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क्या हज़ारों करोड़ के हथियार वाकई मुल्क को ताक़तवर बना सकते हैं? या ये सिर्फ एक छलावा है? आइये जानते


अगर आप भी कुछ इस तरह के सवालों के जवाब जानना चाहते हैं तो आइये आज आपको बताते हैं की क्या होती है इन खरीदे हुए हथियारों की औकात, और ये जंग में कितना काम आते है। या कम से कम क्या इन्हें हम अपनी मर्ज़ी से चला भी सकते हैं ये सिर्फ दुनिया को दिखने का डब्बा भर है। आखिर कोई तो वजह होगी की अमेरिका जैसा दादा देश अपने यहाँ हथियारों की खेती करता रहता है और मलेरिया की दावा के लिए उसे हमारे सामने हाथ फैलाना पड गया? वो अपने लोगों के लिए दावा भी बना सकता था लेकिन नहीं बनायीं। और ये तो आप भी समझते हैं की हथियार और दवा में से दवा ज्यादा जरूरी चीज़ है लेकिन फिर भी वो ऐसा क्यूँ नहीं करते।

दोस्तों सबसे पहले एक छोटी से बात समझते है की ये जो बड़े बड़े देश और उनकी बड़ी कम्पनियां जो हथियार बना कर बेचती हैं वो आपके मोहल्ले का किराने वाला तो है नहीं जिसने साबुन बेच दी और भूल गये, वो अपने बेचे गये हर एक हथियार का शुरू से अकिर तक ब्यौरा रखते हैं और साथ ही ये तय करते हैं की हमारा ये हथियार या जहाज़ किस जगह किसके खिलाफ और कहा इस्तेमाल होगा, और अगर खरीदार ने उनके ये शर्ते मानने से इनकार कर दिया तो बड़े ही आसान लफ़्ज़ों में वो उसे बेचने से इनकार कर देंगे यानि घंटा।



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नहीं समझे? ओके फ़ोन तो खरीदा होगा? पेहली बार जब id डाल डालकर लॉग इन किया होगा तो उसमे एक टर्म & कंडीशन का पेज आता है जिसे अपने बिना पढ़े ओके कर दिया होगा, ऐसा ही तब भी होता है जब आप कोई नया एप्प डाउनलोड करते हो तो, उसमे भी टर्म्स कंडीशन और पालिसी का पेज होता है आप इसे भी ओके कर के निकल जाते हो। कभी पढ़ कर देखना, इसमें वो सारा ब्यौरा और शर्ते होती है जो कम्पनी आप पर लगाती है उनका फ़ोन या एप्प इस्तेमाल करने के बदले, और अगर आपने इन शर्तों को नहीं माना या तोडा तो कम्पनी आपसे अपनी सेवाएँ वापस ले सकती है। कैंसे? जैसे ही आप कोई भड़काऊ ट्वीट करते हो तो ट्विटर आपका अकाउंट सस्पेंड कर देता है या जब आप कोई नग्न तस्वीर फेसबुक पर अपलोड करते हो तो वो आपका अकाउंट ब्लाक कर देता है, और जब आप अपने फ़ोन से कोई गैरकानूनी हरकत करते हो और सरकारी अथॉरिटी आपकी कंप्लेंट फ़ोन कम्पनी में कर दे या आप फ़ोन को रूट करके उसके बाई डिफ़ॉल्ट सिक्यूरिटी सिस्टम को बाईपास करो तो कम्पनी आपके फ़ोन का लाइसेंस रद्द कर सकती है फिर आपका फ़ोन एक डब्बे से ज्यादा कुछ नहीं रहेगा। अब एक छोटे से फ़ोन या सिम के साथ इतनी सारी शर्ते और कंडीशन जुडी हो सकती हैं तो इतने बड़े जहाज़ या मिसाइल या टैंक के साथ न जुडी होंगी ये आपने कैसे सोच लिया? अगर अब भी आपको यकीन नहीं है तो अपने आस पास जो भी टेक्निकल आइटम हो उसके बिल के साथ मिली जानकारी की किताब में देखना, एक छोटा सा कोना कहीं टर्म्स & कंडीशन का होगा और उसमे साफ लिखा होगा की किन शर्तों के न मानने पर कम्पनी आपसे ये प्रोडक्ट वापस ले सकती है।


