुए हुतु लोगों को ये बताना शुरू कर दिया की आपकी नौकरी, पैसा, रोजगार, चिकित्सा सब ये पोने छह लाख तुत्सी समुदाय वाले लूट ले रहे हैं इसीलिए आपके लिए कुछ बचता ही नहीं है। इन घटनाओं में बढ़ोतरी और ज्यादा तब हो गयी जब एक कट्टर हुतु नेता बुरुंडी इलेक्शन जीत कर सत्ता में आ गया और उसके जमाने में देश के हर रेडिओ अखबार ने ये चीख चीख कर बताना शुरू कर दिया की अगर आपको खुश रहना है तो इन तुत्सीओं को मार डालना कितना जरूरी है क्यूंकि अगर एक तुत्सी आम अपराध तो क्या अगर एक बिजनेस भी करता है, अपनी प्रार्थना भी करता है या जिन्दा भी रहता है तो वो हर वक़्त आप लोगों के खिलाफ प्लानिंग बना रहा है और उसे ख़त्म करना इसलिए भी जरूरी है की अगर ऐसा न किया गया तो वो तुम्हे ख़त्म कर देंगे, जी हाँ आठ प्रतिशत लोग इक्यानवे प्रतिशत लोगों को मार डालेंगे।

प्लानिंग होती रही और नफरत बांटी जाती रहीं, बताया जाता है की तुत्सी लोगों को क़त्ल के लिए 50 हज़ार से ज्यादा कटारे पड़ोस के देशो से खरीद कर मंगाई गयी। तुत्सी लोगों में कुछ जो आने वाले खतरे को भांप चुके थे वो भाग कर दूसरे देशों में चले गए और एक संगठन बनाया जिसका नाम था Ranwandan Patriotic front. दोनों समुदायों के बीच में छोटी मोटी झड़पें होती रहती थी, 1993 में शांति समझौता भी हुआ जो की नाकामयाब रहा।


6 अप्रेल 1994 को रवांडन राष्ट्रपति जूवेनल हबयारीमना जो की एक हुतु थे उनके प्लेन को किसी ने राकेट से उड़ा दिया, ये किसका काम था नहीं पता चला मगर उस वक़्त इसका आरोप रवांडन पैट्रिअटिक फ्रंट पर लगा जिससे तुत्सी लोगों के खिलाफ गुस्सा अपने चरम पर पहुंच गया, या यूँ कहें की इतने सालों से जो बारूद भरा जा रहा था उसे चिंगारी या बहाना मिल गया। उधर देश के राष्ट्रपति की मौत के बाद हुकूमत ख़त्म हो गयी इसलिए फ़ौज के कर्नल थियोसे बगसोरा ने पावर अपने हाथ में लेली और अगले दिन 7 अप्रेल 1994 को देश के हर रेडिओ और अखबार ने ये ऐलान कर दिया की तुत्सी लोगों ने हमारे नेता को मारा है इसलिए इनका नामो निशान मिटा देना चाहिए।


रेडिओ से कहा गया की ये सारे तुत्सी इंसान नहीं कॉक्रोच है और अगर इन्हे नहीं मारा गया तो ये तुम्हे मार देंगे, वो तुम्हारे बच्चो और औरतों को कब्ज़ा लेंगे। इस ऐलान के बाद पूरे रवांडा में ऐसी लहर दौड़ी की लोगों के मन में तुत्सी लोगों के लिए रहम दिल से निकल गया और उन्हें सड़कों और गली कूचों में दौड़ा दौड़ा कर काटा जाने लगा। हालात ये थे की लोग तुत्सी को मार कर ख़ुशी महसूस करते थे और जश्न मनाते थे, रेडिओ और अखबार बाकायदा रोज मरने वालों को तादाद और आगे की प्लानिंग बताते थे और ये भी बताते थे की और कितनों को मारा जाना चाहिए। औरतों को मारा गया , बच्चों को मारा या, गर्भवती औरतों के पेट को चीरकर उनके पेट से अजन्मे बच्चे को निकाल कर रौंदा गया क्यूंकि उनकी नज़र में वो जहर वाले पौधे का बीज था जिसे ख़त्म किया जाना जरूरी था।

