खिड़की मस्जिद - जिसकी महानता और सेकुलरिज्म आज की सरकार को आँखों में चुभ रहा है!
- TheoVerseMinds

- Jun 5, 2020
- 6 min read
वो कहते है न कि जबान तो सब चला सकते है लेकिन हाथ चलाना सबके बस की बात नहीं होती, पर जो हाथ नहीं चला सकते वो अक्सर हाथ चलाने वालों के काम को मिटाने की कोशिश किया करते है।

रोम का एक किस्सा है कि एक बार एक मशहूर कारीगर ने एक बेकार पड़े पत्थर से तैश में आकर जीसस की ऐसी मनमोहक मूर्ति बनायीं जैसी कोई आज तक न बना सका। लेकिन फिर क्या था, एक सरफिरे ने एक दिन हथोड़े से उस मूर्ति का हाथ तोड़ दिया। लोगों ने पकड़ा और पूछा कि ऐसा क्यूँ किया तो उसने जवाब दिया कि आज के बाद जब भी कोई इस मूर्ति और इसके बनाने वाले का जिक्र करेगा तो उसे मजबूरन मेरा भी जिक्र करना पड़ेगा।
बस यही वो इंसान है जिससे हमारी सरकारों ने सीख ले रखी है। ये कुछ बना तो नहीं सकते अलबत्ता चीज़ों को तबाह कर रहे है ताकि जब भी उस चीज का जिक्र हो तो मजबूरन हमें मोदी नाम के एक इन्सान का जिक्र भी तबाह करने वाले के तौर पर करना पड़े।

साल था 1325, दिल्ली में खिलजी सल्तनत ख़त्म हो चुकी थी और गयासुद्दीन तुगलक ने खिलजियों को हरा कर गद्दी संभाली थी और अब गयासुद्दीन का बेटा मुहम्मद बिन तुगलक सुल्तान बना था। कहते है दिल्ली सात बार बनी और उजड़ी है, जब कोई राजा जंग हार जाता था तो जीतने वाला लूटने के चक्कर में दिल्ली को तबाह कर देता था और फिर से अपने हिसाब से बसाता था। तुगलकाबाद, शाह्ज़हनाबाद, फिरोजाबाद, ये सारे शहर ऐसे ही बसे थे जो आज दिल्ली शहर के अन्दर आ चुके है। लेकिन ये वाले बादशाह थोड़े से शरीफ थे, इन्होने दिल्ली शहर को कुछ न कहा बल्कि शहर से थोडा सा दक्षिण में जा कर आज के तुगलकाबाद के पास एक नाय शहर बसाया जिसका नाम था जहाँपनाह दिल्ली।

ऐसा वैसा शहर न था, बड़ा आलिशान महलों मदरसों दफ्तरों और मस्जिदों वाला शहर था, कहते है की इसमें बादशाह ने अंगूरों के बाग़ लगवाए थे, फूलों और फलों के अलग बगीचे थे जिसमे बीच बीच में सरकारी दफ्तरों के लिए जगह छोड़ी गयी थी। शहर में पानी की सप्लाई के लिए सतपुला नाम का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी बनवाया गया था जो अपने वक़्त से आगे की सोच की चीज था। आदिलाबाद, बेगमपुर मस्जिद, बिजयामंडल, कालूसराय मस्जिद, सराय शाहजी महल, लाल गुम्बद वगेरह सब इसी शहर का हिस्सा थे।



मुहम्मद बिन तुगलक हमेशा वक़्त से आगे कि ही सोच रखता था लेकिन उसके राजधानी बदलने के फैसले, दुनिया कि पहली और नाकामयाब नोटबंदी जैसे कुछ फैसलों ने उसे इतिहास में बेवक़ूफ़ बादशाह का दर्जा दिलवा दिया या यूँ कहें कि कुछ सो-कॉल्ड सेक्युलर और इमानदार इतिहासकारों ने उसे ऐसा लिख दिया। वरना मैं तो ऐसा कुछ नहीं मानता।
बहरहाल,1351 मे बादशाह की मौत के बाद उसका बेटा फिरोज़शाह तुगलक सुल्तान बना।