इसके दो और उदहारण, कसी भी कम्पनी के सिम पर ये साफ लिखा होता है की ये सिर्फ ग्राहक को नेटवर्क की सुविधा के लिए दे दिया गया है कम्पनी ने इसे बेचा नहीं है ये कम्पनी की प्नॉपर्री है और वो उसे वापस भी ले सकते है। और Iphone के साथ ये शर्त आम तौर पर होती है की अगर आप किसी भी फिल्म या नाटक या किसी ड्रामे में उनका फ़ोन इस्तेमाल करते हो तो उसे सिर्फ हीरो हीरोइन या किस अच्छे किरदार के हाथ में दिया जा सकता है, अगर आपने विलन या किसी ग्रे शेड के किसी किरदार के हाथ में एप्पल का फ़ोन दिखा दिया तो कम्पनी आप पर मुकदमा कर सकती है भले ही आपने फ़ोन पैसे देकर खरीदा है।



ये तो हुई छोटे से फ़ोन की बात, अब बात करते है बड़े आइटम्स की। सोचिये की अमेरिका और पाकिस्तान दोस्त देश है। भारत ने अमेरिका से कुछ मिसाइल खरीदे और बाद में जंग होने पर पाकिस्तान के ऊपर छोड़ दिया, क्या पाकिस्तान अमेरिका से इसका ऐतराज नहीं करेगा? या इसका उल्टा भी हो सकता है अगर पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया तो भारत अमेरिका से कहेगा की देखो पाकिस्तान वाले आपके हथियारों से हमे मार रहे है और हम तो आपके दोस्त है। इसका सबूत देखना है तो एयर स्ट्राइक के बाद की खबरें निकालिए, मीडिया वालो ने चिल्ला चिल्ला कर बताया की पाकिस्तान ने अमेरिका को F-16 इस शर्त पर बेचे थे की वो इनका इस्तेमाल सिर्फ बलूचिस्तान में करेगा और किसी जंग में ये जहाज़ इस्तेमाल नहीं होगा, और हुआ भी यही था कि जब एक जहाज़ कश्मीर में गिर गया था तो अमेरिका ने अपनी एक टीम पाकिस्तान भेजी थी ये देखने के लिए की सारे जहाज़ सलामत हैं या नहीं। अब बताओ अगर अमेरिका ने जहाज़ बेच दिए तो उन्हें क्या मतलब की पाकिस्तान उनसे लड़े य खड़े करके आग लगा दे तुम्हे क्या? लेकिन ऐसा नहीं होता हथियारों को मार्किट में, पूरा पैसा देने के बाद भी मालिक हथियार बेचने वाला ही होता है न की खरीदने वाला। अब ये बात आपको मीडिया ने चीख चीख कर बता दी लेकिन ये आराम से दबा गये कि ऐसे ही हजारों अग्रीमेंट हर उस हथियार और टेक्नोलॉजी के साथ भी हुए थे जिन्हें हिंदुस्तान ने किसी भी बाहरी मुल्क से खरीदा है।


अब आप सोच रहे होंगे की ऐसा क्यूँ नहीं हो सकता कि हम बेचने वाले देश को बतायें ही न की हमने तुम्हारा हथियार कहाँ कहाँ चलाया है याने झूठ बोल दें? लेकिन अफ़सोस मगर ऐसा नहीं हो सकता क्यूंकि वो एक एक मशीन में ट्रैकिंग के इतने इंतज़ाम कर देते हैं की आप लाख चाहे पर वो पता लगा लेंगे की आप क्या कर रहे हैं। जैसे की -


आप गाड़ी खरीदते हैं तो उसमे आपको एक सर्विस बुक मिलती है जिसमे ये लिखा होता है की आपको इतने महीने या इतनी रनिंग होने पर गाड़ी वापस लानी होगी सर्विस के लिए, और अगर आपने ऐसा नहीं किया तो आपकी गाड़ी वारंटी से बाहर हो सकती है यानि हम उसकी रिपेयर फिर नहीं करेंगे या करेंगे भी तो बहुत महंगी कीमत पर, अब आप गाड़ी को कहीं भी चलाओ वो रनिंग किमी के हिसाब से आईडिया लगा ही लेंगे की आपने गाड़ी कहाँ चलायी है, दूसरा ये गाड़ी है इसे अगर कम्पनी वारंटी से बाहर कर ही देती है तो आप इसे रोडसाइड मिस्त्री से रिपेयर करवा कर भी काम चला सकते हैं लेकिन फाइटर जहाज़ का तो मिस्त्री भी नहीं मिलता।