रोज सुबह ढोल नगाड़े से क़त्ले आम शुरू होने की खबर दी जाती और क़त्ल शुरू हो जाते, सड़कों पर नाका लगा कर लोगों के पहचान पात्र देख कर लोगों को मारा गया छोटे छोटे बच्चों को जमीन पर पटक कर मार दिया जाता था। राजधानी किगाली से 1 घंटे की दूरी पर नात्रामा नाम का एक चर्च है जिसमे तकरीबन 5000 लोगों ने पनाह ली थी, वहाँ से बच निकलने वाली एक बच्ची ने बताय की उसकी माँ ने कहा था यहां हम मेहफ़ूज़ हैं क्यूंकि ये ऊपर वाले का घर है। मगर जब भीड़ वहां पहुची तो एक एक को काट काट कर मारा गया और सिर्फ वो बच्ची बच सक क्यूंकि उसने खून लथपथ लाशों के बीच में कटे हुए जिस्मों के बीच मरने की एक्टींग की थी। ये सब लगभग 100 दिन तक चलता रहा और तुत्सी अपनी आबादी का 78% ख़त्म कर दिए गए, जो भाग गए वो ही जिन्दा बचे।

पूरी दुनिया का इस सारे मामले पर ठंडा रवैया रहा और किसी भी देश ने रवांडा में हाथ डालने से मन कर दिया और अमेरिका ने एक कदम आगे आकर ये बयान दे डाला की अमेरिका के कोई दोस्त नहीं होते जिन्हे बचाया जा सके, अमेरिका के केवल मतलब होते हैं। ठीक उसी वक़्त UN की शांति सेना रवांडा में थी जिसके कमांडर रोमियो डैलेर चाहते थे की ये सब रुकना चाहिये मगर UN हेडक्वार्टर से जवाब आया की हम अपने फौजियों की जाना नाहक में नहीं गँवा सकते और आपको टुकड़ी समेत फ़ौरन रवांडा छोड़ना होगा।
खैर एक पूरी कौम का लगभग नामों निशान मिटा दिया गया और जो बचे वो देश छोड़ गए, यहां तक की अगर किसी हुतु के घर में तुत्सी बीवी थी तो उसे भी मार डाला गया और पीछे छूट गया एक ऐसा रवांडा जहां तुत्सी नहीं थे सिर्फ हुतु थे, देशभक्त हुतु। और साथ ही तुत्सी लोगों की छोड़ी हुई बेशुमार जमीन दौलत नौकरी दुकाने फैक्ट्री गोदाम और कंपनियां। सब बहुत खुश थे अब सब उनका था इसलिए नरसंहार ख़त्म होने के साथ ही एक बड़े दर्ज़े की लूटमार शुरू गयी और जिसे मिला वो लूट कर ले गया, एक मशहूर यूरोपियन पत्रकार लिखते हैं की मैं एक हुतु पुलिस अधिकारी को जानता हूँ जिन्होंने कम से कम 15 दुकानें और गोदाम अपने कब्जे में कर लिए और जब सब कुछ न संभाल पाए तो बाकि का सामान बेचने की कोशिश भी की मगर ऐसे माहौल में जहां सब कुछ फ्री में मौजूद हो जहां किसी भी सामान के लिए सिर्फ किसी तुत्सी की दुकान या मकान ढूंढने भर की जरूरत हो वहाँ भला पैसे देकर कोई सामान क्यों खरीदेगा? लिहाज़ा उन अफसर साहब ने वो बाकि की दुकानें या गोदाम अपने रिश्तेदारों में मुफ्त में बाँट दिए की जिससे जितना लिया जा सके ले जाओ। पूरे देश का कई महीनो के इस्तेमाल के लायक हर चीज़ हर किसी को फ्री में हासिल हो गयी बिना किसी मेहनत या मजदूरी या कीमत के।

