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अरल सागर - एक किस्सा जब एक तानाशाह ने एक पूरा समंदर सुखा दिया।

कहते है न कि इस दुनिया में मोजूद हर चीज़ को भरा जा सकता है सिवाय इंसान के लालच के, ये ऐसी चीज़ है जिसे न कभी भरा जा सका और न कभी इसे पूरा किया जा सकता है। यहाँ तक कि अगर किसी एक इंसान को अगर पूरी दुनिया का मालिक बना दिया जाये और पूरी दुनिया की सबसे खूबसूरत सौ औरतों को उसकी बीवी बना दिया जाए तो भी शायद उसकी लालच की भूख ख़त्म न हो।


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इतिहास ऐसे किस्सों से भरा पड़ा है जब किसी इंसान के लालच ने उसके खुद के परिवार को, उसकी सल्तनत और यहाँ तक खुद उसकी खुद की जान तक को खतरा खड़ा कर दिया तो कई बार किसी एक इंसान के लालच की कीमत हजारों लाखों इंसानों या जानवरों को जान देकर चुकानी पड़ी है। लेकिन आज हम किसी इंसान या जानवर नहीं बल्कि एक समंदर की बात करेंगे जिसे एक तानाशाह की सनक के चलते अपना वजूद खोना पड़ा।


अरल सागर मध्य एशिया में एक बड़ी झील का नाम था जिसके बड़े साइज़ की वजह से इसे सागर कहा जाता था, ये लगभग 68000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था और इसकी सीमायें उस समय के तजाकिस्तान, किर्गिजस्तान, त्जकस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, रूस, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान से लगती थी। इत्तेफाक से ईरान और अफ़ग़ानिस्तान को छोड़ कर बाकि सभी देश उस समय के सोवियत संघ का हिस्सा थे इसीलिए अरल सागर का 90% हिस्सा रूस के अंडर में आता था।



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इसे द्वीपों का सागर कहा जाता था क्यूंकि इसमें छोटे छोटे 1100 के करीब द्वीप थे, ये मछलियों से भरा हुआ एक संसाधनों से पूर्ण सागर था। इसके आस पास के इलाकों के ज्यादातर लोग या तो मछली पकड़ कर एक्सपोर्ट करते थे या तो खेती करते थे जिसके लिए अरल सागर से पानी लिए जाता था और इतना बड़ा समंदर होने की वजह से इलाके में बारिश भी अच्छी होती थी इसलिए ये कहा जा सकता था कि अपने चारो तरफ के देशो की अर्थव्यवस्था डायरेक्ट या इन्डायरेक्ट रूप से अरल सागर पर टिकी हुई थी।


अब जहा अर्थव्यवस्था की बात आती है तो वह सुरक्षा भी जरूरी होती है इसलिए जब 1847 में सोवियत यूनियन ने इम्पीरियल रशियन नेवी की स्थापना की तो उसका एक बेडा अरल सागर में भी उतारा गया ताकि कोई और देश इसमें मछली का शिकार या कोई और कार्रवाई न कर सके।


वक़्त गुजरता गया और अरल सागर अपने दम पर लोगों का पेट पालता चला गया लेकिन फिर अचानक वक़्त बदला, द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म होने के साथ ही अमेरिका और रूस में तनातनी शुरू हो गयी और आगे चल कर ये शीत युद्ध में बदल गया। लेकिन युद्ध पैसे से लड़े जाते है और पैसा आता है टैक्स और एक्सपोर्ट से जिसके लिए अच्छी अर्थव्यवस्था चाहिए होती है। लिहाज़ा देश में उत्पादन बढाने के नए नए तरीके ढूंढें जाने लगे ताकि अमेरिका का मुकाबला किया जा सके।



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1960 के दौर के सोवियत संघ के लीडर निकिता ख्रुश्चेव(Nikita Khrushchev) के दिमाग में एक आईडिया आया की क्यूँ न तजाकिस्तान के रेगिस्तानों की खाली जमीनों में खेती की जाए, लेकिन दिक्कत ये थी कि खेती में लिए रेगिस्तान में पानी कहा से लाया जाए? जेसा ऊपर लिखा है अरल सागर एक बहुत बड़ी झील थी और कहीं भी महासागर या किसी दूसरे सागर से जुड़ा नहीं था जहा से उसमे पानी आ सके इसलिए पानी बना रहने के लिए अरल सागर दो नदियों पर निर्भर था। एक थी दक्षिण से आने वाली नदी अमू-दरिया और पूरब से आने वाली सयर दरिया


फैसला लिया गया कि इन दोनों नदियों पर बड़े बड़े बाँध बना कर इनका सारा पानी रोक लिया जायेगा और इस पानी को नहरों के जरिये तजाकिस्तान के रेगिस्तान की तरफ ले जाया जाएगा ताकि वहां कपास, और बाकि नगदी फसलो की खेती करके पैसा कमाया जा सके। क्यूंकि उस समय में कपास की मांग इतनी थी की उसे वाइट गोल्ड के नाम से जाना जाता था।

दरअसल इससे पहले ये दोनों नदिया साल भर अरल सागर में पानी गिराती रहती थी और पानी धीरे धीरे धूंप से सूखता रहता था और इस तरह ये समंदर हमेशा पानी से भरा रहता था। 60 के दशक में इन दोनों नदियों पर दर्जनों बाँध बनाने का सिलसिला शुरू हुआ और 1988 में इनमे से ज्यादातर बाँध बन कर तैयार हो गये और इन नदियों में आने वाला पानी तजाकिस्तान की तरफ मोड़ दिया गया।




