प्रोजेक्ट ईसाबेला - एक जंग जिसमे एक देश को बकरियों के खिलाफ फ़ौज उतारनी पड़ी।
- TheoVerseMinds

- Jun 9, 2020
- 7 min read
दोस्तों आपने आज तक कई तरह की जंगों के किस्से पढ़े और सुने होंगे, कई जंगें बहुत बहादुरी वाली होती है तो किसी में एक सेना बुजदिली दिखा कर भाग खड़ी होती है। कहीं हिम्मत और ताकत का बोलबाला होता है तो कहीं कम लड़ कर अक्ल और रणनीति के दम पर भी जंगें जीती जाती है तो कहीं कहीं हजारों लाखो की फ़ौज के सामने मुट्ठी भर लोग भी बाजी मार ले जाते है, स्पार्टा की जंग, भीमा कोरेगांव की जंग, और बदर की जंग ऐसे ही कुछ जीती गयी थी।
लेकिन इन सब में एक बात कॉमन है और वो ये कि इन सब में इंसान की जंग इंसान से होती है। पर क्या सभी जंगों में? दोस्तों दुनिया में कई जंगें इंसानों के अलावा जानवरों के खिलाफ भी लड़ी गयी है जिसमे एक तो इन्सानों ने हारी भी है। लेकिन आज हम एक ऐसी जंग के बारे में बात करेंगे जिसमे इंसानों को न चाहते हुए भी ढाई लाख बकरियों के खिलाफ युद्ध में जाना पड़ा था और ये जंग जीतने के लिए बाकायदा हेलिकोप्टर, स्नाइपर से लेकर जीपीएस और ट्रेंड जासूसों तक की मदद लेनी पड़ी थी फिर भी जीतने में 9 साल लग गये थे
आइये जानते है की आखिर बकरियां इतनी खतरनाक कैसे हो गयी।
दक्षिण अमेरिका में एक खूबसूरत सा छोटा सा देश है इक्वाडोर, ये पेरू, अर्जेंटीना और चिली की सीमा से लगता है। मुख्य इक्वाडोर से लगभग 1000 किलोमीटर पश्चिम में एक द्वीपों का समूह है जिसे गालापागोस द्वीप समूह कहा जाता है, ये लगभग 8010 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए दर्जनों द्वीपों का समूह है जिसमे सबसे बड़ा द्वीप लगभग 120 किलोमीटर लम्बा और 61 किलोमीटर चौड़ा है। 1980 तक भी ये सारे द्वीप इंसानों से खाली थे और यहाँ जानवरों और पक्षियों की कई अलग किस्मे पाई जाती है जिसमे से सात किस्मे ऐसी है जो पूरी दुनिया में सिर्फ इसी द्वीप समूह पर पायी जाती है।







इन सात में सबसे अहम है बड़े समुद्री कछुए जिन्हें इस द्वीप समूह के नाम पर गालापागोस कछुए कहा जाता है, ये वजन में 450 किलो तक जा सकते है और पूरी दुनिया में सिर्फ यही पाए जाते है।

1959 में यहाँ से आने जाने वाले जहाजियों ने यहाँ तीन बकरियां छोड़ दी ताकि आते जाते समय फ्री का मांस मिलता रहे और सफ़र के शुरू से बहुत सारा खाना लाद कर न चलना पड़े। इनमे एक बकरा और दो बकरियां थी। अब द्वीप पर बकरियों के खाने के लिए अनलिमिटेड खाना पानी था, धूंप छाँव की कमी न थी, मौसम भी गर्म था जो बकरियों को पसंद होता है और सबसे बढ़कर आम जंगल की तरह यहाँ कोई शिकारी न था जैसे शेर, चीता या भालू वगेरह यानि अब ये द्वीप बकरियों के लिए सेफ हाउस बन गये।
हालाँकि बकरियां तैर नहीं सकती लेकिन पता नहीं कैसे ये एक एक करके सारे द्वीपों में फ़ैल गयी और अपनी आबादी फ़ैलाने लगी। पानी को पार करके एक द्वीप से दुसरे पर जाने की कहानी आज तक एक राज है और माना जाता है कि टूटे हुए पेड़ो के तनो पर तैरते हुए इन्होने समुद्र के छोटे हिस्सों को पार किया होगा।
सिर्फ 21 साल में इन बकरियों की तादाद 3 से बढ़कर 30000 हो गयी क्यूंकि यहाँ इन्हें बढ़ने के लिए जरूरी हर चीज़ मुहैया थी और खा कर या मार कम करने के लिए कोई चीज़ नहीं थी।