कम्पनिया जान पूछ आकर उसमे कुछ पार्ट ऐसे लगाती हैं जो एक वक़्त के बाद बदलने ही पड़ते हैं वरना आप हथियार को इस्तेमाल नहीं कर सकोगे। मान लो जहाज़ के खरीदने के वक़्त अग्रीमेंट लेटर में आपने लिखा की इसे हम सिर्फ पाकिस्तान के खिलाफ इस्तेमाल करेंगे वो भी सिर्फ जंग में, जिसके हिसाब से माने कोई पार्ट आपको हर छः महीने में लेना पड़ेगा, लेकिन उसी चीज़ का आर्डर आप कम्पनी को दो या तीन महीने में देते हो तो वो सोचेंगे की हो न हो अपने इसे रोजाना की गश्त की उड़ान में भी इस्तेमाल किया है ये इसे बांग्लादेश या चाइना के बॉर्डर पर भी भेजा है जिससे रिपेयर की जरूरत हुई है, अब कम्पनी अपने जासूसी सिस्टम से ये पता लगाएगी की कहीं आप झूट तो नहीं बोल रहे ? और जैसे ही ये बात साबित होगी वो आपसे अपना जहाज़ वापस ले लेंगे और मीडिया आपको बतएगी की आज हमारा जहाज़ पहाड़ों में टकरा कर टूट गया और उसका मलबा भी नहीं मिल सका।


साथ में ये कम्पनिया शर्तों में ये श्योर करती हैं की आप वो पार्ट खुद बनाना शुरू न कर दें।


अब ये तो हुआ की कम्पनिया कैसे पता लगाती हैं की आप उनकी मर्ज़ी के खिलाफ तो नहीं जा रहे, लेकिन अगर ये साफ़ हो गया की उनकी लगायी शर्तों को तोड़ रहे हैं, तो वो क्या करेंगे? ध्यान रहे की एक कम्पनी चाहे कितनी भी बड़ी और ताक़तवर क्यूँ न हो अपनी फ़ौज नहीं रखती और सिक्यूरिटी के लिए अपनी सरकार की मातहत होती है। आखिरी बार दुनिया में किसी कम्पनी को अगर अपनी फ़ौज रखने की परमिशन मिली थी तो वो ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कम्पनी थी जिसने फ़ौज के दम पर भारत और उसके जैसे जाने कितने देशो में अपनी सरकार बना ली थी लेकिन आगे चलकर उससे होने वाले खतरे को देखते हुए 1957 में राज करने और फ़ौज रखने का अधिकार छीन लिया गया था और आगे चलकर कम्पनी को ही भंग कर दिया गया ताकि वो कोई कम्पनी ज्यादा ताकतवर हो कर अपनी ही सरकार के खिलाफ हथियार न उठा ले। और उसके बाद आज तक कोई भी कम्पनी चाहे वो लॉकहीड मार्टिन या बोईंग जितनी बड़ी ही क्यूँ न हो जिसका टर्नओवर भारत जैसे देशों की कुल जीडीपी का कई गुना है, अपनी फ़ौज नहीं रखती और किसी भी दबाव या कार्रवाई के लिए अपनी सरकार पर निर्भर होती है।


अब मान लीजिये की किसी दिन अमेरिका को पता चला कि भारत ने हमारे बेचे गये किसी हथियार के कॉन्ट्रैक्ट को तोडा है तो सबसे पहले तो वो एक सर्वे टीम भेजेगा जैसे पाकिस्तान में जहाज़ गिनने के लिए भेजी थी जो ये तय करेगी की क्या सच में शर्त तोड़ी गयी है और अगर हाँ तो उसके सबूत जुटाएगी। सबूत मिलते ही सबसे पहले तो अमेरिका की वो कम्पनी जिसने उस हथियार को बनाया और बेचा था वो उसके वो तमाम पार्ट्स और तमाम छोटे हथियार जो उसमे इस्तेमाल होते थे मसलन जहाज़ के साथ छोटे बम, मिसाइल, पायलट का लाइफ सपोर्ट सिस्टम, वो सब सप्लाई करना बंद कर देगा जिससे वो दो चार महीने में वैसे ही कूड़े का ढेर बन जायेगा।


  • दूसरा वो उस कम्पनी और अपनी देश की और दूसरी तमाम कम्पनियों को भारत में किसी भी तरह का हथियार बेचने और अगर पहले बेचा हुआ है तो उसका मेंटेनेंस वही रोक दिया जाएगा। मने एक नहीं फलां देश से जितने भी हथियार खरीदे थे सारे डब्बा और ऊपर से नया मिलने की उम्मीद भी नहीं। साफ़ तौर पर ऐसा कोई मीडिया नहीं बताती लेकीन छोटा मोटा अपने पढ़ा होगा की रूस ने फला देश को अपना नया रडार बेचने से मन कर दिया, ये सारा शर्ते तोड़ने ये न मानने का मसला होता है।