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अब समंदर में धूंप से पानी सूख तो रहा था पर पहले जितना पानी आ नहीं रहा था इसलिए पानी धीरे धीरे सूखने लगा। 1988 से लेकर 2003 तक पानी का लेवल घट कर 150 मीटर से 77 तक ही रह गया और जहाँ जहाँ सागर कम गहरा था वो हिस्से अब पानी से बाहर आ गये और अब ये सागर बंट कर चार छोटी छोटी झीलों की शक्ल में रह गया। इस सब में सबसे बड़ा झटका वहाँ के मछुआरों को लगा क्यूंकि अब अरल सागर में मछलियों के जिन्दा रहने के लायक पानी नहीं बचा था।


हम जानते है कि हर सागर के पानी में नमक होता है, अक्सर होता ये है कि जेसे जेसे समन्दर का पानी सूखता है तो नमक बढ़ने लगता है लेकिन साथ ही नदियाँ ताज़ा पानी समंदर में गिरा देती है और नमक का बढ़ता लेवल ताज़ा पानी में घुल कर कम पड़ जाता है, और इस तरह दुनिया भर के समन्दरों में नमक का लेवल एक ही रहता है। लेकिन अब चूँकि अरल सागर में नया ताज़ा पानी तो आ नहीं रहा था और रुका हुआ पानी घटता जा रहा था तो नमक इतना ज्यादा बढ़ गया कि समन्दर में मछली या पानी के किसी भी जानवर का जिन्दा रहना नामुमकिन हो गया। और ये पूरा समंदर एक झटके में फिशिंग पॉइंट से मृत सगर बन गया।


सोवियत के डैम प्रोजेक्ट का आखिरी बाँध 2005 में बन कर तैयार हुआ तो अरल सागर को बचाने के लिए इसमें कुछ पानी छोड़ा गया जिससे पानी का लेवल 2005 से 2008 तक 7 मीटर तक बढ़ गया लेकिन तब तक इलाके में ग्लोबल वार्मिंग और गर्म हवाओं का असर इतना ज्यादा हो चूका था कि अब यहाँ थोडा बहुत पानी छोड़ने का कोई फायदा न था।


इस सागर से जुड़े हुए जितने भी मछली या दुसरे उद्योग थे वो सारे ठप हो गये और इलाके में इतना भयंकर आर्थिक अकाल आया कि ये देश आज भी गरीबी से जूझ रहे है और उनके अक्सर नागरिक दुसरे देशो में जाकर मजदूरी करके अपना परिवार पालते है। आस पास की खेती भी अब बर्बाद हो गयी क्यूंकि पानी नहीं था साथ ही समन्दर के सूखने की वजह से तमाम जगहों का ग्राउंड वाटर का लेवल भी नीचे चला गया इसलिए बोरिंग भी बेकार आईडिया था। समन्दर का पानी सूखने से जो बादल बनते थे वो आस पास के देश में मानसून लाते थे जो अब बनने बंद हो गये इसलिए तमाम पडोसी देशो के मौसम और मानसून पर इतना बुरा असर पड़ा की अब वो गर्म हवाओं के बीच में रेगिस्तान वली जिंदगी जीने को मजबूर है।


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तो आखिर जिस मकसद के लिए इसे सुखाया गया था उसका क्या हुआ।


ये प्रोजेक्ट 60 के दशक में शुरू हुआ था और 1988 में पहला बाँध पूरा हुआ लेकिन तब तक अमेरिका सोवियत की हालत खराब कर चूका था और अब सोवियत अर्थव्यवस्था या शान के लिए नहीं बल्कि अपने वजूद के लिए लड़ रहा था और 1991 में सोवियत यूनियन भंग हो गया और इसके अंडर में आने वाले सारे देश आजाद हो गये।


जब ये सागर सूखने लगा तो इसका सारा नमक इसकी तली में बैठ गया जो वक़्त के साथ गर्म हवाओ के साथ उड़ कर तजाकिस्तान की तरफ जाने लगा जहा इसके पानी से कपास की खेती हो रही थी। पहले ये हवाए ठंडी होती थी क्योंकि इतना बड़ा समन्दर बीच में था लेकिन अब जब ये गर्म नमक वाली हवाए तजाकिस्तान में जाती तो खेती के अलावा इंसानों तक का रहना मुश्किल हो जाता और जिस जमीन को उपजाऊ बनाने का सपना निकिता ने देखा था उसे नमक ने फिर से बंजर बना दिया। और अब अरल सागर की सुखी तली पर पड़े पुराने फिशिंग जहाज़ किसी जहाजों के कब्रिस्तान की फीलिंग देते है...


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जिस भरी पूरी इकॉनमी का सपना देखा गया था वो तो पूरा न हुआ उलटे जेसी अच्छी खासी इकॉनमी पहले थी अब वो भी सागर के सूखने के साथ बर्बाद हो गयी और सारे पडोसी देश देखते ही देखते गर्म रेगिस्तान में बदलने लगे, कई बार लोगों ने इस खाली पड़ी जगह में खेती करने की कोशिश भी की लेकिन उस जगह में इतना नमक है की शायद अब वहां अगले कई सौ साल तक घास का तिनका तक उगना मुश्किल है। और अगली कई नस्लें एक लालची बुड्ढे तानाशाह के लालच का फल भुगतने को मजबूर है।


आप इसे पता नही क्या कहेंगे लेकिन मेरी नज़र में तो ये तो कुदरत का इंसान से बदला है "एक समन्दर का बदला। वो कहते भी है न -


Earth provides enough to satisfy every man's needs, but not every man's greed.”

"ये दुनिया हर की जरूरत को पूरा करने के लिए बहुत बड़ी है लेकिन किसी एक के भी लालच को पूरा करने के लिए बहुत छोटी।


धन्यवाद्!


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