लेकिन इसके साथ इनके नुक्सान सामने आने लगे। समंदरी कछुए अक्सर पानी के किनारे रेत में लेटकर धूंप सेंकते हुए पड़े रहते है लेकिन अब इस जगह बकरियां घूमने लगी, और मादा कछुआ कभी अपने अंडे नहीं सेती बल्कि वो रेत में गड्ढा खोद कर उसमे अंडे देती है और ऊपर से रेत दाल कर ढँक देती है और जब बच्चे अण्डों से बाहर आते है तो वो रेत से निकल कर पानी में चले जाते है। पर जब यहाँ बकरियों को दौड़ लगने लगी तो उनके खुरों से ये अंडे जमीन के नीचे ही फूट जाते थे और कछुओं की आबादी घटने लगी।
वहां रहने वाले बाकि जानवर भी भी बकरियों से परेशान रहने लगे और सील वगेरह किनारे पर रहने वाले जानवर वहां से कम होने लगे तो साथ ही पत्थरों में अंडे देने वाली चिड़िया भी इनका शिकार बनने लगी क्युकी उनके अंडे भी बकरियों के खुरों से टूट जाते थे , यहाँ तक की पेड़ो पर रहने वाली चिड़ियों को भी इनसे बचना मुश्किल हो गया क्युकी ये बकरियां पेड़ों के सारे पत्ते खा जाती थी और चिड़ियों के घोंसले या तो हिलने से गिर जाते थे या बाद में धूंप और बारिश से अंडे बच्चे मर जाते थे
जब इक्वाडोर के सरकार ने इसका ध्यान दिया तो 1975 में जंगली कुत्ते द्वीप पर छोड़ने का प्लान बनाया गया लेकिन अब अब तक ये बकरियां इतनी घाघ हो चुकी थी कि साथ मिलकर कुत्तों को अपने सींगों और खुरों से निशाना बनाना शुरू कर दिया और इस तरह ये प्लान बुरी तरह से फ़ैल हो गया।
जो कछुए पहले ढाई लाख के करीब थे वो 1990 आते आते लगभग 30000 ही बचे और इनके ख़त्म होने का खतरा मंडराने लगा। 1995 आते आते बकरियां लगभग 2 लाख हो गयी और खाना न मिलने की वजह से ये अपने सामने आने वाली हर एक चीज़ को खाने लगीं जिससे द्वीप पर रहने वाले मूल नस्ल के पक्षी और जानवरों का भूखा मरना शुरू हो गया। सरकार में बकरियों के लिए कोई समाधान ढूँढने पर बहस छिड़ी तो कई अलग अलग किस्म के आईडिया पेश किये गये।

सबसे पहले आईडिया ये रखा गया कि इन सब बकरियों को एक एक करके पकड़ कर मांस बाजारों में बेच दिया जाये लेकिन जब जाल लगाकर पकड़ने, जहाज में लादने और बेचने के खर्च का अंदाजा लगाया गया तो ये बहुत महंगा साबित हुआ और इस आईडिया को छोड़ दिया गया, जाहिर है कि हज़ार किमी तक जहाज़ खाली केवल बकरियों को लेने के लिए जाता और वहां रह कर पकड़ने वाले शिकारियों का खर्च रहने और खाने का इंतज़ाम कोई मामूली बात न थी।
दूसरा आईडिया ये रखा गया कि इन द्वीपों पर शेर छोड़ दिया जाय ताकि वो खुद ही इन्हें खा कर ख़त्म कर दें लेकिन एक तो उनका कुत्तों वाला हश्र होने और अपनी बेईज्ज़ती होने का डर और दूसरा ये भी गारंटी न थी की शेर सिर्फ बकरियां ही खायेगा और बाकि जानवर जो पहले ही ख़त्म होने के कगार पर है उन्हें नहीं खायेगा।
तीसरा आईडिया में कहा गया कि वहां शिकारी बन्दूको के साथ उतार दिए जाए जो सीधा निशाना लगा कर शिकार कर दें लेकिन ये भी लम्बा और पेचीदा तरीका था इसलिए इस बात पर सहमति बनी कि न्यूज़ीलैण्ड से हेलिकोप्टर किराए पर लिए जायेंगे जिनमे स्नाइपर्स को राइफल्स के साथ भेजा जाएगा जो हेलिकोप्टर से ही बकरियों को तेज़ी से निशाना बनायेंगे।
इस प्लान का प्रोजेक्ट ईसाबेला रखा गया और 1997 ने जब ये प्रोजेक्ट शुरू हुआ तो बकरियों की तादाद द्वीप पर ढाई लाख तक पहुंच चुकी थी। न्यूज़ीलैण्ड से हेलिकोप्टर और निशाने बाज़ मंगाए गये और प्रोजेक्ट शुरू हुआ।
शुरूआती तीन सालों में द्वीपों से 90% बकरियां मार दी गयी लेकिन अब भी 25000 लगभग बकरियां बाकि थी और इसके साथ ही स्नाइपर ने एक नयी आफत का पता लगाया, इस द्वीप पर बकरियों के साथ कुछ गधे और सूअर भी थी जो शायद बकरियों के साथ ही यहाँ पहुंचे होंगे और अब तक बेतहाशा बकरियां होने के वजह से दिखाई नहीं दिए थे, और इन्हें जिन्दा छोड़ना खतरनाक था क्यूंकि बकरियां ख़त्म होने पर ये भी बकरियों की तरह तबाही मचा सकते थे लिहाज़ा इन्हें भी प्रोजेक्ट ईसाबेला में शामिल करके निशाना बनाया गया।
अब एक नया सर दर्द शुरू हो गया, बकरिया पिछले तीन साल से हेलिकोप्टर को मंडराते देख कर और दूसरी बकरियां मरते देख कर हेलिकोप्टर को पहचानने लगीं थी और अब उन्हें पता था कि इस आवाज़ का मतलब फ़ौरन मौत होता है। अब हेलिकोप्टर की आवाज सुनते ही सारी बकरियां गुफाओं, घने जंगलों और पत्थरों के पीछे छुप जाती थी और जब सेना के हेलिकोप्टर जाते थे तो उन्हें पूरा द्वीप खाली मिलता था।