फिरोज़शाह ने जब हुकूमत संभाली तो सल्तनत की हालत कुछ कुछ आज के भारत के जेसी थी, बिखरी हुई शासन व्यवस्था, ठहरी हुई इकॉनमी, अधूरी जंगें और अधर में अटका हुआ दरबार जिसके दरबारी अपनी मनमानी करते थे।
1323 में सल्तनत के सरदार अल्माश खान ने काक्तेय राजा प्रतापरुद्र पर हमला किया था और वारंगल किले पर कब्ज़ा कर लिया। इस युद्ध में गिरफ्तार होने वालों में से एक काक्तेय सेनानायक विभुदु नाग्या गन्ना भी था जिसे बंदी बना कर दिल्ली लाया गया। बाद में जब आम माफ़ी के तहत नाग्या को छोड़ा गया तो वो राजा की रहमदिली से इतना प्रभावित हुआ कि उसने वापस जाने के बजाय दिल्ली में रुक कर सुल्तान की खिदमत करने का फैसला किया क्यूंकि उसने अब तक जंग हारने वालो के सर कटते देखे थे और ऐसा राजा जो हारने वालों को माफ़ करके वापस भेज दे पहली बार देखा था। नाग्या ने बाद में इस्लाम क़ुबूल करके अपना नाम बदल कर मलिक मकबूल रख लिया। चूँकि वारंगल शहर तेलंगाना में पड़ता था इसलिए उसे मलिक मकबूल तेलंगानी कहा जाने लगा और
1325 में सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने मलिक मकबूल को सिपहसलार बना कर वापस तेलंगाना भेज दिया या यूँ कहें कि उसे उसका पुराना शहर वापस दे दिया। मलिक ने 1335 तक दक्षिण के अलग अलग शहरों में फ़ौज की कमान संभाली और 1335 में मंसूरी कपाया नायका से जंग में वारंगल हारने के बाद एक बार फिर सुल्तान के दरबार का रुख किया और फिरोज़शाह तुगलक का वक़्त आने तक दरबार में ही रहा।
फिरोज़शाह ने गद्दी सभालने के बाद मालिक को वजीर खज़ाना या वित्त मंत्री बना दिया और वफादारी को देखते हुए अगले कुछ साल बाद उसे अपना वजीर बना लिया यानि सुल्तान के बाद दूसरा सबसे ताकतवर आदमी। शायद भारत के इतिहास में ये अकेला ऐसा उदहारण है जहाँ एक जंग में बंदी बना एक गुलाम बाद में उसी दरबार में इतने अहम् ओहदे तक पहुंचा हो।
फिरोज़शाह तुगलक ने अपने राज में जंगों को ख़त्म करने, सल्तनत की सरहदों को न बढ़ाने, मसलो को समझोते से सुलझाने और इकॉनमी और अवाम की हालत पर ध्यान दिया, याद रहे कि ये वो दौर था जब हर एक मसले का हल सिर्फ तलवार होती थी और इकॉनमी या अवाम की तरक्की जेसी कोई चीज़ राजाओं के जेहन में न होती थी।
सुल्तान ने कई किले और मदरसे(मने विद्यालय, आज की तरह मुस्लिम शिक्षा का केंद्र नहीं) बनवाए, उल्माओं और विद्वानों को खुश करने और उनकी सलाह से काम करने की कोशिश की लेकिन आज हम इसकी नहीं किसी और चीज़ की बात यहाँ कर रहे है। मलिक मकबूल ने बादशाह का वजीर रहते हुए कई बड़े फैसले लिए लेकिन वो वक्ती फैसले थे, और सदियों तक निशान छोड़ जाए ऐसा एक ही फैसला था।
मलिक ने जहाँपनाह दिल्ली के पश्चिम में, सतपुला के पास में एक मस्जिद बनवाई जिसकी खासियत ये थी कि इसके हजारों खिड़कियाँ थी जिससे हवा आती रहे और मस्जिद ठन्डी रहे इसलिए इसे खिड़की मस्जिद कहा गया। ध्यान रहे कि ये एक हिन्दू के रूप में पैदा हुए वजीर ने बनवाई थी तो उसका बनाव भी किसी मंदिर से मिलता था, खुल्ली खिड़कियाँ, चोकोर शेप, बीच में एक अहाता और दर्ज़नो गुम्बद इसे किसी आम मस्जिद से अलग करते थे और ये पहली नज़र से देखने में ही किसी दक्षिण के मंदिर से प्रेरित लगती थी। बताते है कि पिल्लरों पर बनी इस मस्जिद के सारे के सारे पिलर मेरठ से बना कर पुआल में लपेट कर चालीस पहियों वाली गाड़ी में लाये गये थे।



मलिक दुनिया से गये और साथ ही गये सुल्तान और उनकी सल्तनत लेकिन मलिक कि मालिक भक्ति और उसकी वफादारी की मिसाल वो मस्जिद आज भी उसी तरह दिल्ली के मालवीय नगर इलाके में शान से खड़ी है, साढ़े छह सौ साल कि आंधी बारिश और दुनिया भर कि बदलती सरकारें भी इस देश कि सेकुलरिज्म की अखंड मिसाल को न गिरा सकी लेकिन फिर अचानक कुछ गिद्ध सत्ता में आये और मस्जिद में नमाज़ पढ़ने पर रोक लगा दी। कुछ पचास सालो के अन्दर ही ये मस्जिद खँडहर में तब्दील होने लगी रखाव की कमी से इसके गुम्बद एक एक करके गिरने लगे। ध्यान रहे कि वो यही गिद्ध थे जिन्हें देश आज सेक्युलर के नाम से जानता है।
आज ये आलिशान मस्जिद किसी मकबरे जेसी नज़र आती है और इसमें अक्सर नशेडी नशा करते हुए मिलते है और कई बार तो आस पास के अय्याश जोड़े इसके पिलरों से लग कर इश्क फरमाते भी दीखते है पर अफ़सोस उन्हें रोकने का कोई सिस्टम हमारे पास नहीं है। इससे भी बढ़कर हद्द तो तब हुई जब ASI से इसमें अय्याशी और नशेबाजी लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करते हुए इसमें नमाज़ पढ़ने को अपराध करार दे दिया और इसे सरकार की प्रॉपर्टी घोषित करके एक बोर्ड लगा दिया।
मगर उससे भी ज्यादा अफ़सोस उस दिन हुआ जब कुछ नफरती लोगों ने इस बोर्ड से खिडकी मस्जिद से मस्जिद शब्द को मिटा दिया।
दूसरी तरफ इसी सरकार के रहते हुए उस मालिक के अहसानमंद वफादार इंसान के मकबरे को ताला लगा कर जुआरियों और नशेड़ियों का अड्डा बना दिया है और आज देखने में वो किसी भुतहा खँडहर नज़र आता है और शायद आप में से कई लोगो को ये भी न पता हो कि ये मकबरा कहाँ है।

शायद इस देश में हद्द से ज्यादा सेकुलरिज्म और शांति चाहने वालो का यही सम्मान होता है।
खिड़की मस्जिद का पता जानने के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते है।
मलिक मकबूल के मकबरे का पता जानने के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते है।
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