  • इसके बाद तीसरा स्तर का काम शुरु होता है, दुनिया में हर कहीं एक तरह से काम करने वाले देशो का एक संगठन होता है जैसे तेल बेचने वाले देशों का संगठन है ओपेक, मुस्लिम देशों का संगठन है OIC, दक्षिण एशिया के विकासशील देशों का संगठन दक्षेस या saarc कहलाता है। इसी तरह ब्रिटेन के गुलाम रह चुके देशों का ग्रुप कामनवेल्थ है और नार्थ अमेरिकी ईसाई देशो का ग्रुप है नाटो। ठीक इसी तरह पर हथियार बेचने वाले तमाम देशों का भी एक ग्रुप है जिसमे आने वाले तमाम देश ऊपर से चाहे कितने भी आपस में लड़ते मरते रहे, लेकिन ग्राहक बिगड़ते ही सब भाई भाई हो जाते हैं।, अब जिस देश ने शर्ते तोड़ी है उस पर पूरा संगठन याने सारे देश मिलकर तमाम तरह के नए हथियार बेचने से रोक लगा देते हैं। मतलब अब इसे हममे से कोई हथियार नहीं देगा और अगर कोई देगा तो हम उसे बिरादरी से बाहर कर देंगे।

  • अब इसके बाद भी अगर कोई देश बहुत ढीठ है और नहीं मान रहा जैसे ईरान या नार्थ कोरिया तो उसके लिए आता है चौथा चरण, अब उस देश पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाये जाते है यानि उसे किसी भी अन्य देश के साथ व्यपार करने से रोका जाता है जिससे उस देश की इकॉनमी टूट जाए और वहां की जनता बगावत कर दे जिससे वो देश खुद ही घुटनों पर आ जाएगा, वैसे बैकडोर से भी बगावत के कोशिशें अपने जासूसों से ये लोग करवाते रहते हैं जैसे हाल ही में ईरान में हुआ सरकार विरोधी प्रदर्शन।

  • ठीक है अगर कोई इसके बाद भी नहीं मानता है तो उसके बाद इस मुद्दे को इंटरनेशनल कोर्ट में ले जाया जा सकता है या आखिरी आप्शन के तौर पर उसे फ़ौज के दम काबू क्या जा सकता है जैसे इराक को किया गया था या अब ईरान की बारी है। और ये आप भी समझ सकते हैं की एक हथियार खरीदने वाला देश और दूसरी तरफ नए हथियार बना कर बेचने वाला देश लड़ेंगे तो कौन जीतेगा?

  • लेकिन एक बात अब भी अधूरी रहती है की ये सब तो बाद में बदला लेने के तरीके है, क्या होगा की अगर अमेरिका से खरीदे हुए बम या जहाज़ से हम उसी पर या उसके किसी दोस्त पर हमला करने चल पड़े और अमेरिका को ये पता चल जाए तो उसे कैसे रोका जाएगा? जाहिर है की रोक लगाना, मुकदमा करना, बहिष्कार करना या जवाबी हमला करना तो हफ़्तों और महीनो के काम है तो उसी वक़्त फ़ौरन कैसे रोका जा सकता है। तो ऐसे मौके पर काम आते हैं किल स्विच -

किल स्विच-


अब आप कहोगे की ये क्या बला है? किल स्विच किसी भी मशीन या हथियार के इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में लगा हुआ के छोटा सा चिप होता है जिसे एक्टिवेट करते ही पूरी मशीन फ़ौरन नकारा हो सकती है, मने फुल्ली बेकार एकदम काम करते करते परमानेंट बंद। इसे ढूँढा नहीं जा सकता निकाला नहीं जा सकता, इसे किसी कनेक्शन या पॉवर की जरूरत नहीं पड़ती, इसे छुपाया भी नहीं जा सकता, ये भी पता लगाने की जरूरत नहीं होती की हमारी फलां मशीन किस जगह पर है, बस किल स्विच एक्टिवेट और खेल ख़त्म।


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नहीं समझे, ठीक है आपको आसान भाषा में समझाते हैं,