इन बाकि बकरियों को छोड़ा भी नहीं जा सकता था क्यूंकि याद रहे ये सारा बवाल सिर्फ तीन बकरियों ने शुरू किया था और यहाँ तो अभी बीस हज़ार से ज्यादा बाकी थी जिनका ख़त्म होना जरूरी था, सरकार ये बिलकुल नहीं चाहती थी कि 20 साल बाद इस प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करना पड़े इसलिए आखिरी बकरी का मारा जाना जरूरी था। और इसके लिए एक और आईडिया सामने आया।
इसी जंगल से कुछ बकरियों को पकड़ा गया उसे खास ट्रेनिंग दी गयी ताकि वो अपनी बाकि साथियों को ढूंढ सके, ट्रेनिंग के बाद इन बकरियों में जीपीएस लगा कर इन्हें जासूस के रूप से जंगल में छोड़ दिया गया और शिकारी चुपचाप पैदल इस बकरी का पीछा करने लगे। अब ये बकरिया जेसे ही किसी गुफा में जाती फ़ौरन सेना वहां हमला करके इस एक गद्दार बकरी को छोड़ कर सबको मार डालते थे और इन तरह इस गद्दार बकरियों ने अपने साथियों को एक एक करके ख़त्म करवा दिया।
ये पूरा प्रोजेक्ट कुछ इस तरह चला -
1997 - इंटरनेशनल वर्कशॉप & प्रोजेक्ट ईसाबेला लौन्चिंग
1999 - बकरियों को जल्दी मारने के कई नए तरीके अपनाये गये और गधो और सूअरों के होने का पता लगाया गया।
2000 - ईसाबेला प्रोजेक्ट को आगे बढाने के लिए UN को शामिल किया गया और IMF से 13.3 मिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया। सेंटिआगो द्वीप में 18000 के करीब सूअरों को मार कर इस द्वीप से ख़त्म कर दिया गया।
2001 - जासूस बकरियों के साथ जमीनी शिकार शुरू हुआ।
2003 - पिंटा द्वीप को बकरी मुक्त घोषित किया गया।
2004 - सेंटिआगो द्वीप को गधा मुक्त घोषित किया गया।
2005 - सेंतिआगो द्वीप को बकरी मुक्त घोषित किया गया लेकिन उत्तर के द्वीपों पर 20-30 होने का अनुमान लगाया गया जिन्हें जंगल में ढूंढना सबसे मुश्किल था।
2006 - साल की शुरुआत में तमाम द्वीपों को बकरी, सूअर और गधों से मुक्त घोषित कर दिया गया और एक साल तक निगरानी के बाद साल के आखिर में 266 जासूस बकरियों को गोली मार कर ऑफिशियली प्रोजेक्ट ईसाबेला को ख़त्म करने का ऐलान कर दिया गया।

अगर आपको लगता है कि आखिर कुछ बकरियां कैसे इतनी बड़ी आफत बन सकती है तो जरा बताईये कि आपके आस पास पलने वाली बकरियों में से कितनी ऐसी होती है जो अपनी प्राकृतिक मौत मरती है? जवाब है जीरो, सब कसाई या जंगल में शेर के हाथों मरती है!
बकरी या हिरण और इसी प्रजाति के तमाम जानवरों की बढ़ने के रफ़्तार इतनी ज्यादा तेज़ होती है कि अगर इंसान और मांस खाने वाला तमाम जानवर इन्हें ख़त्म न करें तो ये कुछ ही साल में पूरी दुनिया क ढांक देंगे, बिलकुल गेलेपगोस द्वीप की तरह।
वैसे मुझे नहीं पता आपको पूरी कहानी में कौन सा किरदार ज्यादा पसंद आया पर मेरा फेवरेट किरदार था जासूस बकरियां, क्यों था ये आप भी जानते हो।
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