बस ठीक यहीं से तस्वीर कर दूसरा हिस्सा शुरू हो चूका था, क़त्ले आम रुके हुए कई महीने गुज़र चुके थे और हुतु वर्ग जितनी उम्मीद कर रहा था उससे कहीं ज्यादा खुश था न कुछ करना न धरना फ्री में मजा करना। लेकिन वो कहावत है न की अगर पूरी दुनिया के अमीरों से उनका माल लेकर गरीबों में बाँट दिया जाये तो क्या होगा? कुछ दिन बाद अमीर दोबारा पहले से भी ज्यादा अमीर हो जाएंगे और गरीब पहले से भी ज्यादा गरीब क्यूंकि अमीर इसलिए अमीर नहीं होते की उनके पास पैसा है बल्कि इसलिए अमीर होते हैं की उन्हें कमाने का हुनर आता है और वो उस पर मेहनत करते हैं, गरीब इसलिए ज्यादा गरीब हो जायेंगे की एक तो उन्हें कमाना नहीं आता दूसरे जितना उन्हें आता था वो भी फ्री का माल मिलने के बाद कोशिश करना छोड़ देंगे और पहले से ज्यादा नाकारा हो जायेंगे और उनका बाकि माल भी अमीरों के पास चला जाएगा। बस यही हुतु के साथ हुआ, जब तक उन्हें सब मिल रहा था तो ठीक था मगर उसके बाद क्या? ज्यादातर फैक्ट्रियां तो उनकी थी जो मारे गए या भाग गए, अक्सर बड़े कारीगर और मेहनती लोग भी ख़त्म हो गए और जो बाकि कारखाने दुकाने बचे भी थे वो हुतु लोगों ने बंद कर दिए क्यूंकि उन्हें क़त्ले आम और लूट मार और फिर घर बैठ कर फ्री खाने से फुर्सत नहीं थी, जो थोड़ा बहुत आयात निर्यात था वो बंद हो चूका था क्यूंकि कुछ बन नहीं रहा था तो निर्यात किस चीज़ का हो और जब कोई खरीदेगा नहीं तो आयात किस चीज़ का करें? कोई बाहरी कंपनी भी नहीं आ सकती क्यूंकि सबको पता था की खून मुँह लगे हुए भेड़िये अपने घरों में भूखे है जो किसी भी बाहरी कंपनी के शोरूम या प्लांट को लूटने में ज़रा भी देर नहीं लगाएंगे। रही सही कसर जगह सड़ती हुई लाशों ने भी पूरी की माहमारी
फैला कर, या यूँ कहें वो मरने के बाद अपना बदला ले रहे थे।

आखिरकार 1995 आते आते रवांडा में इस क़दर की भुखमरी और मारा मारी फैली की कल जो लोग तूतसियों को मार डाल रहे थे आज वो खुद भूख से मर गए या दवा न मिलने से मर गए या अपनों के ही हाथों से थोड़े से खाने या किसी और चीज़ के लिए मर गए, वही हाथ जो अब तुत्सी लोगों का खून पीकर इसके आदि हो चुके थे और अब उनके लिए क़तल करना बड़ी बात नहीं थी। बाहर से भी कोई चीज़ मांगने का आईडिया काम नहीं आया क्यूंकि महीनों तक पूरी इकॉनमी बंद होने से रिज़र्व बैंक का भट्टा बैठ चूका था और अब करेंसी का कोई मोल नहीं था इसीलिए विदेशी व्यापारी सिर्फ डॉलर या गोल्ड में डील करना चाहते थे जो निर्यात बंद होने की वजह से नहीं बचा था, जो थोड़ा बहुत राशन वगैरह का इंतज़ाम हो पाता वो सरकारी अधिकारीयों और नेताओं में बाँट दिया जाता था।
अगले कुछ सालों में रवांडा ने क़ुदरत का वो नंगा नाच देखा जो शायद आने वाली पीढ़ियों और पूरी दुनिया के लिए सबक बन गया। उधर जो तुत्सी भाग कर युरोप और बाकि देशों में चले गए थे उन्होंने वहां अपने हुनर के दम पर अपने कारोबार शुरू कर दिए और जल्द ही RPF एक मजबूत संगठन बन गया और हुतु पर बदले की कार्रवाइयां शुरू कर दी।
कमोबेश ऐसा ही एक और किस्सा हमें रवांडा के पडोसी देश युगांडा में देखने को मिलता है जहां के तानाशाह ईदी अमीन ने ये फरमान जारी कर दिया था की हमारे मुल्क में जितने एशियाइ लोग रहते हैं वो हमारी नौकरी और दौलत लूट रहे हैं अलबत्ता उन्हें जल्द से जल्द अपना सब कुछ छोड़कर मुल्क से निकलना होगा वरना मार दिए जायँगे और वहाँ की अवाम ने भी एक महान अकाल का सामना किया और ऐसा ही कुछ हमने जर्मनी में देखा पढ़ा पर वो किस्से किसी और दिन के लिए छोड़ देते हैं और ये समझने की कोशिस करते हैं इस दुनिया में क़ुदरत ने हर एक चीज़ को मकान की एक ईंट की तरह लगाया हुआ है। अगर इसमें से एक छोटी सी ईंट को भी निकाला गया या तोडा गया तो पूरा मकान गिरने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
नोट - तकनीकी गड़बड़ की वजह से ऊपर कुछ ऐसी तस्वीरें शामिल हो गयी हैं जिनका इस मामले से कोई ताल्लुक नहीं है, रीडर्स से अनुरोध है की उन्हें इग्नोर करके ही इस आर्टिकल का पढ़े।
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