टीवी रेडियो से लेकर तमाम तरह के वायरलेस डिवाइस और रिमोट तो आप इस्तेमाल करते हैं। क्या आपने उनमे से ज्यादातर में कोई एंटीना देखा है? जवाब है नहीं। आप उसे खोल लो पूरा खंगाल मारों, बोर्ड को उधेड़ दो फिर भी आपको सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक सर्किट ही दिखेगा और कोई एंटीना नहीं मिलेगा। तो फिर ये काम कैसे करता है? इसका जवाब है की इसका सर्किट रेजोनेंस फ्रीक्वेंसी पर काम करता है। मने वैसे तो ये सर्किट आराम से रहेगा लेकिन जैसे ही इसे अपने तयशुदा फ्रीक्वेंसी का सिग्नल मिलेगा ये काम करना शुरु कर कर देगा वरना ये चुप पड़ा रहेगा। टीवी, कार लॉक, मोबाइल सब जगह ऐसा ही होता है। वैसे तो शांत लेकिन जैसे ही अपना सिग्नल मिला तो तुन तुन शुरू। अब सोचिये की इसका उल्टा नहीं हो सकता क्या, कि जैसे ही उस रेजोनेंस सर्किट को अपना सिग्नल मिले और वो अचानक काम करना रोक दे या अपने अन्दर से गुजरने वाली पावर सप्लाई रोक दे। टीवी बंद करते हुए यही तो होता है। पूरा टीवी ऑफ होता है लेकिन जैसे ही आप रिमोट को दबाते हैं तो ऑन-ऑफ़ सर्किट को सिग्नल मिलता है और वो अपने अन्दर से गुजरने वाली पॉवर सप्लाई को चालू आकर देता है और जब आप दोबारा वही बटन दबाते हैं तो वो उस सप्लाई को रोक देता है जिससे टीवी बंद हो जाता है।


ठीक यही सिस्टम एक एक हथियार के हर पार्ट में सेंकडो जगह लगाया जाता है, एक एक चिप में कई जगह लगाया जाता है और ऐसा इंस्टाल किया जाता है की ढूंढें न मिले। और टीवी की तरह उसे बंद और चालू होने के लिए डिजाईन नहीं किया जाता बल्कि एक बार सिग्नल मिलते ही वो खुद को और अपने होस्ट चिप को हमेशा के लिए डैमेज आकर देता है।


जैसे ही खरीददार देश ने कोई हरकत की वैसे की बेचने वाला देश अपने घर बैठे किल स्विच एक्टिवेट कर देगा और उसके सेटेलाइट उस देश के ऊपर किल स्विच एक्टिवेट करने के सिग्नल फैला देंगे और वो हथियार जहाँ भी होगा ख़राब हो जाएगा, चाहे वो हवा में उड़ता हुआ जहाज़ ही क्यूँ न हो जमीन पर आ गिरेगा। और बाद में मीडिया क्या रिपोर्ट करेगा वो आप जानते ही है। ऐसा एक नहीं कई बार हो भी चुका है। ये स्विचेस इतनी बारीकी और सफाई से लगाये जाते है की सर्किट में इस तरह मिल जाते है कि किसी भी तरह ढूंढें न जा सकें, और कोई ज्यादा हाथ पैर मारेगा ढूँढने के लिए तो मत भूलियेगा की मेंटेनेंस का कॉन्ट्रैक्ट भी बेचने वाले के पास ही है, वो किल स्विच से भी पहले कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म करके आपके जहाज़ को डब्बा बना देंगे की आप उसमे छेड छाड़ कर रहे थे। लेकिन इसमें सबसे डरावनी बात ये नहीं है की वो देश हमारे सामने शर्ते रख रहा है या हमारे नेता को धमकी दे सकता है। सच इससे भी कहीं ज्यादा डरावना है।


2007 में इस्राएल को शक हुआ की शायद सिरिया एक परमाणु रिएक्टर बना रहा है जिससे बाद में परमाणु बम भी बनाया जा सकता है। जिसके बाद उनकी जासूसी एजेंसी मोसाद ने पता लगाया की ये सच था और साथ ही उसकी सही लोकेशन और पूरा प्लान भी चुरा लिया। योजना बनी की इसरायली लड़ाकू जहाज़ सिरिया जा कर हमला करके रिएक्टर को खत्म कर देंगे लेकिन इसमें एक दिक्कत थी की सिरिया ने हाल ही में रूस से एक एडवांस मिलिट्री ग्रेड का राडार सिस्टम खरीदा था जिसके चलते अगर इस्राएल ने उनकी सरहद में घुसने की गलती की तो मिनटों में रूसी मिसाइल्स उन्हें उड़ा देंगे। लेकिन एक दिन अचानक उस रूसी राडार ने काम करना बंद कर दिया, फौरन इंजिनियर ठीक करने में लग गये लेकिन कोई कमी नहीं मिली, और उसके कुछ देर बाद राडार ने खुद ही दोबारा काम करना शुरू कर दिया, बिलकुल ठीक ठाक। पर तभी पता चला की इतनी देर में इजराएल के जहाज़ों ने पूरा का पूरा रिएक्टर उड़ा दिया, थोडा बहुत नहीं सत्रह टन बारूद से रिएक्टर उड़ाया गया। बाद में पता चला कि रूस ने उस राडार के किल स्विच के कॉड मोटी रकम लेकर चोरी से बेच दिए थे जिससे इस्राएल ने एन वक़्त पर राडार को बंद कर दिया और काम करके निकल लिए। ये मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खूब उछला लेकिन सबूत की कमी और सिरिया की कमजोर हालत के चलते कुछ नहीं हो सका।



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अब जरा सोचिये की किसी दिन भारत के पीएम अपने बोईंग जहाज़ में कहीं जा रहे हैं जो अमेरिका की कम्पनी है, और बोईंग ने उसके किल स्विच कोड पैसे लेकर पाकिस्तान या चाइना को बेच दिए तो क्या होगा? जहाज़ तो जमीन पर आ जाएगा और आप क्या करोगे? अमेरिका से लड़ोगे जिसने आपको आपके आधे से ज्यादा हथियार बेचे हैं? और वैसे भी जांच के लिए ब्ललै बॉक्क तो बोईंग के पास ही जाएगा न, वो क्यूँ बताएँगे की हमने गिराया है, बोल देंगे की तकनीकी खराबी थी! लड़ने का अंजाम क्या होगा ऊपर बता चूका हूँ। बात साफ़ है की अगर ऐसा कुछ नहीं होगा। और अमेरिका अभी तक ऐसा कुछ नहीं करता वो इसीलिए क्यूंकि हम पहले ही अमेरिका के पिछलग्गू है और हमारे नुकसान में अमेरिका का कोई फायदा नहीं है अलबत्ता हमारे फायदे में उनका फायदा जरूर है। जिस दिन हम इराक की तरह उसके खिलाफ गये उस दिन सद्दाम हुसैन बनने से कोई नहीं बचा सकता। या किसी दिन पाकिस्तान हम पर हमला करने वाला हो और रूस उन्हें अपने S-400 मिसाइल सिस्टम के कोड उन्हें दे दिए तो आप क्या करोगे? आप सिस्टम के सहारे बैठे रहोगे और पाकिस्तान दिल्ली में प्रसाद बाँट कर निकल लेगा।


इसीलिए हर खरीदार देश को कोई जंग शुरू करने से पहले बेचने वाले देश या यूँ कहें की हथियार के असली मालिक से इज़ाज़त लेनी पड़ती है जिसे वो अपना फायदा नुक्सान देखकर ही बताते हैं। अगर आपको ये समझना है तो ध्यान दीजिये की इलेक्शन से पहले उबाले मारने वाले मोदी साहब हमले के बाद कहते है की हम पाकिस्तान से नहीं लड़ेंगे, वो अपनी गरीबी से लडे और हम अपनी गरीबी से। अन्दर की बात ये है की पप्पा से परमिशन नहीं मिली। और उसके कुछ साल बाद भारत ने उबालें मारना शुरू किया की हम तो पाकिस्तान के अन्दर तक घुस गये तो पाकिस्तान ने सिर्फ बचाव किया और कोई जवाब न दिया,क्यों? क्यूंकि पप्पा ने बोला चुप रहने का भारत वाले चेले के घर में चुनाव है। वरना ऐसा कैसे हो सकता है की एक उबले तो दूसरा चुप बैठे? ये सारा खेल ये हथियार बनाने वाले खेलते है और आपके नेताजी रिश्वत खाकर एक्टिंग करते हैं, जिस दिन एक्टिंग नहीं की तो लाल बहादुर बना दिए जाओगे।


ये सिस्टम सिर्फ हथियारों या जहाज़ तक सीमित नहीं है। दुसरे देशों को बेचे जाने वाले हर एक मोबाइल, सॉफ्टवेर, सिक्यूरिटी सिस्टम, सुपर कंप्यूटर हर कुछ अपने निर्माता कम्पनी और देश का छुपा जासूस होता है। आपके जेब में रखा छोटा सा फोन आपके बारे में कितना जानता हैं क्या आपको अंदाजा है?


  • लोकेशन टाइमलाइन - आप कहाँ जाते है, किसके पास किस जगह पर जगह पर कितनी देर रुकते हैं, आपका घर आपका ऑफिस का पता समेत सारी चीज़ें इसमें स्टोर रहती है।

  • कांटेक्ट लिस्ट - आपके फ़ोन ने कितने नंबर सेव हैं, उनमे से आप किन किन से कितनी देर बार करते हैं ये जानता है।

  • सर्च हिस्ट्री - आप आजकल क्या ढूंढ रहे है, क्या सोचते हैं, क्या खरीदने या पढ़ने की कोशिस करते है। जानने की कोशिश करते हैं ये सब स्टोर करते हैं।

  • सोशल मीडिया - आप किस ख्यालात वाले हैं, किस किस से क्या बातें करते हैं, किस चीज़ को लाइक करते हैं, क्या डिसलाइक करते हैं, किस चीज़ को इग्नोर करते हैं क्या पढ़ते हैं, देखते हैं, ये सब फेसबुक, ट्विटर यूट्यूब पर सेव होता है, यहाँ तक की आपकी पसंद की फ़िल्में और सीरियल भी वो जानते हैं।

  • शौपिंग पैटर्न - आप क्या ऑनलाइन क्या खरीदते हैं उससे ये पता चलता है कि आजकल आप क्या कर रहे हैं, खिलोने खरीदते हैं तो आपके यहाँ छोटा बच्चा है, घर का समान खरीदा है तो हो सकता है की आप नए घर में शिफ्ट हुए हो, किताबें खरीद रहे हो तो हो सकता है की आप स्टूडेंट है, गिफ्ट खरीदते हो तो शायद आपके यहाँ किसी का बर्थडे हो सकता है।

  • चैटिंग हिस्ट्री - ये सबसे ज्यादा खतरनाक है, आपका व्हाट्सएप्प अकाउंट ये बता सकता है की आप क्या सोचते हैं, क्या खाते हैं, कहा जाते हैं, एक रिपोर्ट में कहा गया है की आपकी चैट हिस्ट्री आपके बारे में आपकी पत्नी से ज्यादा जानती है।

अब इतना बताइए की आज पूरे भारत में एंड्राइड और आईफ़ोन को छोड़ कर कोनसा फ़ोन इस्तेमाल होता है? और सनद रहे की ये दोनों की अमेरिकन कम्पनियां है जो अपना पूरा डाटा अमेरिका में ही रखती है। अगर किसी दिन किसी भारतीय अफसर की निगरानी करने की जरूरत आन पड़ी तो अमेरिका क्यूँ ढेर सारे पैसे खर्च करेगा, वो तो सीधा गूगल, फेसबुक, ट्विटर,एप्पल से सीधा उनका डाटा निकाल लेगा जो आपके बारे में कितना जानते हैं ऊपर बता चुके है। इसका ज्यादा सबूत चाहिए तो अमेरिकन एजेंट एडवर्ड जोसफ स्नोव्डैन की जिंदगी पर बनी फिल्म स्नोडैन का ये सीन देख सकते हैं।



ठीक इस तरह की प्रोग्रामिंग, प्रोटोकॉल, फ़ायरवॉल विदेशों से आने वाले हर कंप्यूटर,हर सॉफ्टवेर, और छोटे बड़े हथियार में होता है। जो अपने अन्दर से गुजरने वाले हर डाटा को सिंक्रोनाइज करके अपनी होस्ट कंट्री को भेजता रहता है और वो घर बैठे बिठाये आपकी और आपके देश की एक डिजिटल प्रोफाइल तैयार करते हैं और बिना कुछ किये धरे वो आपके हर कदम को पहले से समझ सकते है।


लेकिन फिर हम इतने पैसे खर्च करके ये सब चीज़ें खरीदते ही क्यूँ है? हम खुद क्यूँ नहीं बना लेते?



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क्यूंकि वो ऐसा ही चाहते हैं, वो ये तय करते है की आप ऐसा करते रहे। आम समझ ये कहती है कि अगर कोई देश अपने लिए कोई हथियार बनाता हो या कोई नयी टेक्नोलॉजी बनाता है तो वो इसे अपने लिए इस्तेमाल करे, लेकिन ये सब ऐसा नहीं करते। ये ढेरों टेक्नोलॉजी बनाते हैं और बेस्ट अपने लिए रिज़र्व करके बाकी सबको मुंह मांगी कीमत पर बेचते हैं। अगर आप सोचेंगे की हम तो बिना हथियारों के रह लेंगे और पुराने तरीकों से लड़ेंगे तो ये आपको अपने प्यादों से हमले कराएँगे ताकि आप नए ज़माने के हथियार खरीदने के लिए मजबूर हों। आप सोचेंगे की हम इसरो जेसा संस्थान बना कर ये हथियार खुद बना लेंगे तो ये आपके नेताओं को खरीद लेंगे और उन्हें मजबूर करेंगे की वो अपना हथियार बनाने का प्रोग्राम बंद कर दें ताकि उनकी दुकानदारी बंद न हो, वो आपके वैज्ञानिकों को जासूसों से मरवा देंगे, आप पर हमला करवा देंगे, आपको डील में फंसा देंगे लेकिन हथियार बनाने नहीं देंगे। और ये इसलिए भी जरूरी है की अगर आपने हथियार नहीं खरीदे तो मुमकिन है की कुछ दिन में जनता सरकार के खिलाफ खडी हो जाएगी और हथियार बनाने की मांग करेगी या नयी तरह के फ़ोन कंप्यूटर बनाने की मांग उठ सकती है लेकिन उसी जनता को ये टेक्नोलॉजी महंगे में बेच कर एक तो आपको पूरी तरह से कण्ट्रोल किया जा सकता है और दूसरा जनता इसी भुलावे मने रहती है की हमारे पास पडोसी मुल्क से ज्यादा हथियार है और साथ ही मुंह माँगा पैसा मिलता है वो अलग। इसीके साथ वो ये भी तय करते हैं की आपके आस पास किसी न किसी मुल्क में जंग चलती रहे ताकि आप पर खरीददारी का दबाव बना रहे।


क्या ऐसा पहले भी भारत के साथ हो चूका है ?


कई बार हो चूका है लेकिन पहले नेता मजबूत थे इसीलिए वो नाकामयाब हो गये, अब वो कामयाब है। सबसे पहले तो 1965 की जंग में जब भारत लाहौर तक घुस चुका था तो अमेरिका ने भारत पर पीछे हटने के लिए दबाव बनाया क्यूंकि उस वक़्त पाकिस्तान हमसे ज्यादा अमीर राष्ट्र था और अमेरिका का बड़ा ग्राहक था जिसके हारने में उनके हथियारों की बेईज्ज़ती होती। जब शास्त्री जी नहीं माने तो उन्होंने गेंहू बंद करने की धमकी दी जिसे भारत सरकार ने दरकिनार कर दिया। फिर एक गुप्त दबाव के तहत फैसले के लिए ताशकंद बुलाया गया जहाँ जबरदस्ती उनसे शांति समझोता साईन करवा कर अगली ही रात में जहर दे कर मार दिया गया क्यूंकि वो जानते थे की ये आदमी आगे भी हमारे सामने खड़ा हो सकता है। और इसकी फाइल आज तक सामने नहीं लायी गयी, इसके बाद 1971 में जब भारत पाकिस्तान आमने सामने थे तो अमेरिका ने भारत और पूरा दबाव बनाया की वो पीछे हट जाये मगर उस समय भारत रूस का बड़ा ग्राहक था इसीलिए रूस ने अपने जहाज़ भारत के सपोर्ट में भेज दिए जिससे अमेरिका को पीछे हटना पड़ा और भारत की जीत हुई।


इसके बाद जब भारत ने परमाणु परिक्षण करके ये बता दिया की हमने अपने बम खुद बना लिए हैं तो उन्होंने पाकिस्तान को कश्मीर का लालच दे कर हमला करा दिया और उसके लिए ऊंचाई पर लड़ने वाले भरपूर हथियार सस्ते में दिए, जब भारत ने लड़ने के लिए फ़ौरन लेजर बमों की मांग की तो साफ़ मना कर दिया और आखिरकार भारत को अमेरिका के साथ कई नयी डील पर साईन करनी पड़ी जिसके बाद फ्रांस ने भारत को बमो की सप्लाई दी और पाकिस्तानी फ़ौज दो हफ्ते में पीछे लौट गयी लेकिन फिर भी शर्त के हिसाब से दो चोटियाँ आज भी उनके कब्जे में हैं। उसके बाद उन्होंने आखिरकार 2008 में भारत का परमाणु प्रोग्राम पूरी तरह से बंद करा दिया। और अब वो रोज भारत की नए नए हथियार बेचते रहते हैं जिनका क्या होगा आप समझ गये होंगे।


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